जलझूलनी एकादशी, जिसे डोल ग्यारस भी कहते हैं। यह व्रत भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को किया जाता है। इस व्रत को डोल ग्यारस के अलावा परिवर्तिनी एकादशी भी कहा जाता है। इस वर्ष यह व्रत 13 सितंबर यानी मंगलवार के दिन है।Follow Of Celibacy in Hindi :- मान्यता है कि जो भी…
यह आलेख निम्नलिखित के बारे में जानकारी प्रदान करता है : Dol Gyars and Hindu Festival
जलझूलनी एकादशी, जिसे डोल ग्यारस भी कहते हैं। यह व्रत भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को किया जाता है। इस व्रत को डोल ग्यारस के अलावा परिवर्तिनी एकादशी भी कहा जाता है। इस वर्ष यह व्रत 13 सितंबर यानी मंगलवार के दिन है।
मान्यता है कि जो भी व्यक्ति जन्माष्टमी व्रत करता है उसे डोल ग्यारस व्रत जरूरी करना चाहिए। इस दिन ब्रह्मचर्य का पालन करें। और भगवान वामन की पूजा- अर्चना करें। इस दिन यदि विष्णु सहस्त्रनाम का जाप एवं भगवान वामन की कथा सुनते हैं, तो व्रत का पूर्ण फल मिलता है।
ध्यान रखें रात्रि में भगवान वाम की मूर्ति के निकट ही शयन करं और व्रत के दूसरे दिन विद्वान ब्रह्मांणों को भोजन और दान करें। पुराणों में वर्णित है कि यदि डोल ग्यारस का व्रत कोई भी व्यक्ति पूरी आस्था और विधि विधान से करता है। तो उसे वाजपेय यज्ञ का फल प्राप्त होता है।
क्या होता है वाजपेय यज्ञ
‘शतपथ ब्राह्मण’ के अनुसार वाजपेय एक प्रकार का श्रौतयज्ञ है। यह यज्ञ केवल ब्राह्मण या क्षत्रियों के द्वारा ही किया जाता था। मान्यता है कि यह यज्ञ ‘राजसूय यज्ञ’ से भी श्रेष्ठ माना गया है। इस यज्ञ में रथों की दौड़ होती थी, जिसमें यज्ञकर्ता विजयी होता है।