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होम | व्रत त्योहार | प्रदोष व्रत से जुडे तथ्यों के बारे में जानें

प्रदोष व्रत से जुडे तथ्यों के बारे में जानें

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In व्रत त्योहार
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प्रदोष व्रत में भगवान शिव की उपासना की जाती है तथा यह व्रत हिंदू धर्म के सबसे शुभ व महत्वपूर्ण व्रतों में से एक है। हिंदू चंद्र कैलेंडर के अनुसार प्रदोष व्रत चंद्र मास के 13 वें दिन (त्रयोदशी) पर रखा जाता है।Facts Know About Pradosh Vrat in Hindi :- माना जाता है कि प्रदोष…

यह आलेख निम्नलिखित के बारे में जानकारी प्रदान करता है : भगवान शिव and  वासुकी  

प्रदोष व्रत में भगवान शिव की उपासना की जाती है तथा यह व्रत हिंदू धर्म के सबसे शुभ व महत्वपूर्ण व्रतों में से एक है। हिंदू चंद्र कैलेंडर के अनुसार प्रदोष व्रत चंद्र मास के 13 वें दिन (त्रयोदशी) पर रखा जाता है।

Facts Know About Pradosh Vrat in Hindi :-

माना जाता है कि प्रदोष के दिन भगवान शिव की पूजा करने से व्यक्ति के पाप धूल जाते हैं तथा उसे मोक्ष प्राप्त होता है। अतः यह पूजा त्रयोदशी के दिन शाम को 4:30 से 6:00 बजें के बीच की जानी चाहिए। ऐसा माना जाता है कि यह समय भगवान शिव का आह्वान करने के लिए बहुत शुभ है।

ऐसी धारणा है कि प्रदोष पूजा में शामिल होने के लिए सभी देवी देवता पृथ्वी पर उतरते हैं। इसलिए भगवान शिव के लिए की जाने वाली सभी पूजाओं में से प्रदोष पूजा को सबसे शुभ माना जाता है।

{ पढ़ें :- महाशिवरात्रि पर इस तरह से करेंगे भगवान शिव की पूजा तो बसरेगी उनकी कृपा ! }

अपने-अपने अक्ष पर जब सूर्य व चंद्रमा एक क्षैतिज रेखा में होते हैं तब उस समय को प्रदोष कहा जाता है। इस दौरान भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए रखा गया व्रत बहुत शुभ माना जाता है। प्रदोष व्रत के अलावा, शनि प्रदोष व सोमा प्रदोष व्रत भी बहुत महत्वपूर्ण व्रत हैं।

किंवदंतियों के अनुसार, सागर के मंथन के दौरान नागों के राजा वासुकी को रस्सी के रुप में इस्तेमाल किया गया था। इस प्रक्रिया में, वासुकी को काफी खरोंचे आई तथा उसने इतना शक्तिशाली विष उत्सर्जित किया जोकि दुनिया को नष्ट करने के लिए पर्याप्त था। इस विष से जब सभी जीवजंतु तड़पने लगे, तब भगवान शिव उन्हें बचाने के लिए आए।

प्राणियों की रक्षा करने हेतु भगवान शिव ने सारा जहर पी लिया। फिर देवी पार्वती ने उनकी चमत्कारी शक्तियों से विष को भगवान शिव के गले से नीचे नहीं उतरने दिया, जिसके कारण भगवान शिव का गला नीला पड़ गया। इसी वजह से भगवान शिव को नीलकंठ भी कहा जाता है।

माना जाता है कि त्रयोदशी के दिन देवताओं व राक्षसों को अपनी गलती का एहसास हुआ तथा इस गलती के लिए उन्होंने भगवान शिव से माफी मांगी। अतः भगवान शिव ने उन्हें माफ किया तथा तब से इस दिन को प्रदोषम कहा जाता है। यह भी धारणा है कि अगर कोई प्रदोष काल में भगवान शिव से प्रार्थना करे तो भगवान शिव उनकी सभी इच्छाएं पूर्ण करते हैं तथा उन्हें मोक्ष प्राप्त होता है।

{ पढ़ें :- क्‍या है भगवान शिव के बड़े भक्‍त भस्मासुर की कहानी }

इस दिन कई लोग उपवास रखते हैं। दोपहर को पूजा होती है जिसके बाद शिवलिंग का अभिषेक किया जाता है। अभिषेक, सुर्यास्त के 48 मिनट पहले आरंभ होता है तथा सूर्यास्त के 144 मिनट बाद समाप्त किया जाता है। सूर्यास्त के एक घंटा पहले स्नान किया जाता है तथा बाद में भगवान शिव, देवी पार्वती, गणेश, स्कंद व नंदी को पूजा जाता है। इसके बाद, भगवान शिव का आह्वान होता है। पूजा की समाप्ति पर प्रदोष की कहानी पढ़ी जाती है।


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2012-04-17T22:47:22+05:30
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Tags: #भगवान शिव,  #वासुकी  
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