आज विश्व के लगभग सौ देशों में क्रिसमस का त्योहार बड़े उल्लास और उत्साह के साथ मनाया जाता है। अनेक देशों में इस दिन राजकीय अवकाश घोषित किया जाता है तथा सभी ईसाईजन बड़े आमोद-प्रमोद और तरह-तरह के पकवानों के साथ उत्सव का आयोजन करते हैं!History Of Christmas in Hindi :- इस मंजिल तक पहुँचने…
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आज विश्व के लगभग सौ देशों में क्रिसमस का त्योहार बड़े उल्लास और उत्साह के साथ मनाया जाता है। अनेक देशों में इस दिन राजकीय अवकाश घोषित किया जाता है तथा सभी ईसाईजन बड़े आमोद-प्रमोद और तरह-तरह के पकवानों के साथ उत्सव का आयोजन करते हैं!
इस मंजिल तक पहुँचने में इस पर्व को लंबा समय लगा है और उसे अनेक बाधाओं से जूझना पड़ा है। पिछली लगभग डेढ़ शताब्दी से ही क्रिसमस का पर्व अपने वर्तमान रूप में निर्विघ्न आयोजित होने लगा है।
सामान्यतः 25 दिसंबर को ईसा मसीह का जन्मदिवस माना जाता है और उसी रूप में क्रिसमस का आयोजन होता है परंतु प्रारंभ में स्वयं धर्माधिकारी भी इस रूप में इस दिन को मान्यता देने के लिए तैयार नहीं थे। यह वास्तव में रोमन जाति के एक त्योहार का दिन था, जिसमें सूर्यदेवता की आराधना की जाती थी। यह माना जाता था कि इसी दिन सूर्य का जन्म हुआ।
उन दिनों सूर्य उपासना रोमन सम्राटों का राजकीय धर्म हुआ करता था। बाद में जब ईसाई धर्म का प्रचार हुआ तो कुछ लोग ईसा को सूर्य का अवतार मानकर इसी दिन उनका भी पूजन करने लगे मगर इसे उन दिनों मान्यता नहीं मिल पाई। प्रारंभ में तो ईसाइयों में इस प्रकार के किसी पर्व का सार्वजनिक आयोजन होता ही नहीं था।
चौथी शताब्दी में उपासना पद्धति पर चर्चा शुरू हुई और पुरानी लिखित सामग्री के आधार पर उसे तैयार किया गया। 360 ईस्वी के आसपास रोम के एक चर्च में ईसा मसीह के जन्मदिवस पर प्रथम समारोह आयोजित किया गया, जिसमें स्वयं पोप ने भी भाग लिया मगर इसके बाद भी समारोह की तारीख के बारे में मतभेद बने रहे।
यहूदी धर्मावलंबी गड़रियों में प्राचीनकाल से ही 8 दिवसीय बसंतकालीन उत्सव मनाने की परंपरा थी। ईसाई धर्म के प्रचार के बाद इस उत्सव में गड़रिए अपने जानवरों के पहले बच्चे की ईसा के नाम पर बलि देने लगे और उन्हीं के नाम पर भोज का आयोजन करने लगे मगर यह समारोह केवल गड़रियों तक सीमित था।
उन दिनों कुछ अन्य समारोह भी आयोजित किए जाते थे, जिनकी अवधि 30 नवंबर से 2 फरवरी के बीच में होती थी। जैसे नोर्समेन जाति का यूल पर्व और रोमन लोगों का सेटरनोलिया पर्व, जिसमें नौकरों को मालिक के रूप में आचरण करने की पूरी छूट होती थी। इन उत्सवों का ईसाई धर्म से उस समय तक कोई संबंध नहीं था।