सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग में भिक्षा केवल ब्रह्मचारी मांगते थे। लेकिन कलयुग में चौराहे पर गाडी खड़ी होते ही भिक्षा मांगते बच्चे, ट्रेन में भिक्षा मांगते बच्चे, प्लेटफार्म पर भिक्षा मांगते बच्चे, स्कूल से एक कार्ड लाकर उस पर लिखकर भिक्षा मांगते स्कूली बच्चे देखे जा सकते हैं।Alms And Spirituality in Hindi :- श्रीमद्भागवत् पुराण में…
सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग में भिक्षा केवल ब्रह्मचारी मांगते थे। लेकिन कलयुग में चौराहे पर गाडी खड़ी होते ही भिक्षा मांगते बच्चे, ट्रेन में भिक्षा मांगते बच्चे, प्लेटफार्म पर भिक्षा मांगते बच्चे, स्कूल से एक कार्ड लाकर उस पर लिखकर भिक्षा मांगते स्कूली बच्चे देखे जा सकते हैं।
श्रीमद्भागवत् पुराण में उल्लेख मिलता है कि भगवान श्रीकृष्ण जब सांदीपनि आश्रम में पढ़ते थे। तब वह भी भिक्षा मांगते थे। यह भिक्षा वर्तमान में मांगी जाने वाली भिक्षा की तरह नहीं होती थी, बल्कि यह आध्यात्मिक भिक्षा होती थी।
भारत में भिक्षा मांगना सदियों से आध्यात्मिक परंपरा का अंग माना गया है। आध्यात्मिक इंसान भिक्षा इसलिए मांगता है, क्योंकि वह अपने अहम (ईगो) को छोड़ना चाहता है।
तथागत कहते हैं कि अगर आप बहुत ज्यादा भूखे हों और उस वक्त आप अपने आगे का भोजन किसी दूसरे को दे दें तो आप बहुत शक्तिशाली हो जाते हैं।
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