बात उस समय की है जब प्रभु श्री राम एवं लंकापति रावण का युद्ध आखिरी चरण में आ चुका था. भगवान श्री राम ने रावण पर अनेक बाण चलाए परन्तु रावण हर बार अपनी मायावी शक्तियों के छल से बच निकलता तब श्री राम ने अपने दिव्यास्त्रों का प्रयोग रावण के वध के लिए किया.Ram…
यह आलेख निम्नलिखित के बारे में जानकारी प्रदान करता है : hanuman and रावण का इतिहास and रावण का गांव and रावण का गोत्र क्या था and रावण का जन्म स्थान and रावण का जन्म स्थान कहाँ है and रावण किस जाति का था and रावण की कहानी and रावण की जाति क्या थी and रावण के माता पिता का नाम and विभीषण and हनुमान
बात उस समय की है जब प्रभु श्री राम एवं लंकापति रावण का युद्ध आखिरी चरण में आ चुका था. भगवान श्री राम ने रावण पर अनेक बाण चलाए परन्तु रावण हर बार अपनी मायावी शक्तियों के छल से बच निकलता तब श्री राम ने अपने दिव्यास्त्रों का प्रयोग रावण के वध के लिए किया.
जब राम के एक दिव्य तीर ने जाकर रावण का सर धड़ से अलग किया तभी रावण के मायावी शक्तियों से रावण का एक नया सर उग गया. इस तरह राम उस पर तीर चलाते गए और रावण अपने माया से एक और नया सर उतपन्न कर लेता.
जब राम रावण की माया को देख निराश हो गए तब विभीषण ने भगवान राम को रावण के मृत्यु का भेद बताया.
तब भगवान राम ने एक साथ 36 बाण रावण पर छोड़े. पहला बाण लगा रावण की नाभि में जाकर जिससे उसमे समाहित अमृत बाहर निकल गया. बाकि के तीस बाण में से बीस हाथो को और दस सरो को काट के मंदोदरी के सामने गिरा के वापस राम के तरकश में आ गए थे.
मंदोदरी ये देख मूर्छित हो गई, रणभूमि में जैसे ही रावण का शरीर जिसमे उसका असली सर था धड़ाम से गिरा तो समस्त पृथ्वी काँप उठी. जैसे ही राम ने रावण का वध किया सभी देवता स्वर्ग से भगवान राम पर पुष्पों की वर्षा करने लगे.
भगवान राम ने विभीषण द्वारा रावण का परम्परागत अंतिम संस्कार करवाया. श्री राम ने माता सीता को विजयी का समाचार देने खुद न जाकर हनुमान को भेजा और उन्ही के साथ उन्होंने माता सीता को बुलाया.
भगवान श्री राम माता सीता को लेने लंका इसलिए नहीं गए क्योकि उस समय भी उन्हें मिले वनवास के अवधि के समाप्त होने में अभी थोड़ा और समय बाकी रह गया था तथा इसी कारण वे किसी नगर में प्रवेश नहीं कर सकते थे.
लक्ष्मण और माता सीता दोनों स्वेच्छा से प्रभु श्री राम के साथ वनवास के लिए आये थे अतः उन्हें कोई दोष नहीं लगने वाला था. उसके बाद भगवान श्री राम ने समाज को ध्यान में रखते हुए माता सीता की अग्नि परीक्षा ली.
भगवान श्री राम ने लंका का राज्य विभीषण को सोपा. इसके बाद जब भगवान श्री राम के वनवास की अवधि समाप्त हुई तब विभीषण ने लंका का ताज राम के सर में सजाने की इच्छा रखी.
राम ने विभीषण की बात मान ली परन्तु उन्हें यह भी स्मरण था की अगर वे समय पर अयोध्या नहीं पहुंचे तो भरत भाई आत्मदाह कर लेंगे.
इसके लिए विभीषण ने श्री राम को पुष्पक विमान दे दिया जिस कारण उनका समय से अयोध्या पहुंचना सम्भव हुआ. जब भगवान अयोध्या लोट रहे तब जामवन्त ने भगवान राम से युद्ध लड़ने की इच्छा व्यक्त करी थी. तब भगवान राम ने अपने अगले अवतार में उनसे युद्ध करने का वादा किया.
इसके साथ ही हनुमान जी तथा विभीषण को भी अमरता का वरदान प्राप्त हुआ था.