अघोर पंथ हिंदू धर्म का एक संप्रदाय है। इसका पालन करने वालों को अघोरी कहते हैं। अघोर पंथ की उत्पत्ति के काल के बारे में अभी निश्चित प्रमाण नहीं मिले हैं, परन्तु इन्हें कपालिक संप्रदाय के समकक्ष मानते हैं। ये भारत के प्राचीनतम धर्म “शैव” (शिव साधक) से संबधित हैं।Aghori Ki Rahasyamayi Duniya in Hindi…
यह आलेख निम्नलिखित के बारे में जानकारी प्रदान करता है : अघोरी मूलत and उज्जैन and कामाख्या पीठ and नासिक and रहस्यमयी दुनिया and रोचक बातें
अघोर पंथ हिंदू धर्म का एक संप्रदाय है। इसका पालन करने वालों को अघोरी कहते हैं। अघोर पंथ की उत्पत्ति के काल के बारे में अभी निश्चित प्रमाण नहीं मिले हैं, परन्तु इन्हें कपालिक संप्रदाय के समकक्ष मानते हैं। ये भारत के प्राचीनतम धर्म “शैव” (शिव साधक) से संबधित हैं।
अघोरियों को इस पृथ्वी पर भगवान शिव का जीवित रूप भी माना जाता है। शिवजी के पांच रूपों में से एक रूप अघोर रूप है। अघोरी हमेशा से लोगों की जिज्ञासा का विषय रहे हैं। अघोरियों का जीवन जितना कठिन है, उतना ही रहस्यमयी भी। अघोरियों की साधना विधि सबसे ज्यादा रहस्यमयी है। उनकी अपनी शैली, अपना विधान है, अपनी अलग विधियां हैं। अघोरी उसे कहते हैं जो घोर नहीं हो। यानी बहुत सरल और सहज हो। जिसके मन में कोई भेदभाव नहीं हो। अघोरी हर चीज में समान भाव रखते हैं। वे सड़ते जीव के मांस को भी उतना ही स्वाद लेकर खाते हैं, जितना स्वादिष्ट पकवानों को स्वाद लेकर खाया जाता है।
अघोरियों की दुनिया ही नहीं, उनकी हर बात निराली है। वे जिस पर प्रसन्न हो जाएं उसे सब कुछ दे देते हैं। अघोरियों की कई बातें ऐसी हैं जो सुनकर आप दांतों तले अंगुली दबा लेंगे। हम आपको अघोरियों की दुनिया की कुछ ऐसी ही बातें बता रहे हैं, जिनको पढ़कर आपको एहसास होगा कि वे कितनी कठिन साधना करते हैं। साथ ही उन श्मशानों के बारे में भी आज आप जानेंगे, जहां अघोरी मुख्य रूप से अपनी साधना करते हैं।
जानिए अघोरियों के बारे में रोचक बातें
1. अघोरी मूलत: तीन तरह की साधनाएं करते हैं। शिव साधना, शव साधना और श्मशान साधना। शिव साधना में शव के ऊपर पैर रखकर खड़े रहकर साधना की जाती है। बाकी तरीके शव साधना की ही तरह होते हैं। इस साधना का मूल शिव की छाती पर पार्वती द्वारा रखा हुआ पैर है। ऐसी साधनाओं में मुर्दे को प्रसाद के रूप में मांस और मदिरा चढ़ाई जाती है।
शव और शिव साधना के अतिरिक्त तीसरी साधना होती है श्मशान साधना, जिसमें आम परिवारजनों को भी शामिल किया जा सकता है। इस साधना में मुर्दे की जगह शवपीठ (जिस स्थान पर शवों का दाह संस्कार किया जाता है) की पूजा की जाती है। उस पर गंगा जल चढ़ाया जाता है। यहां प्रसाद के रूप में भी मांस-मदिरा की जगह मावा चढ़ाया जाता है।
यह मंदिर पश्चिम बंगाल के वीरभूमि जिले में एक छोटा शहर है। यहां तारा देवी का मंदिर है। इस मंदिर में मां काली का एक रूप तारा मां की प्रतिमा स्थापित है। रामपुर हाट से तारापीठ की दूरी लगभग 6 किलोमीटर है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यहां पर देवी सती के नेत्र गिरे थे। इसलिए इस स्थान को नयन तारा भी कहा जाता है।
तारापीठ मंदिर का प्रांगण श्मशान घाट के निकट स्थित है, इसे महाश्मशान घाट के नाम से जाना जाता है। इस महाश्मशान घाट में जलने वाली चिता की अग्नि कभी बुझती नहीं है। यहां आने पर लोगों को किसी प्रकार का भय नहीं लगता है। मंदिर के चारों ओर द्वारका नदी बहती है। इस श्मशान में दूर-दूर से साधक साधनाएं करने आते हैं।
असम की राजधानी दिसपुर के पास गुवाहाटी से 8 किलोमीटर दूर कामाख्या मंदिर है। यह मंदिर एक पहाड़ी पर बना है व इसका तांत्रिक महत्व है। प्राचीन काल से सतयुगीन तीर्थ कामाख्या वर्तमान में तंत्र सिद्धि का सर्वोच्च स्थल है।
पूर्वोत्तर के मुख्य द्वार कहे जाने वाले असम राज्य की राजधानी दिसपुर से 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित नीलांचल अथवा नीलशैल पर्वतमालाओं पर स्थित मां भगवती कामाख्या का सिद्ध शक्तिपीठ सती के इक्यावन शक्तिपीठों में सर्वोच्च स्थान रखता है। यहीं भगवती की महामुद्रा (योनि-कुण्ड) स्थित है। यह स्थान तांत्रिकों के लिए स्वर्ग के समान है। यहां स्थित श्मशान में भारत के विभिन्न स्थानों से तांत्रिक तंत्र सिद्धि प्राप्त करने आते हैं।
त्र्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग मन्दिर महाराष्ट्र के नासिक जिले में है। यहां के ब्रह्म गिरि पर्वत से गोदावरी नदी का उद्गम है। मंदिर के अंदर एक छोटे से गड्ढे में तीन छोटे-छोटे लिंग है, ब्रह्मा, विष्णु और शिव- इन तीनों देवों के प्रतीक माने जाते हैं। ब्रह्मगिरि पर्वत के ऊपर जाने के लिये सात सौ सीढिय़ां बनी हुई हैं।
इन सीढिय़ों पर चढऩे के बाद रामकुण्ड और लक्ष्मण कुण्ड मिलते हैं और शिखर के ऊपर पहुँचने पर गोमुख से निकलती हुई भगवती गोदावरी के दर्शन होते हैं। भगवान शिव को तंत्र शास्त्र का देवता माना जाता है। तंत्र और अघोरवाद के जन्मदाता भगवान शिव ही हैं। यहां स्थित श्मशान भी तंत्र क्रिया के लिए प्रसिद्ध है।
महाकालेश्वर मंदिर 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह मध्य प्रदेश के उज्जैन जिले में है। स्वयंभू, भव्य और दक्षिणमुखी होने के कारण महाकालेश्वर महादेव की अत्यन्त पुण्यदायी माना जाता है। इस कारण तंत्र शास्त्र में भी शिव के इस शहर को बहुत जल्दी फल देने वाला माना गया है। यहां के श्मशान में दूर-दूर से साधक तंत्र क्रिया करने आते हैं।