तना और चिंतन !Chetna Aur Chintan in Hindi :- चेतना और चिंतन जीवो के अस्तित्व के होने और उस अस्तित्व को स्वयंसमझने का नाम है. मैं और आप या ब्रम्हाण के समस्त जीव जिनकी उत्त्पति हुई और जो चर है वे सब एक चेतना के कारण ही अस्तित्व में है. और यह चेतना हमें मिली है उस…
तना और चिंतन !
चेतना और चिंतन जीवो के अस्तित्व के होने और उस अस्तित्व को स्वयंसमझने का नाम है. मैं और आप या ब्रम्हाण के समस्त जीव जिनकी उत्त्पति हुई और जो चर है वे सब एक चेतना के कारण ही अस्तित्व में है. और यह चेतना हमें मिली है उस परमात्मा से जिसकी प्रकृति चेतन भी है और शून्य भी ,जो स्वयं अपनी प्रकृति का रचयिता और विध्वंशकर्ता भी है.
चेतना :
चेतना जीवो की वो शक्ति जिस से जिव अस्तित्व में है,जिससे वह बोल,समझ, सुन और कोई कार्य कर सकता है मैं जीव हु! , मैं चर हु ! , मैं भावनायुक्त हु! , मैं मैं हु! , मैं कुछ हु !, मैं संसार को समझने वाला हूँ, मैं द्र्व्यों को जानने वाला हूँ, मैं जीव हो के दूसरे सजीव और निर्जीवो में भेद को जान के उनसे भावनायुक्त बंधन बनानेवाला हु , मैं करता हूँ, मैं.
चिंतन:
चिंतन जीवो को प्राप्त चेतना के कारण ही संभव है . सबसे बड़ी बात ये है की ,सोचते तो बहोत से चर जीव है .परन्तु बुद्धिबल द्वारा सही मार्ग में सोचना,अथार्थ जिसे हम विवेक द्वारा सोचना कहते है वही चिंतन होता है. चिंतन अध्यात्म और भौतिक जगत दोनों का हिस्सा हैं. दोनों ही जगत में प्रगति करने के लिए चिंतन आवश्यक है.
आध्यात्मिक चेतना और चिंतन :
आध्यात्मिक चेतना और चिंतन समझना इसलिए जरुरी है ,क्यों की -इस भौतिकवाद में जन्मे सभी चेतन जीवो को चिंतन करना हो तो सिर्फ भौतिक द्र्व्यों और संसाधनों और कुछ कदम तक दिखाई देने वाला भविष्य ,के बारे में ही चिंतन करते है.
यह चेतन आत्मा इस शरीर में है ,परन्तु वो भौतिक वाद में खो गई है,अध्यात्म की ओर किये जान वाला चिंतन जो की सत्य और धर्म मार्ग है , उस से ये आत्मा, ये चेतन आत्मा भी आध्यात्मिक हो जाएगी और लाभ क्या होता है? अल्पकालीन सुख: जो जल्द ही समाप्त हो जाता है और मनुष्य फिर से सीर पिटता है,फिर वही निराशा फिर वही शोक!
मनुष्यचेतना हमें इस लिए ही मिली है ,ताकि हम सुख और दुःख की आने वाली निरंतर लहरो से छूट सके ,और उसके लिए सहायक , मात्र है अध्यात्म चेतना.
गोस्वामीतुलसीदास जी कहते है: बड़े भाग्य से, मानुस तन पाया.
मनुष्य को छोड़ ,चिंतन और कोई जिव नहीं कर पाते,परमात्मा ने उन्हें ये गुण नहीं दिया है तो फिर क्यों न हम अपने इस चिंतन को अध्यात्म की तरफ मोड़ के सुख और दुःख के निरंतर आने वाली लहरों से हम निकल जाए और आध्यात्मिक चिंतन कर उस परमात्मा तक पहुंचने का प्रयत्न करे जहा परमानंद है.
यह आलेख निम्नलिखित के बारे में जानकारी प्रदान करता है : परमात्मा, भविष्य, मनुष्य