chhath puja ki vidhi in hindi – छठ पूजा की विधि एवम व्रत कथा ! हिन्दू पंचांग के अनुसार छठ पूजा chhath puja ki vidhi का त्यौहार कार्तिक मॉस के शुक्ल पक्ष के चतुर्थी से सप्तमी तिथि तक मनाया जाता है. यह पर्व सूर्य देव chhath puja को समर्पित है तथा भक्तो का उनके प्रति…
हिन्दू पंचांग के अनुसार छठ पूजा chhath puja ki vidhi का त्यौहार कार्तिक मॉस के शुक्ल पक्ष के चतुर्थी से सप्तमी तिथि तक मनाया जाता है. यह पर्व सूर्य देव chhath puja को समर्पित है तथा भक्तो का उनके प्रति अटूट ( छठ पूजा ) आस्था को प्रदर्शित करता है.
भगवान सूर्य देव chhat pooja को आदित्य भी कहा जाता है यह एक प्रत्यक्ष देवता है जिनके दर्शन किये जा सकते है. सूर्य देव के रौशनी से ही पृथ्वी में प्रकृति का संचालन चालु है. इनके किरणों से इस धरती में प्राण संचार होता है व फल, फूल, अनाज, अंड एवम शुक्र का निर्माण होता है.
इस तिथि को सूर्य के साथ ही षष्ठी देवी की भी पूजा होती है chhath puja vidhi . पुराणों के अनुसार प्रकृति देवी के एक प्रधान अंश को ‘देवसेना’ कहते हैं; जो कि सबसे श्रेष्ठ ‘मातृका’ मानी गई है. ये लोक के समस्त बालकों की रक्षिका देवी है. प्रकृति का छठा अंश होने के कारण इनका एक नाम “षष्ठी” भी है.
षष्ठी देवी का पूजन : chhath puja songs प्रसार ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार राजा प्रियव्रत के काल से आरम्भ हुआ. जब षष्ठी देवी की पूजा ‘छठ मइया’ के रूप में प्रचलित हुई. वास्तव में सूर्य को अर्ध्य तथा षष्ठी देवी का पूजन एक ही तिथि को पड़ने के कारण दोनों का समन्वय भारतीय जनमानस में इस प्रकार को गया कि सूर्य पूजा और छठ पूजा में भेद करना मुश्किल है. वास्तव में ये दो अलग – अलग त्योहार हैं. सूर्य की षष्ठी को दोनों की ही पूजा होती है.
छठ पूजा के इस पावन पर्व में देवी षष्ठी माता एवम सूर्य देव को प्रसन्न करने के लिए स्त्री एवम पुरुष दोनों ही व्रत रखते है.व्रत चर दिनो का होता है पहले दिन यानी चतुर्थी को आत्म शुद्धि हेतु व्रत करने वाले केवल अरवा खाते हैं यानी शुद्ध आहार लेते हैं.
पंचमी के दिन नहा खा होता है यानी स्नान करके पूजा पाठ करके संध्या काल में गुड़ और नये चावल से खीर बनाकर फल और मिष्टान से छठी माता की पूजा की जाती है फिर व्रत करने वाले कुमारी कन्याओं को एवं ब्रह्मणों को भोजन करवाकर इसी खीर को प्रसाद के तर पर खाते हैं.
षष्टी के दिन घर में पवित्रता एवं शुद्धता के साथ उत्तम पकवान बनाये जाते हैं. संध्या के समय पकवानों को बड़े बडे बांस के डालों में भरकर जलाशय के निकट यानी नदी, तालाब, सरोवर पर ले जाया जाता है. इन जलाशयों में ईख का घर बनाकर उनपर दीया जालाया जाता है.
व्रत करने वाले जल में स्नान कर इन डालों को उठाकर डूबते सूर्य एवं षष्टी माता को आर्घ्य देते हैं. सूर्यास्त के पश्चात लोग अपने अपने घर वापस आ जाते हैं. रात भर जागरण किया जाता है. सप्तमी के दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में पुन: संध्या काल की तरह डालों में पकवान, नारियल, केला, मिठाई भर कर नदी तट पर लोग जमा होते हैं.
व्रत करने वाले सुबह के समय उगते सूर्य को आर्घ्य देते हैं. अंकुरित चना हाथ में लेकर षष्ठी व्रत की कथा कही और सुनी जाती है. कथा के बाद प्रसाद वितरण किया जाता है और फिर सभी अपने अपने घर लट आते हैं. व्रत करने वाले इस दिन परायण करते हैं.
एक थे राजा प्रियव्रत उनकी पत्नी थी मालिनी. राजा रानी नि:संतान होने से बहुत दु:खी थे. उन्होंने महर्षि कश्यप से पुत्रेष्ठि यज्ञ करवाया. यज्ञ के प्रभाव से मालिनी गर्भवती हुई परंतु न महीने बाद जब उन्होंने बालक को जन्म दिया तो वह मृत पैदा हुआ. प्रियव्रत इस से अत्यंत दु:खी हुए और आत्म हत्या करने हेतु तत्पर हुए.
प्रियव्रत जैसे ही आत्महत्या करने वाले थे उसी समय एक देवी वहां प्रकट हुईं. देवी ने कहा प्रियव्रत मैं षष्टी देवी हूं. मेरी पूजा आराधना से पुत्र की प्राप्ति होती है, मैं सभी प्रकार की मनोकामना पूर्ण करने वाली हूं.
अत: तुम मेरी पूजा करो तुम्हे पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी. राजा ने देवी की आज्ञा मान कर कार्तिक शुक्ल षष्टी तिथि को देवी षष्टी की पूजा की जिससे उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई. इस दिन से ही छठ व्रत का अनुष्ठान चला आ रहा है.
एक अन्य मान्यता के अनुसार भगवान श्रीरामचन्द्र जी जब अयोध्या लटकर आये तब राजतिलक के पश्चात उन्होंने माता सीता के साथ कार्तिक शुक्ल षष्ठी तिथि को सूर्य देवता की व्रतोपासना की और उस दिन से जनसामान्य में यह पर्व मान्य हो गया और दिनानुदिन इस त्यहार की महत्ता बढ़ती गई व पूर्ण आस्था एवं भक्ति के साथ यह त्यौहार मनाया जाने लगा.
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