मनुष्य को क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए, इसका वर्णन कई ग्रंथों और शास्त्रों में पाया जाता है। इन बातों को समझ कर, उनका पालन करने पर जीवन को सुखद बनाया जा सकता है। श्रीमद् देवी भागवत महापुराण में स्वयं देवी भगवती ने दस नियमों के बारे में बताया है। इन नियमों का पालन…
मनुष्य को क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए, इसका वर्णन कई ग्रंथों और शास्त्रों में पाया जाता है। इन बातों को समझ कर, उनका पालन करने पर जीवन को सुखद बनाया जा सकता है। श्रीमद् देवी भागवत महापुराण में स्वयं देवी भगवती ने दस नियमों के बारे में बताया है। इन नियमों का पालन हर मनुष्य को अपने जीवन में करना ही चाहिए।
श्रीमद् देवी भागवत महापुराण के अनुसार, ये है वह दस नियम जिन्हें हर मनुष्य को अपने जीवन में अपनाना चाहिए-
तपः सन्तोष आस्तिक्यं दानं देवस्य पूजनम्।
सिद्धान्तश्रवणं चैव ह्रीर्मतिश्च जपो हुतम्।।
अर्थात- तप, संतोष, आस्तिकता, दान, देवपूजन, शास्त्रसिद्धांतों का श्रवण, लज्जा, सद्बुद्धि, जप और हवन- ये दस नियम मेरे द्वारा (देवी भगवती) कहे गए है।
1. तप- तपस्या करने या ध्यान लगाने से मन को शांति मिलती है। मनुष्य को जीवन में कई बातें होती हैं, जिन्हें समझ पाना कभी-कभी मुश्किल हो जाता है। तप करने या ध्यान लगाने से हमारा सारा ध्यान एक जगह केन्द्रित हो जाता है और मन भी शांत हो जाता है। शांत मन से किसी भी समस्या का हल निकाला जा सकता है। साथ ही ध्यान लगाने से कई मानसिक और शारीरिक रोगों का भी नाश होता है।
2. संतोष- मनुष्य के जीवन में कई इच्छाएं होती हैं। हर इच्छा को पूरा कर पाना संभव नहीं होता। ऐसे में मनुष्य को अपने मन में संतोष (संतुष्टि) रखना बहुत जरूरी होता है। असंतोष की वजह से मन में जलन, लालच जैसी भावनाएं जन्म लेने लगती हैं। जिनकी वजह से मनुष्य गलत काम तक करने को तैयार हो जाता है। सुखी जीवन के लिए इन भावनाओं से दूर रहना बहुत आवश्यक होता है। इसलिए, मनुष्य हमेशा अपने मन में संतोष रखना चाहिए।
3. आस्तिकता- आस्तिकता का अर्थ होता है- देवी-देवता में विश्वास रखना। मनुष्य को हमेशा ही देवी-देवताओं का स्मरण करते रहना चाहिए। नास्तिक व्यक्ति पशु के समान होता है। ऐसे व्यक्ति के लिए अच्छा-बुरा कुछ नहीं होता। वह बुरे कर्मों को भी बिना किसी भय के करता जाता है। जीवन में सफलता हासिल करने के लिए आस्तिकता की भावना होना बहुत ही जरूरी होता है।
4. दान- हिंदू धर्म में दान का बहुत ही महत्व है। दान करने से पुण्य मिलता है। दान करने पर ग्रहों के दोषों का भी नाश होता है। कई बार मनुष्य को उसकी ग्रह दशाओं की वजह से कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। दान देकर या अन्य पुण्य कर्म करके ग्रह दोषों का निवारण किया जा सकता है। मनुष्य को अपने जीवन में हमेशा ही दान कर्म करते रहना चाहिए।
5. देव पूजन- हर मनुष्य की कई कामनाएं होती हैं। अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए कर्मों के साथ-साथ देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना भी की जाती है। मनुष्य अपने हर दुःख में, हर परेशानी में भगवान को याद अवश्य करता है। सुखी जीवन और हमेशा भगवान की कृपा अपने परिवार पर बनाए रखने के लिए पूरी श्रद्धा के साथ भगवान की पूजा करनी चाहिए।
6. शास्त्र सिद्धांतों का श्रवण- कई पुराणों और शास्त्रों में धर्म-ज्ञान संबंधी कई बातें बताई गई हैं। जो बातें न कि सिर्फ उस समय बल्कि आज भी बहुत उपयोगी हैं। अगर उन सिद्धान्तों का जीवन में पालन किया जाए तो किसी भी कठिनाई का सामना आसानी से किया जा सकता है। शास्त्रों में दिए गए सिद्धांतों से सीख के साथ-साथ पुण्य भी प्राप्त होता है। इसलिए, शास्त्रों और पुराणों का अध्यन और श्रवण करना चाहिए।
7. लज्जा- किसी भी मनुष्य में लज्जा (शर्म) होना बहुत जरूरी होता है। बेशर्म मनुष्य पशु के समान होता है। जिस मनुष्य के मन में लज्जा का भाव नहीं होता, वह कोई भी दुष्कर्म कर सकता है। जिसकी वजह से कई बार न की सिर्फ उसे बल्कि उसके परिवार को भी अपमान का पात्र बनना पड़ सकता है। लज्जा ही मनुष्य को सही और गलत में फर्क करना सिखाती है। मनुष्य को अपने मन में लज्जा का भाव निश्चित ही रखना चाहिए।
8. सदबुद्धि- किसी भी मनुष्य को अच्छा या बुरा उसकी बुद्धि ही बनाती है। अच्छी सोच रखने वाला मनुष्य जीवन में हमेशा ही सफलता पाता है। बुरी सोच रखने वाला मनुष्य कभी उन्नति नहीं कर पाता। मनुष्य की बुद्धि उसके स्वभाव को दर्शाती है। सदबुद्धि वाला मनुष्य धर्म का पालन करने वाला होता है और उसकी बुद्धि कभी गलत कामों की ओर नहीं जाती। अतः हमेशा सदबुद्धि का पालन करना चाहिए।
9. जप- पुराणों और शास्त्रों के अनुसार, जीवन में कई समस्याओं का हल केवल भगवान का नाम जपने से ही पाया जा सकता है। जो मनुष्य पूरी श्रद्धा से भगवान का नाम जपता हो, उस पर भगवान की कृपा हमेशा बनी रहती है। भगवान का भजन-कीर्तन करने से मन को शांति मिलती है और पुण्य की भी प्राप्ति होती है। शास्त्रों के अनुसार, कलियुग में देवी-देवताओं का केवल नाम ले लेने मात्र से ही पापों से मुक्ति मिल जाती है।
10. हवन- किसी भी शुभ काम के मौके पर हवन किया जाता है। हवन करने से घर का वातावरण शुद्ध होता है। कहा जाता है, हवन करने पर हवन में दी गई आहुति का एक भाग सीधे देवी-देवताओं को प्राप्त होता है। उससे घर में देवी-देवताओं की कृपा सदा बनी रहती है। साथ ही वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा भी बढ़ती है।
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