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कहानी भानगढ़ फोर्ट की – सोमेश्वर महादेव मंदिर के गर्भ गृह में स्तिथ शिवलिंग

कहानी भानगढ़ फोर्ट की – सोमेश्वर महादेव मंदिर के गर्भ गृह में स्तिथ शिवलिंग
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Bhangarh Fort History & Story in Hindi : वैसे तो हमारे देश में बहुत से हॉन्टेड प्लेस है लेकिन इस लिस्ट में जिसका नाम सबसे ऊपर आता है वो है भानगढ़ का किला (Bhangadh Fort)। जो कि बोलचाल में भूतो का भानगढ़ नाम से ज्यादा प्रसिद्ध है।Bhangarh Story in Hindi :- भानगढ़(Bhangarh) कि कहानी बड़ी ही रोचक…

यह आलेख निम्नलिखित के बारे में जानकारी प्रदान करता है : Bhangadh Fort and  Bhangarh and  Gopinath Temple and  Haunted Place and  Mangla Mata Temple and  Someshwar Mahadev Temple and  Someshwar Mahadev temple is situated in the sanctum Shivling and  गोपीनाथ मंदिर and  भानगढ़ and  भानगढ़ फोर्ट and  मंगला माता मंदिर and  राजस्थान and  सोमेश्वर महादेव मंदिर and  सोमेश्वर महादेव मंदिर के गर्भ गृह में स्तिथ शिवलिंग and  हॉन्टेड प्लेस  

Bhangarh Fort History & Story in Hindi : वैसे तो हमारे देश में बहुत से हॉन्टेड प्लेस है लेकिन इस लिस्ट में जिसका नाम सबसे ऊपर आता है वो है भानगढ़ का किला (Bhangadh Fort)। जो कि बोलचाल में भूतो का भानगढ़ नाम से ज्यादा प्रसिद्ध है।

Bhangarh Story in Hindi :-

भानगढ़(Bhangarh) कि कहानी बड़ी ही रोचक है 16 वि शताब्दी में भानगढ़ बसता है।  300 सालो तक  भानगढ़ खूब फलता फूलता है।  फिर यहाँ कि एक सुन्दर राजकुमारी  पर काले जादू में महारथ तांत्रिक सिंधु सेवड़ा आसक्त हो जाता है। वो राजकुमारी  को वश में करने लिए काला जादू करता है पर खुद ही उसका शिकार हो कर मर जाता है पर मरने से पहले भानगढ़ को बर्बादी का श्राप दे जाता है और संयोग से उसके एक महीने बाद ही पड़ौसी राज्य अजबगढ़ से लड़ाई में राजकुमारी सहित सारे भानगढ़ वासी मारे जाते है और भानगढ़  वीरान हो जाता है।

तब से वीरान हुआ भानगढ आज तक वीरान है और कहते है कि उस लड़ाई में मारे गए लोगो के भूत आज भी रात को भानगढ़ के किले में भटकते है।क्योकि तांत्रिक के श्राप के कारण उन सब कि मुक्ति नहीं हो पाई थी।  तो यह है भानगढ़ कि कहानी जो कि लगती फ़िल्मी है पर है असली। तो आइये अब हम आपको भानगढ़ के उत्थान से पतन कि यह कहानी विस्तार से बताते है।

{ पढ़ें :- इस मंदिर की माता आज भी अपने एक खास भक्त का कर रही हैं इंतजार ! }

भानगढ़ – एक परिचय (Bhangarh – An Introduction)

भानगढ़ का किला, राजस्थान के अलवर जिले में स्तिथ है। इस किले सी कुछ किलोमीटर कि दुरी पर विशव प्रसिद्ध सरिस्का राष्ट्रीय उधान (Sariska National Park) है। भानगढ़ तीन तरफ़ पहाड़ियों से सुरक्षित है। सामरिक दृष्टि से किसी भी राज्य के संचालन के यह उपयुक्त स्थान है। सुरक्षा की दृष्टि से इसे भागों में बांटा गया है। सबसे पहले एक बड़ी प्राचीर है जिससे दोनो तरफ़ की पहाड़ियों को जोड़ा गया है। इस प्राचीर के मुख्य द्वार पर हनुमान जी विराजमान हैं। इसके पश्चात बाजार प्रारंभ होता है, बाजार की समाप्ति के बाद राजमहल के परिसर के विभाजन के लिए त्रिपोलिया द्वार बना हुआ है।

इसके पश्चात राज महल स्थित है। इस किले में कई मंदिर भी है जिसमे भगवान सोमेश्वर, गोपीनाथ, मंगला देवी और केशव राय के मंदिर प्रमुख मंदिर हैं। इन मंदिरों की दीवारों और खम्भों पर की गई नक़्क़ाशी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह समूचा क़िला कितना ख़ूबसूरत और भव्य रहा होगा। सोमेश्वर मंदिर के बगल में एक बाबड़ी है जिसमें अब भी आसपास के गांवों के लोग नहाया करते हैं ।

भानगढ़ का इतिहास (History Of Bhangarh)

{ पढ़ें :- आज भी भगवान गणेश के इन मंदिरों में चमत्कार होते है ! }

भानगढ़ क़िले को आमेर के राजा भगवंत दास ने 1573 में बनवाया था। भानगढ़ के बसने के बाद लगभग 300 वर्षों तक यह आबाद रहा। मुग़ल शहंशाह अकबर के नवरत्नों में शामिल और भगवंत दास के छोटे बेटे व अम्बर(आमेर ) के महान मुगल सेनापति, मानसिंह के छोटे भाई राजा माधो सिंह ने बाद में (1613) इसे अपनी रिहाइश बना लिया। माधौसिंह के बाद उसका पुत्र छत्र सिंह गद्दी पर बैठा। विक्रम संवत 1722 में इसी वंश के हरिसिंह ने गद्दी संभाली।इसके साथ ही भानगढ की चमक कम होने लगी।

छत्र सिंह के बेटे अजब सिह ने समीप ही अजबगढ़ बनवाया और वहीं रहने लगा। यह समय औरंगजेब के शासन का था। औरंगजेब कट्टर पंथी मुसलमान था। उसने अपने बाप को नहीं छोड़ा तो इन्हे कहाँ छोड़ता। उसके दबाव में आकर हरिसिंह के दो बेटे मुसलमान हो गए, जिन्हें मोहम्मद कुलीज एवं मोहम्मद दहलीज के नाम से जाना गया। इन दोनों भाईयों के मुसलमान बनने एवं औरंगजेब की शासन पर पकड़ ढीली होने पर जयपुर के महाराजा सवाई जय सिंह ने इन्हे मारकर भानगढ़ पर कब्जा कर लिया तथा माधो सिंह के वंशजों को गद्दी दे दी।

राजकुमारी रत्नावती और तांत्रिक सिंधु सेवड़ा (Rajkumari Ratnawati aur Tantarik Sindhu Devada)

कहते है कि भानगढ़ कि राजकुमारी रत्नावती बेहद खुबसुरत थी। उस समय उनके रूप की चर्चा पूरे राज्य में थी और देश के कोने कोने के राजकुमार उनसे विवाह करने के इच्छु‍क थे। उस समय उनकी उम्र महज 18 वर्ष ही थी और उनका यौवन उनके रूप में और निखार ला चुका था। उस समय कई राज्योi से उनके लिए विवाह के प्रस्ता व आ रहे थे। उसी दौरान वो एक बार किले से अपनी सखियों के साथ बाजार में निकती थीं। राजकुमारी रत्नाथवती एक इत्र की दुकान पर पहुंची और वो इत्रों को हाथों में लेकर उसकी खुशबू ले रही थी। उसी समय उस दुकान से कुछ ही दूरी सिंधु सेवड़ा नाम का व्यnक्ति खड़ा होकर उन्हेा बहुत ही गौर से देख रहा था।

सिंधु सेवड़ा उसी राज्य; में रहता था और वो काले जादू का महारथी था। ऐसा बताया जाता है कि वो राजकुमारी के रूप का दिवाना था और उनसे प्रगाण प्रेम करता था। वो किसी भी तरह राजकुमारी को हासिल करना चाहता था। इसलिए उसने उस दुकान के पास आकर एक इत्र के बोतल जिसे रानी पसंद कर रही थी उसने उस बोतल पर काला जादू कर दिया जो राजकुमारी के वशीकरण के लिए किया था। लेकिन एक विश्वशनीय व्यक्ति ने राजकुमारी को इस राज के बारे में बता दिया।

राजकुमारी रत्नाकवती ने उस इत्र के बोतल को उठाया, लेकिन उसे वही पास के एक पत्थकर पर पटक दिया। पत्थlर पर पटकते ही वो बोतल टूट गया और सारा इत्र उस पत्‍थर पर बिखर गया। इसके बाद से ही वो पत्थ र फिसलते हुए उस तांत्रिक सिंधु सेवड़ा के पीछे चल पड़ा और तांत्रिक को कुचल दिया, जिससे उसकी मौके पर ही मौत हो गयी। मरने से पहले तांत्रिक ने श्राप दिया कि इस किले में रहने वालें सभी लोग जल्दो ही मर जायेंगे और वो दोबारा जन्मश नहीं ले सकेंगे और ताउम्र उनकी आत्मांएं इस किले में भटकती रहेंगी।

{ पढ़ें :- भारत के इन मंदिरों में आज भी होता है जादू-टोना ! }

उस तांत्रिक के मौत के कुछ दिनों के बाद ही भानगढ़ और अजबगढ़ के बीच युद्ध हुआ जिसमें किले में रहने वाले सारे लोग मारे गये। यहां तक की राजकुमारी रत्नाचवती भी उस शाप से नहीं बच सकी और उनकी भी मौत हो गयी। एक ही किले में एक साथ इतने बड़े कत्लेउआम के बाद वहां मौत की चींखें गूंज गयी और आज भी उस किले में उनकी रू‍हें घुमती हैं।

किलें में सूर्यास्ता के बाद प्रवेश निषेध (Entrance Prohibited after Sunset)

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा खुदाई से इस बात के पर्याप्त सबूत मिले हैं कि यह शहर एक प्राचीन ऐतिहासिक स्थल है। फिलहाल इस किले की देख रेख भारत सरकार द्वारा की जाती है। किले के चारों तरफ आर्कियोंलाजिकल सर्वे आफ इंडिया (एएसआई) की टीम मौजूद रहती हैं। एएसआई ने सख्तक हिदायत दे रखी है कि सूर्यास्ता के बाद इस इलाके में किसी भी व्यतक्ति के रूकने के लिए मनाही है।

भारतीय पुरातत्व के द्वारा इस खंडहर को संरक्षित कर दिया गया है। गौर करने वाली बात है जहाँ पुरात्तव विभाग ने हर संरक्षित क्षेत्र में अपने ऑफिस बनवाये है वहीँ इस किले के संरक्षण के लिए पुरातत्व विभाग ने अपना ऑफिस भानगढ़ से दूर बनाया है।

भानगढ़ किले के मंदिर ( Temple of Bhangarh)

जैसा कि हमने आपको बताया कि इस किले में कई मंदिर भी है जिसमे भगवान सोमेश्वर, गोपीनाथ, मंगला देवी और केशव राय के मंदिर प्रमुख मंदिर हैं। इन मंदिरो कि एक यह विशेषता है कि जहाँ किले सहित पूरा भानगढ़ खंडहर में तब्दील हो चूका है वही भानगढ़ के सारे के सारे मंदिर सही है अलबत्ता अधिकतर मंदिरो से मुर्तिया गायब है। सोमेश्वर महादेव मंदिर में जरूर शिवलिंग है।

दूसरी बात भानगढ़ के सोमेशवर महादेव मंदिर में सिंधु सेवड़ा तांत्रिक के वंशज ही पूजा पाठ कर रहे है। ऐसा हमे 2009 में हमारी भानगढ़ यात्रा के दौरान उस मंदिर के पुजारी ने बताया था। जब हमने उनसे भूतों के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि यहाँ भूत है यह बात सही है पर वो भूत किले के अंदर केवल खंडहर हो चुके महल में ही रहते है महल से निचे नहीं आते है क्योकि महल की सीढ़ियों के बिलकुल पास भोमिया जी का स्थान है जो उन्हें महल से बाहर नहीं आने देते है। उन्होंने यह भी कहा कि रात के समय आप किला परिसर में रह सकते है कोई दिक्क्त नहीं है पर महल के अंदर नहीं जाना चाहिए।

तो यह है भानगढ़ कि कहानी अब वहाँ भूत है कि नहीं यह एक विवाद का विषय हो  सकता है पर यह जरूर है कि भानगढ़ एक बार घूमने लायक जगह है और यदि आप भानगढ़ घूमने का प्रोग्राम बनाये तो हमारी यह राय है कि आप वहा सावन ( जुलाई -अगस्त ) में जाए क्योकि भानगढ़ तीनो तरफ से अरावली कि पहाड़ियो से घिरा हुआ है और  सावन में उन पहाड़ियो में बहार आ जाती है। और यदि आपको सोमेशवर महादेव मंदिर के पुजारी से भानगढ़ का इतिहास सुनना हो तो आप सोमवार के दिन जाए क्योंकि पुजारी जी सोमवार को पूरा दिन मंदिर में रहते है बाकी दिन तो सुबह पूजा करके वापस चले जाते है।

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2012-02-18T17:37:45+05:30
Indian Spiritual Team
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