सुख – दुःख का भोक्ता मन नहीं है प्रत्युत स्वयं है | मन तो करण है | कर्ता – भोक्ता स्वयं है मन नहीं |Bhitr Ka Sukh Dukh in Hindi :- रुपयों के द्वारा यदि आप बड़े हो गये तो यह आपकी बड़ाई नहीं है , प्रत्युत रुपयों कि बड़ाई है |आप तो छोटे ही…
सुख – दुःख का भोक्ता मन नहीं है प्रत्युत स्वयं है | मन तो करण है | कर्ता – भोक्ता स्वयं है मन नहीं |
रुपयों के द्वारा यदि आप बड़े हो गये तो यह आपकी बड़ाई नहीं है , प्रत्युत रुपयों कि बड़ाई है |आप तो छोटे ही हुए |
मनुष्य सबसे श्रेष्ठ , ऊँचा बनना चाहता है | श्रेष्ठ बनने के लिए नाशवान शरीर – संसार से ऊँचा उठना चाहिए | ऊँचे – से – ऊँचे परमात्मा हैं |
उन परमात्मा का आश्रय लेने से ही मनुष्य ऊँचा हो सकता है |
संसार का ज्ञान संसार से अलग होने पर होता है – यह नियम है , क्योंकि वास्तव में संसार अलग है |
संसार के साथ रहते हुए संसार का ज्ञान नहीं कर सकते |
संसार से कुछ भी चाहना संसार के साथ रहना है |
यह आलेख निम्नलिखित के बारे में जानकारी प्रदान करता है : परमात्मा, मनुष्य, शरीर