हिन्दू धर्म में पवन पुत्र हनुमान जी को संकट मोचन के रूप में पूजा जाता है तथा वही शनि देव को दण्डाधिकारी माना जाता है जो व्यक्ति के बुरे कर्मो की उन्हें सजा देते है. तथा दोनों ही देवो का महादेव शिव के साथ गहरा सम्बन्ध है.Hanuman Ji Or Shani Dev Se Jude Rhsy in…
हिन्दू धर्म में पवन पुत्र हनुमान जी को संकट मोचन के रूप में पूजा जाता है तथा वही शनि देव को दण्डाधिकारी माना जाता है जो व्यक्ति के बुरे कर्मो की उन्हें सजा देते है. तथा दोनों ही देवो का महादेव शिव के साथ गहरा सम्बन्ध है.
हनुमान जी महादेव शिव के 11 वे रूद्र अवतार है वही शनिदेव के गुरु स्वयं साक्षात् महादेव शिव थे तथा भगवान शिव से शनिदेव को शक्तियां प्राप्त हुई थी. इसके साथ जो भी व्यक्ति महादेव शिव का पूजन करता है उसे शनि देव का आशीर्वाद स्वयं ही प्राप्त हो जाता है.
इन तथ्यों के अलावा संकटमोचन हनुमान जी एवम दण्डाधिकारी शनिदेव के सम्बन्ध में अनेक ऐसे महत्वपूर्ण तथ्य पुराणों में वर्णित है जिनसे सायद ही कोई परिचित हो. पुराणों में वर्णित इन तथ्यों के अनुसार हनुमान जी एवम शनिदेव में काफी समानताये है, आइये जानते है हनुमान जी और शनिदेव से जुड़े गुप्त रहस्य के सम्बन्ध में.
1 . प्रसिद्ध ग्रन्थ सूर्य संहिता के अनुसार पवन पुत्र हनुमान जी का जन्म शनिवार के दिन हुआ था.
2 . हनुमानशस्त्रानाम में से एक नाम शनि देव जी का भी है.
3 . पवन पुत्र हनुमान जी शिव के रुद्रावतार है और रूद्र भगवान शिव का दुसरा नाम है, इस अनुसार हनुमान जी भी एक तरह से शनिदेव के गुरु हुए.
शास्त्रो में हनुमान जी एवम शनिदेव के समान रंग रूप की बात कही गई है एक अन्य मान्यता के अनुसार हनुमान जी को यह रंग रूप शनिदेव के क्रूर दृष्टि के कारण मिला था.
इन समानताओ के साथ ही हनुमान जी और शनिदेव में अनेक भिन्ता भी है , हनुमान जी को शिक्षा शनि देव की पिता सूर्य देव ने दी थी, शनि देव की अपने पिता सूर्य देव के साथ लड़ाई थी परन्तु सूर्य देव ने भगवान हनुमान जी को सम्पूर्ण शक्तियां प्रदान करी थी तथा इसी कारण हनुमान जी महावीर के नाम से प्रसिद्ध हुए.
शनि देव को अक्सर लोग एक उनके कार्य के कारण क्रूर एवम निर्मम प्रकृति का मानते है वही भगवान शिव एवम हनुमान जी दयालु एवम संकट हरने वाले देव माने जाते है.
भगवान शिव के रुद्रा अवतार हनुमान जी का जन्म पवन पुत्र जी के कारण हुआ था वही भगवान शनि देव का जन्म अग्नि से हुआ था. शनिवार के दिन जहां तेल बेचने की मनाही है वही इस दिन हनुमान जी पर तेल चढ़ा कर उन्हें प्रसन्न किया जाता है.
हनुमान जी ने अनेको बार दण्डाधिकारी शनिदेव को दण्ड भी दिया है वही उनकी मुसीबत में मदद भी करी है, जिसका वर्णन पुराणों की इन दो कथाओ में मिलता है.
एक बार हनुमान जी को श्री राम ने शिविर के निर्माण में सहायता के लिए कुछ सुखी लकड़िया एकत्रित कर लाने को कहा. हनुमान जी जब वन में इस कार्य के लिए निकले तो मार्ग में शनिदेव ने उन्हें देख लिया. अपने स्वभाव की वजह से शनिदेव को शरारत सूझी तथा वे हनुमान जी के कार्य में रुकावट उतपन्न करने लगे.
हनुमान जी ने पहले तो शनि देव को चेतावनी दी की वे उनके कार्य में बढ़ा न पहुचाये परन्तु जब शनि देव नहीं माने तो हनुमान जी जी ने उन्हें अपने पूंछ में बांध लिया और श्री राम जी का कार्य करने लगे.
हनुमान जी जब जब खराब एवम कंक्रीट मार्ग से चलते उनके पूछ में बंधे शनि देव भी रगड़ते हुए उसी मार्ग में बढ़ते. इस तरह मार्ग में शनिदेव को अनेको चोटे आयी. शनि देव ने हनुमान जी से बहुत विनती करी की वे उन्हें झोड़ दे परन्तु हनुमान जी श्री राम चंद्र जी के कार्य में मगन थे.
जब राम का कार्य खत्म हुआ तब हनुमान जी को शनि देव का ख्याल आया तथा उन्होंने शनि देव को बन्धन मुक्त किया. शनि देव ने हनुमान जी के बंधन से मुक्त होकर राहत की सास ली तथा आश्वस्त किया की वे हनुमान जी और उनके भक्तो के कार्यो में कभी भी रुकावट नहीं डालेंगे.
रावण के आदेशानुसार कार्य न करने के कारण उसने शनि देव को कैद कर लंका के कारावास में डाल दिया. परन्तु जब हनुमान जी देवी सीता की खोज के लिए रावण की लंका में आये तो उसी समय उनकी भेट शनि देव से भी हुई. हनुमान जी को शनि देव की उस दयनीय दशा देख रावण पर क्रोध आया तथा उन्होंने शनिदेव को रावण की कैद से छुड़ाया और लंका में अपनी पूंछ से आग लगा दी.
तब शनि देव ने हनुमान जी के इस उपकार पर यह आस्वाशन दिया की हनुमान जी के भक्तो पर उनकी विशेष कृपा रहेगी.
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