पुरे भारत में बड़े हर्षौल्लास के साथ मनाया जाने वाला रंगों का त्यौहार, होली आगामी 10 मार्च को है. जिसकी तैयारियों के लिए लोगों में शौपिंग करना भी शुरू कर दिया है. इसके साथ ही आजकल बाज़ारों में भी एक नई रौनक देखने को मिल रही है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार हिरण्यकश्यप नामक राजा खुद…
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पुरे भारत में बड़े हर्षौल्लास के साथ मनाया जाने वाला रंगों का त्यौहार, होली आगामी 10 मार्च को है. जिसकी तैयारियों के लिए लोगों में शौपिंग करना भी शुरू कर दिया है. इसके साथ ही आजकल बाज़ारों में भी एक नई रौनक देखने को मिल रही है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार हिरण्यकश्यप नामक राजा खुद को इश्वर का अवतार बताते हुए प्रजा से जबरन अपनी पूजा करवा रहा था.
जबकि उस राजा का पुत्र प्रहलाद नारायण का भक्त था. वो हमेशा भगवान नारायण का नाम जपता रहता और उनकी भक्ति में लीन रहता. अपनी बेटे की इस बात से रुष्ट राजा हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद की ईश्वरीय शक्ति की परीक्षा लेने का निर्णय किया. जिसके लिए उन्होंने अपनी बहन होलिका हो बुलाया.
होल्की को अग्नि से वरदान प्राप्त था, जिसका लाभ उठाते हुए राजा ने अपने पुत्र को होलिका के साथ चिता में जिंदा जलाने का प्रयत्न किया. लेकिन भक्त प्रहलाद को एक आंच भी नहीं आई जबकि होलिका पूरी तरह जल गई. तभी से होलिका दहन की परंपरा चली आ रही है. और हर वर्ष होली के ठीक एक दिन पहले इसे बुराई पर अच्छाई की विजय के रूप में मनाया जाता है.
घर में सुख-शांति, समृद्धि, सन्तान प्राप्ति आदि के लिए घर की महिलाए होलिका दहन की पूजा करती है. होलिका दहन के लिए लगभग 1 महीने पहले से ही तैयारियां शुरू हो जाती है. जिसमे कांटेदार झाड़ियों या लकड़ियों को इक्कठा करके होली वाले दिन शुभ मुहूर्त में उनका दहन किया जाता है.
हिन्दू ग्रंथो के अनुसार, होलिका दहन प्रदोष काल (जो सूर्यास्त के बाद प्रारंभ होता है) के किया जाना चाहिए, जब पूर्णिमा तिथि प्रबल हो. भाद्र, पूर्णमासी तिथि के पहले अर्ध में प्रबल होती है और भद्रा के प्रबल होने पर किसी भी प्रकार के शुभ कार्य को करना वर्जित है.
वर्ष 2020 में होलिका दहन 9 मार्च 2020, के दिन मनाई जाएगी.
होलिका दहन मुहूर्त = 06:26 pm से 08:52 pm तक रहेगा.
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फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से फाल्गुन पूर्णिमा तक के अंतराल को होलाष्टक माना जाता है, जिसमे सभी शुभ कार्य वर्जित रहते है. इसीलिए पूर्णिमा के दिन होलिका-दहन किया जाता है.
1. पहला, उस दिन “भद्रा” न हो. क्योंकि भद्रा का ही एक दूसरा नाम विष्टि करण भी है, जो की 11 कारणों में से एक है. और एक करण तिथि के आधे भाग के बराबर होता है.
2. दूसरा, पूर्णिमा प्रदोषकाल-व्यापिनी होनी चाहिए. अर्थात उस दिन सूर्यास्त के बाद के तीन मुहूर्तो में पूर्णिमा तिथि होनी चाहिए.