यह तो सब को पता है की एक ना एक दिन मनुष्य को मृत्यु आनी निश्चित है, परन्तु फिर भी मनुष्य को मृत्यु से डर लगता है और जब मृत्यु नजदीक आती है तो मोह और बढ़ जाता है. परन्तु मोह में फंसे व्यक्ति की यमदूत एक नहीं सुनते तथा अपने यमपाश से बाँधकर व्यक्ति…
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यह तो सब को पता है की एक ना एक दिन मनुष्य को मृत्यु आनी निश्चित है, परन्तु फिर भी मनुष्य को मृत्यु से डर लगता है और जब मृत्यु नजदीक आती है तो मोह और बढ़ जाता है. परन्तु मोह में फंसे व्यक्ति की यमदूत एक नहीं सुनते तथा अपने यमपाश से बाँधकर व्यक्ति की आत्मा को उसके शरीर से बाहर खींच लेते है.
अतः हमे मृत्यु को जितने का प्रयास करना चाहिए , मृत्यु को जितने से यह मतलब नहीं की अमरता की तलाश करें बल्कि ऐसा कार्य करें की आशवस्त हो की अब पुनः मरना नहीं पड़ेगा.
आज हम आपको मृत्यु एवं आत्मा से संबंधित बहुत ही रोचक एवं महत्वपूर्ण जानकारी बताने वाले है जो की हमारे प्रसिद्ध ग्रंथो में से एक गरुड़ पुराण से ली गई है.
गरुड़ पुराण के अनुसार मनुष्य के शरीर में 10 ऐसे अंग बताए गए है जो खुले रहते है, दो आँख, दो नासिक के छिद्र, दो कानो के छिद्र, मुख व मल-मूत्र विसजर्न का द्वार. आखरी द्वार मनुष्य के सर के बीच का तलवा. जिसे आप अभी तो नहीं परन्तु जिस समय बच्चा नवजात रहता है तब उसके सर को छू कर महसूस कर सकते है.
माँ के गर्भ में बच्चे के शरीर पर आत्मा का प्रवेश इसी दवार से कराया जाता है यही कारण है वह बेहद कमजोर होता है. यही एक कारण यह भी है की जब किसी धार्मिक स्थान या मंदिर में पूजा की जाती है तो सर को धक कर रखा जाता है ताकि ध्यान भंग न हो अन्यथा चित्त अस्थिर हो जाता है.
जब मृत्यु समीप आती है तो व्यक्तियों के कर्मो के हिसाब से उनके शरीर से आत्मा निकाली जाती है. जो धार्मिक एवं अच्छी आत्मा होती है वह सर के तलवे से बहार निकलती है वही बुरी एवं पापी आत्माओं को गुप्तांगो द्वारा बहार निकाला जाता है जिससे उन्हें बहुत पीड़ा होती है.
आत्मा के शरीर से निकलते ही सात्विक आत्मा को देवदूतों द्वारा स्वर्ग में ले जाया है तथा पापी आत्मा को यमदूतों द्वारा अपने बन्धनों में बांधकर यमलोक ले जाया जाता है. जहाँ उन्हें उनके कर्मो के अनुसार डाले जाने वाले नर्कों के बारे में बताया जाता है.
फिर उसके शव दाह से पहले उसे पृथ्वीलोक लाया जाता है तथा उसके देह का अंत दिखाया जाता है. जिस पर रूह शरीर में घुसने के लिए छटपटाती है परन्तु वह यमदूतों के बेड़ियों से बंधी होती है.
यम पापी आत्मा को बारह दिन तक उसके घर के आस-पास रखते है व बारह दिन तक होने वाले पिंड दान को उसे खिलाते है. आत्मा कौआ, बिल्ली आदि के रूप में आकर उस पिंड दान को गर्हण करती है. जिससे उस पापी आत्मा को एक हाथ का शरीर मिलता है. शरीर इसलिए मिलता ताकि वह अपने पापो के दर्द को भोग सके.
साल भर दिए जाने वाले पिंडदानो से पापी आत्माओं को कुछ राहत मिलती है , अनेको असहनीय यातनाएं झेलने के बाद फिर उनके पुनर्जन्म पर विचार किया जाता है. इसके बाद भी आत्मा को चौरासी लाख योनि पार कर अंत में पिचशी योनि मनुष्य के रूप में मिलती है. अतः मनुष्य योनि को अति दुर्लभ योनि माना गया है.
वही देव योनि को भोग योनि बताया गया है. क्योकि देव योनि में हम भोग तो कर सकते है परन्तु कोई शुभ कार्य नहीं कर सकते परन्तु मनुष्य योनि में पूर्व कर्मो के संचित पुण्यो से हम भोग भोग कर सकते है तथा इसके साथ ही शुभ एवं अशुभ कर्मो की शुरवात भी कर सकते है. अतः देवता भी मनुष्य योनि को पाने के लिए ललायित रहते है.
जो गैर पुरुष एवं स्त्री से संबंध रखने वाला होता है उस आत्मा को लोहे के गर्म सलाखों के साथ आलिंगन कराया जाता है. जो पुरुष अपने गोत्र की स्त्री से विवाह करता है उसे नर्क भोगकर लकड़बग्घे का जन्म मिलता है. जो व्यक्ति निर्दोष पशु को मारकर खाने वाला होता है उसकी आत्मा को यमदूत तेल से खोलते गर्म कढ़ाई में गिराते है तथा उसे अग्नि की लपेटो में तपाया जाता है.
जो व्यक्ति अपने मित्र के साथ धोखा करता है उसे उलटा लटकाया जाता है तथा चील गिद्ध आदि द्वारा वह नोचा जाता है व अगला जन्म उसे गिरगिट का मिलता है. अतः मनुष्य को सदैव सतकर्म, दया एवं परोपकार के मार्ग पर ही चलना चाहिए अन्यथा बाद में पछताना पड़ सकता है.