कुरुक्षेत्र में लड़े गए महाभारत के विनाशकारी युद्ध को संसार का प्रथम विश्वयुद्ध कहा गया है. उसी समय में सहस्त्रबाहु – परशुराम तथा राम रावण का युद्ध हुआ था, परन्तु फिर भी महाभारत का युद्ध प्रलयंकारी एवं भीषण माना जाता है क्योकि इस युद्ध में परमाणु अस्त्र एवं शस्त्रों को भी प्रयोग में लाया गया…
यह आलेख निम्नलिखित के बारे में जानकारी प्रदान करता है : Dharmaraja and mahabharat में and mahabharata interesting story in hindi and Pandav and कर्ण and कर्ण के वध के बाद and धर्मराज and पांडव and पांडवो के ज्येष्ठा भ्राता होने का राज and पांडवों का अज्ञातवास and पांडवों की मृत्यु and पांडवों के ज्येष्ठ भ्राता होने का राज and पांडवों के पिता का नाम and भगवान श्री कृष्ण and महाभारत and महाभारत कर्ण वध and महाभारत पांडवों का वनवास
कुरुक्षेत्र में लड़े गए महाभारत के विनाशकारी युद्ध को संसार का प्रथम विश्वयुद्ध कहा गया है. उसी समय में सहस्त्रबाहु – परशुराम तथा राम रावण का युद्ध हुआ था, परन्तु फिर भी महाभारत का युद्ध प्रलयंकारी एवं भीषण माना जाता है क्योकि इस युद्ध में परमाणु अस्त्र एवं शस्त्रों को भी प्रयोग में लाया गया था.
महाभारत युद्ध के विषय में यह भी कहा जाता है की इस युद्ध के कारण उस समय की विकसित सम्पूर्ण हड़प्पा सभ्यता का विनाश हो गया था. 18 दिन तक चलने वाले महाभारत के इस युद्ध में 18 अक्षौहिणी सेना शामिल हुई थी.
एक अक्षौहिणी सेना में एक लाख नो हजार तीन सौ पचास सैनिक 65610 घुड़सवार, 21870 रथ, तथा 11870 हाथी होते थे. इस युद्ध के समाप्ति के पश्चात सम्पूर्ण मानव जाती के भीतर हिंसा के प्रति विपरीत प्रभाव पड़ा था सब लोक हिंसा की जगह अब अहिंसा को स्थान देने लगे थे. तथा समय के चक्र के साथ सम्पूर्ण भारत अहिंसा के मार्ग पर निकल पड़ा था.
परन्तु जैसे जैसे समय व्यतीत हुआ तथा फिर समय का चक्र घुमा मनुष्य पुनः हिंसा को अपनाने लगे.
पांडवो ने मांगे थे ये पांच गाँव दुर्योधन से :- इंद्रप्रस्थ (दिल्ली), वृकप्रस्थ (बागपत), जयंत (जानसठ) वारणावृत (बरनावा) तथा पांचवा गांव पांडवो ने दुर्योधन के इच्छा के आधार पर मांगा था. परन्तु उस समय दुर्योधन केवल पांडवो के साथ युद्ध कर उनका वध करना चाहता था.
अतः जब भगवान श्री कृष्ण पांडवो की तरफ से यह संदेश लेकर दुर्योधन के पास गए तो दुर्योधन ने सुई के नोक के बराबर भी भूमि पांडवो को न देने की बात कहि. अब भगवान श्री कृष्ण ने सिर्फ युद्ध को ही एक और आखिरी उपाय पांडवो के लिए समझा.
जब भगवान वापस पांडव के पास लौटने को हुए थे उन्हें हस्तिनापुर से बाहर तक छोड़ने के लिए कर्ण उनके साथ आये. उस एकांत में भगवान कृष्ण ने कर्ण को बता दिया की वह वास्तविकता में कुंती का पुत्र है तथा पांडव उसके भाई है. इस बात को सुन कर्ण चौंक गया तथा यह सुनकर कर्ण के पैरो के निचे से जमीन खीसक गई थी. वह कुछ देर तक अवाक रह गए .
भगवान श्री कृष्ण कर्ण से बोले की कर्ण तुम्हारी माता कुंती है तथा पिता सूर्य देव है, तुम पांडवो में सबसे बड़े तथा उनके ज्येष्ठ भ्राता हो. पांडवो के भाई होने के नाते तुम्हे उनकी मदद करनी चाहिए तथा युद्ध में उनका साथ देना चाहिए. इस सत्य का पता चलने पर कर्ण ने नीतिकार कृष्ण से जो कुछ भी कहा वह बहुत ही मार्मिक था तथा उसे सुन दानवीर के प्रति श्रद्धा भाव उमड़ता है.
महाभारत के उद्योग पर्व में कृष्ण और कर्ण के मध्य हुई वर्ता के विषय में बताते हुए खा गया है की कर्ण कृष्ण से कहते है हे! मधुसूदन हम दोनों के मध्य जो गुप्तवार्ता हुई है वह सिर्फ हम दोनों के बीच ही रहना चाहिए.
जानाति मां राजा धर्मात्मा संयतेन्द्रिय:
कुन्त्या: प्रथमजं पुत्रं स राज्यं ग्रहीष्यति
यदि धर्मराज युधिस्ठर को यह बात ज्ञात होती है की में माता कुंती का ही पुत्र हु और उनका ज्येष्ठ भ्राता हु तो वे सम्पूर्ण सम्राज्य मेरे हाथो में ही सोप देंगे तथा इस प्रकार दुर्योधन मेरे परम मित्र होने के कारण वह राज्य में पुनः होने सोप दूंगा. परन्तु युधिष्ठर के अलावा इस भूमिमंडल को कोई अन्य उपयुक्त राजा नहीं मिल सकता और मेरी इच्छा ही की वह इस भूमिमण्डल का राजा बने.
कर्ण की यह बात सुनकर यही से भगवान श्री कृष्ण ने महाभारत युद्ध की घोषणा कर दी थी.
सर्वाधिवनस्फीत: फलवा माक्षिक:
निष्यं को रसवत्तोयो नात्युष्ण शिविर: सुख:
भगवान श्री कृष्ण कहते है की सभी प्रकार के फल एवं फूलों से सम्पूर्ण वन हरा भरा हो गया है चारो तरफ हरियाली फैली है. धान के खेतों में भी खूब फल लगे है और मखिया कम हो गई है. कहि पर भी कीचड़ नहीं है. पानी बिलकुल स्वक्छ एवं सुस्वाद है . इस सुखद मास में न तो अधिक गर्मी है और नहीं अधिक सर्दी. अतः यह मास युद्ध के लिए उपयुक्त रहेगा.
कर्ण इतो गत्वा द्रोणं शांतनवं कृपम.
ब्रूया सौम्योअयं वत्र्तते मास: सुप्रापयवसेन्धन:
अच्छा कर्ण तुम यहाँ से जाने के पश्चात द्रोण, शांतुनन तथा भीष्म से कहना की यह सौम्य मास है तथा इस मास में पशुओं के लिए घास, जलाने के लिए लकड़िया आदि वन से आसानी से मिल जायेगी.
इस श्लोक के आगे तीसरे श्लोक में भगवान श्री कृष्ण ने यह बात कर्ण से कहि थी की आज से सात दिन के पश्चात अमावश्या आने वाली है जिसके स्वामी इंद्र है. उसी समय से कुरुक्षेत्र में महाभारत का युद्ध आरम्भ किया जाएगा.
यदि अंग्रेजी तारिक के अनुसार कहा जाए तो 12 अक्टूबर को भगवान कृष्ण ने महाभारत के युद्ध की तारिक चुनी थी.
जब महाभारत का युद्ध आरम्भ हुआ तो कौरवों की सेना में से प्रथम 10 दिनों तक भीष्म पितामाह सेनापति रहे. युद्ध 19 अक्टूबर को आरम्भ हुआ तथा 28 अक्टूबर को भीष्म पितामाह मृत्यु शैय्या पर लेते थे. भगवान श्री कृष्णन के साथ पांडव भी उनकी मृत्यु शैय्या पर आये तथा उनसे नैतिक ज्ञान ग्रहण किया. महाभारत का युद्ध 19 अक्टूबर से 5 नवम्बर तक चला जिसमे असंख्य योद्धाओं की मृत्यु हुई.