आज भी प्राचीन काल की ऐसी कई निशानियां मौजूद हैं, जिनका संबंध देवी-देवताओं या ऋषि-मुनियों से माना जाता है। आज हम आपको ऐसे ही 5 सरोवरों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिन्हें धार्मिक रूप से बहुत ही खास माना जाता है। इन सरोवरों को लेकर कहा जाता है कि इनमें स्नान करने से…
आज भी प्राचीन काल की ऐसी कई निशानियां मौजूद हैं, जिनका संबंध देवी-देवताओं या ऋषि-मुनियों से माना जाता है। आज हम आपको ऐसे ही 5 सरोवरों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिन्हें धार्मिक रूप से बहुत ही खास माना जाता है। इन सरोवरों को लेकर कहा जाता है कि इनमें स्नान करने से मनुष्य को निश्चित ही मोक्ष की प्राप्ति होती है।
राजस्थान में अजमेर शहर से 14 किलोमीटर दूर पुष्कर झील है। इस झील का संबंध भगवान ब्रह्मा से है। यहां ब्रह्माजी का एकमात्र मंदिर बना है। पुराणों में इसके बारे में विस्तार से उल्लेख मिलता है। यह कई प्राचीन ऋषियों की तपोभूमि भी रहा है। पुष्कर की गणना पंच तीर्थों में भी की गई है।
पुष्कर के उद्भव का वर्णन पद्मपुराण में मिलता है। कहा जाता है कि ब्रह्मा ने यहां आकर यज्ञ किया था। पुष्कर का उल्लेख रामायण में भी हुआ है। विश्वामित्र के यहां तप करने की बात कही गई है। इस सरोवर को लेकर एक यह मान्यता भी प्रचलित है कि भगवान राम ने अपने पिता राजा दशरथ का श्राद्ध भी यहीं पर किए थे।
झील की उत्पत्ति के बारे में किंवदंती है कि ब्रह्माजी के हाथ से यहीं पर कमल पुष्प गिरने से जल प्रस्फुटित हुआ जिससे इस झील का उद्भव हुआ। यह मान्यता भी है कि इस झील में डुबकी लगाने से पापों का नाश होता है। झील के चारों ओर 52 घाट व अनेक मंदिर बने हैं। इनमें गऊघाट, वराहघाट, ब्रह्मघाट, जयपुर घाट प्रमुख हैं।
पुष्कर सरोवर 3 हैं- ज्येष्ठ (प्रधान) पुष्कर, मध्य (बूढ़ा) पुष्कर और कनिष्ठ पुष्कर। ज्येष्ठ पुष्कर के देवता ब्रह्माजी, मध्य पुष्कर के देवता भगवान विष्णु और कनिष्ठ पुष्कर के देवता रुद्र हैं। ब्रह्माजी ने पुष्कर में कार्तिक शुक्ल एकादशी से पूर्णमासी तक यज्ञ किया था जिसकी स्मृति में अनादिकाल से यहां कार्तिक मेला लगता आ रहा है।
तीर्थराज पुष्कर को सब तीर्थों का गुरु कहा जाता है। इसे धर्मशास्त्रों में 5 तीर्थों में सर्वाधिक पवित्र माना गया है। पुष्कर, कुरुक्षेत्र, गया, हरिद्वार और प्रयाग को पंचतीर्थ कहा गया है।
संस्कृत शब्द मानसरोवर, मानस तथा सरोवर को मिलकर बना है जिसका शाब्दिक अर्थ होता है- मन का सरोवर। पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह सरोवर ब्रह्माजी मन से उत्पन्न हुआ था। इस सरोवर के पास ही कैलाश पर्वत है जो भगवान शिव का निवास स्थान माना जाता है। जिसके कारण इस सरोवर का महत्व और भी कई गुना बढ़ जाता है।
इस सरोवर के बारे में कहा जाता है कि यहीं पर माता पार्वती स्नान करती हैं। यहां देवी सती के शरीर का दायां हाथ गिरा था इसलिए यहां एक पाषाण शिला को उसका रूप मानकर पूजा जाता है। यहां शक्तिपीठ है।
इस जगह को हिंदू धर्म के साथ-साथ बौद्ध धर्म में भी बहुत पवित्र माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि रानी माया को भगवान बुद्ध की पहचान यहीं हुई थी। जैन धर्म तथा तिब्बत के स्थानीय बोनपा लोग भी इसे पवित्र मानते हैं।
गुजरात के कच्छ जिले के लखपत तहसील में स्थित यह सरोवर भगवान का विष्णु का सरोवर माना जाता है। मान्यता है कि इस सरोवर में स्वयं भगवान विष्णु ने स्नान किया था। कई पुराणों और ग्रंथों में इस सरोवर के महत्व का वर्णन पाया जाता है। यहां सिंधु नदी का सागर से संगम होता है।
पवित्र नारायण सरोवर के तट पर भगवान आदिनारायण का प्राचीन और भव्य मंदिर है। नारायण सरोवर से 4 किमी दूर कोटेश्वर शिव मंदिर है। नारायण सरोवर में कार्तिक पूर्णिमा से 3 दिन का भव्य मेला आयोजित होता है। इसमें उत्तर भारत के सभी संप्रदायों के साधु-संन्यासी और अन्य भक्त शामिल होते हैं। नारायण सरोवर में श्रद्धालु अपने पितरों का श्राद्ध भी करते हैं।
मैसूर के पास स्थित पंपा सरोवर एक ऐतिहासिक स्थल है। हंपी के निकट बसे हुए ग्राम अनेगुंदी को रामायणकालीन किष्किंधा माना जाता है। तुंगभद्रा नदी को पार करने पर अनेगुंदी जाते समय मुख्य मार्ग से कुछ हटकर बाईं ओर पश्चिम दिशा में पंपा सरोवर स्थित है। पंपा सरोवर के निकट पश्चिम में पर्वत के ऊपर कई जीर्ण-शीर्ण मंदिर दिखाई पड़ते हैं। यहीं पर एक पर्वत है, जहां एक गुफा है जिससे शबरी की गुफा कहा जाता है। कहते हैं इसी गुफा में शबरी ने भगवान राम को बेर खिलाएं थें। माना जाता है कि वास्तव में रामायण में वर्णित विशाल पंपा सरोवर यही है।
अहमदाबाद से उत्तर में 130 किमी दूरी पर बसे बिंदु सरोवर को लेकर माना जाता है कि इसी सरोवर के किनारे बैठ कर कर्दम ऋषि ने कई हजार वर्षों तक तपस्या की था। इस बात का वर्णन कई ग्रथों और पुराणों में भी पाया जाता है। साथ ही इस जगह को लेकर कहा जाता है कि यहीं पर भगवान परशुराम ने अपनी मां का श्राद्ध किया था।
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