हिंदु धर्म की कुछ दंत कथाओं में भगवान गणेश को कुंवारा माना जाता है। लेकिन कुछ अलग कथाओं में उन्हे पारिवारिक पुरूष के रूप में भी जाना जाता है। हिंदु पुराणों में वर्णन किया गया है कि भगवान गणेश की दो पत्नियां है – रिद्धि और सिद्धि। इन दोनों के साथ विवाह होने की कहानी…
हिंदु धर्म की कुछ दंत कथाओं में भगवान गणेश को कुंवारा माना जाता है। लेकिन कुछ अलग कथाओं में उन्हे पारिवारिक पुरूष के रूप में भी जाना जाता है। हिंदु पुराणों में वर्णन किया गया है कि भगवान गणेश की दो पत्नियां है – रिद्धि और सिद्धि। इन दोनों के साथ विवाह होने की कहानी अत्यधिक रूचिकर है।
भगवान शिव और माता पार्वती बहुत प्रसन्न थे, जब गणेश का सृजन हुआ। उसके पश्चात् भगवान गणेश द्वारा की जाने वाली सेवा के कारण वो दोनो खुश रहते थे। तारकासुर के वध के पश्चात्, उनका पुत्र कार्तिकेय हुआ था, जिन्हे समस्त संसार में सुब्रमण्यम के नाम से भी जाना जाता है।
जब दोनों संतान बड़ी हो गईं, तो शिव और पार्वती को उनकी शादी की चिंता हुई। वो चाहते थे कि दोनो का विवाह उचित समय पर हो जाएं। जब कार्तिकेय और गणेश के सामने के यह बात हुई तो वे आपस में झगड़ने लगे। इसके आगे की कहानी निम्न प्रकार है:
किसकी शादी होगी सबसे पहले
कार्तिकेय और गणेश के बीच के झगड़े को सुलझाने के लिए शिव और पार्वती ने एक योजना बनाई। उन दोनों को बुलाया और उनसे कहा कि, मेरे प्यारे पुत्रों, हम लोग, तुम दोनों को बराबरी से प्यार करते हैं। तुम दोनों के बीच कोई अंतर नहीं मानते, इसलिए तुम दोनों में से कौन पहले शादी करेगा, इस बात का निर्णय एक प्रतियोगिता से होगा। तुम दोनों पूरी धरती का चक्कर लगाओ, जो सबसे पहले वापस आ जाएगा, वो पहले शादी करेगा।
किसने लगाया दुनिया का पहले चक्कर
कार्तिकेय अपने मोर पर सवार होकर चक्कर लगाने निकल गए, लेकिन गणेश जी वहीं रूक गए। उन्होने पूरी श्रद्धा से अपने माता-पिता की पूजा की और उनके सात चक्कर लगा लिए। जैसे ही उन्होने सात चक्कर लगाएं, कार्तिकेय आ गए। अब कार्तिकेय ने कहा कि उनका विवाह पहले कराया जाएं क्योंकि उन्होने सारी दुनिया का चक्कर सबसे पहले लगाया।
माता पिता ही हैं समस्त दुनिया
वहीं, गणेश जी ने अपनी बात कही, उन्होने कहा कि, प्यारे माता-पिता, वेदों के अनुसार, संतान के लिए उसके माता-पिता ही समस्त दुनिया होती है, उन्ही के चारों ओर उसका जीवन होता है और वहीं उसके लिए सब कुछ होते हैं। इसलिए, मेरा विवाह पहले होना चाहिए।
गणेश की शादी का निर्णय
गणेश जी की यह बात सुनकर, भगवान शिव और माता पार्वती भाव-विभोर हो उठें, वो गद्गद् हो उठे और गणेश की शादी पहले करने का निर्णय लिया।
रिद्धि और सिद्धि से हुआ विवाह
प्रजापति विश्वरूप की दो पुत्रियां थी- रिद्धि और सिद्धि। इन दोनों का चयन, गणेश से शादी करने के लिए किया गया। विश्वनिर्माता विश्वकर्मा ने अपनी पुत्रियों की शादी की खूब तैयारियां की। धूमधाम से शादी सम्पन्न हुई, उसके बाद, उन दोनों बहनों को लाभ और क्षेम नामक दो पुत्र हुए।
कहां गए कार्तिकेय
इसके पश्चात्, भगवान सुब्रमण्यम यानि कार्तिकेय ने अपने माता-पिता और भाई से विदा ली और कैलाश पर्वत की मनसा झील के नजदीक क्रुंचा श्रेणी पर चले गए। (इस पूरी घटना का वर्धन स्कंद पुराण में किया गया है, साथ ही साथ इसमें यह भी बताया गया कि कार्तिकेय का विवाह भी वाली और दीवोसना नामक दो स्त्रियों से हुआ था।)
गणेश को नहीं मिली कोई लड़की
चूंकि भगवान गणेश का सिर, हाथी वाला था, तो कोई भी लड़की उनसे शादी करने को तैयार नहीं थी। सारे भगवानों के पुत्रों का विवाह हो रहा था और गणेश को कोई लड़की नहीं मिल रही थी, इससे गणेश का गुस्सा बढ़ता ही जा रहा था। जिससे उन्होने दूसरों की शादी में व्यवधान उत्पन्न करना शुरू कर दिया था। वह अपने चूहे को बोलते कि वो छेंद कर दें और वह उसी छेंद वाले रास्ते में हर शादी में पहुंच जाते थे।
जब सभी देवता हो गए गणेश से परेशान
भगवानों को इससे बहुत दिक्कत हुई, वो गणेश की इन हरकतों से तंग आने लगे। सभी ने मिकल ब्रह्मा से गणेश की इन हरकतों का वर्णन किया और शीघ्र ही समाधान करने का आग्रह किया।
गणेश जी के दो पुत्र शुभी और लाभर
सभी ने गणेश को सूचित किया कि हे गणेश, भगवान ब्रह्मा ने दो स्त्रियों का सृजन किया है जिनका नाम रिद्धि और सिद्धि है। इनका विवाह आपसे होगा। इसके बाद, गणेश जी का विवाह इन दोनों से हो गया और उन दोनों से गणेश जी को दो पुत्र हुए, जिनका नाम शुभ और लाभ था। गणेश जी की एक पुत्री भी थी, जिनका नाम संतोषी माता था।