डोल ग्यारस के व्रत को करने से ही जन्माष्टमी व्रत का फल प्राप्त होता है। यह भी कहा गया है कि इस एकादशी को करने से वाजपेय यज्ञ करने के फल की प्राप्ति होती है।Dol Gyaras Virat Spcial Story in Hindi :- भक्तों के कंधों पर बैठकर भगवान इस दिन जलाशय के किनारे जाते हैं…
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डोल ग्यारस के व्रत को करने से ही जन्माष्टमी व्रत का फल प्राप्त होता है। यह भी कहा गया है कि इस एकादशी को करने से वाजपेय यज्ञ करने के फल की प्राप्ति होती है।
भक्तों के कंधों पर बैठकर भगवान इस दिन जलाशय के किनारे जाते हैं और भक्त प्रभु की झांकी निहारकर इस उत्सव का उल्लास मनाते हैं।
जन्माष्टमी व्रत के फल के लिए डोल ग्यारस व्रत जरूरी : वर्षभर आने वाली सभी एकादशियों में डोल ग्यारस का विशेष महत्व है। इसे सभी एकादशियों में श्रेष्ठ यानी बड़ी ग्यारस कहा जाता है। अगर डोल ग्यारस चौमासे में आती है तो उसका महत्व और भी ज्यादा बढ़ जाता है। भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मथुरा में श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था।
इसी दिन नंद के घर कन्या का जन्म हुआ था जिसे कंस ने मारने का प्रयत्न किया। कन्या के स्थान पर पर कृष्ण पहुंचे तो नंद के घर आनंद हो गया। अठारह दिन बाद भाद्रपद शुक्ल एकादशी को मां यशोदा कृष्ण को लिए पालकी में बैठ जलस्रोत पूजने निकली।
एक मान्यता यह भी रही है कि इसी दिन मां यशोदा ने कृष्ण के वा धोये थे। इसी की स्मृति में इस दिन पूरे देश में समारोह मनाए जाते हैं। भगवान को झूले में बिठाकर उनकी आकर्षक झांकी सजाई जाती है।
भक्त उत्साह से भगवान का चल समारोह निकालते हैं। यह चल समारोह श्रद्धा से पगा होता है। बनाए विमानों में ईश-प्रतिमाओं को नदी-तालाबों के किनारे ले जाकर जल पूजा की जाती है। सांझ पड़े जलाशय के किनारे ही देवमूर्तियों की आरती उतारी जाती है और फिर उनकी झांकी मंदिर लौट आती है।
आकर्षक ‘डोल’ (झूले) में भगवान चूंकि नगर भ्रमण पर निकलते हैं तो इसे डोल ग्यारस कहा जाता है। यह दिन परिवर्तनी या जलझूलनी एकादशी भी कहलाता है। ‘परिवर्तनी’ इसलिए क्योंकि शैय्या पर निद्रा में लेट भगवान विष्णु इस दिन करवट बदलते हैं। यह एकादशी ‘पद्या एकादशी’ और ‘जलझूलनी एकादशी’ के नाम से भी जानी जाती है।
जन्म के बाद 11 वें दिन जब माता यशोदा ने श्रीकृष्ण का जलवा पूजन किया तो उसके पश्चात ही उनकी संस्कार शिक्षा शुरू हुई। चूंकि एकादशी पर गोकुल में उत्सव मना था तो उसी प्रकार आज भी कई स्थानों पर इस दिन मेले और झांकियों का आयोजन किया जाता है।
डोल ग्यारस पर भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा भी की जाती है क्योंकि इसी दिन राजा बलि से भगवान विष्णु ने वामन रूप में उनका सर्वस्व मांग लिया था। बलि की भक्ति से प्रसन्ना होकर भगवान ने उसे मनचाहा वर दिया था। इसी वजह इसे ‘वामन ग्यारसट भी कहते हैं।
इस एकादशी व्रत को करने से व्यक्ति के सुख, सौभाग्य में बढ़ोतरी होती है। विष्णु और कृष्ण मंदिरों में यही वजह है कि भक्त दर्शनों के लिए उमड़ते हैं। इस दिन भगवान विष्णु और उनके अवतार श्रीकृष्ण के दर्शन सौभाग्य प्रदान करते हैं। भगवान के दर्शनों के लिए यही वजह है कि मंदिरों में कतार लगी रहती है।
वाजपेय यज्ञ का फल
धर्म ग्रंथों के अनुसार, परिवर्तिनी एकादशी के दिन व्रत करने से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है। भूलवश हुए अपराधों के नाश के लिए इस व्रत से बढ़कर कोई उपाय नहीं है। जो मनुष्य इस एकादशी को भगवान विष्णु के वामन रूप की पूजा करता है, उससे तीनों लोक पूज्य होते हैं।
इस व्रत के बारे में भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं युधिष्ठिर से कहा है कि जो इस दिन कमलनयन भगवान का कमल से पूजन करते हैं, वे भगवान की कृपा पाते हैं। जिसने भाद्रपद शुक्ल एकादशी को व्रत और पूजन किया, उसने ब्रह्मा, विष्णु सहित तीनों लोकों का पूजन किया। अत: हरिवासर अर्थात एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए।
एकादशी व्रत इसलिए श्रेष्ठ
शुक्ल कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को चंद्रमा की ग्यारह कलाओं का प्रभाव जीवों पर पड़ता है। फलत: शरीर अस्वस्थ और मन की चंचलता स्वाभाविक रूप से बढ़ जाती है।
इसी कारण उपवास द्वारा शरीर को संभालना और इष्टपूजन द्वारा मन को नियंत्रण में रखना जरूरी होता है। यह भी मान्यता है कि डोल ग्यारस का व्रत रखे बगैर जन्माष्टमी का व्रत पूर्ण नहीं होता है और इसलिए जिन्होंने जन्माष्टमी का व्रत किया है वे डोल ग्यारस का व्रत रखकर भगवान कृष्ण की कृपा प्राप्त करते हैं।
इस तरह करें व्रत
– डोल ग्यारस के दिन भगवान विष्णु का विधि-विधान के साथ पूजन करें।
– भगवान के वामन अवतार की लीला या उनकी कथा का श्रवण करें।
– इस दिन चावल, दही एवं चांदी का दान उत्तम माना जाता है।
– इस व्रत की कथा सुनने से मनुष्य अपने सभी अपराधों से मुक्त हो पाता है।
– जन्माष्टमी व्रत के फल की प्राप्ति के लिए ग्यारस का व्रत करना जरूरी माना जाता है।
– इस व्रत को करने वालों को रात्रि जागरण अवश्व करना चाहिए और भगवान भजन करना चाहिए।