ये तो सभी जानते है कि महाभारत का युद्ध पांडवो ने जीता था पर कुरुक्षेत्र के इस युद्ध में एक समय ऐसा आ गया था जब पांडवो की मृत्यु उनके बहुत करीब थी. उस समय द्रौपदी द्वारा कहे गए एक शब्द से पांडवो की जान बची थी. क्या था वो शब्द हम बतायेगे आपको इसके…
यह आलेख निम्नलिखित के बारे में जानकारी प्रदान करता है : Hindu mythology and Mahabharat and Pandav
ये तो सभी जानते है कि महाभारत का युद्ध पांडवो ने जीता था पर कुरुक्षेत्र के इस युद्ध में एक समय ऐसा आ गया था जब पांडवो की मृत्यु उनके बहुत करीब थी. उस समय द्रौपदी द्वारा कहे गए एक शब्द से पांडवो की जान बची थी. क्या था वो शब्द हम बतायेगे आपको इसके बारे में.
दरअसल युद्ध में दिन प्रतिदिन हो रहे नुकसान के चलते दुर्योधन बहुत क्षुब्द था. उसने भीष्म पितामह से कहा कि “आप अपने आप को इतना बड़ा योद्धा कहते है परन्तु आपके होते हुए भी पांडव अपनी छोटी सी सेना के साथ हमे नित्य नुकसान पंहुचा रहे है, कब करेगे आप उनका वध.”
दुर्योधन द्वारा कहे गए इस कथन से पितामह बहुत आहत हुए और शस्त्र उठाते हुए बोले कि “मैं कल पांडवो का वध कर दूंगा” जैसी ही इस बात का पता पांडवो को चला उनके शिविर में बैचेनी बढ़ गयी क्यूंकि सबको भीष्म पितामह की शक्तियों और क्षमताओ का आभास था.
ऐसे में श्रीकृष्ण ने द्रौपदी से अपने साथ चलने को कहा और वो दोनों भीष्म पितामह के शिविर के पास पहुँच गए. वहां पहुँच कर श्रीकृष्ण ने द्रौपदी से कहा कि अन्दर जा कर पितामह को “प्रणाम” करो. द्रौपदी के प्रणाम कहने पर ही पितामह ने उसे “अखंड सौभाग्यवती भव” का आशीर्वाद दिया. अब तक पितामह समझ चुके थे की उनके एक वचन को उन्ही के दुसरे वचन से काटने का काम श्रीकृष्ण ही कर सकते थे.
उन्होंने द्रौपदी से पूछा कि क्या श्रीकृष्ण भी तुम्हरे साथ आये है. द्रौपदी ने कहा कि वो बाहर मेरी प्रतीक्षा कर रहे है. इस प्रकार से द्रौपदी द्वारा कहे एक शब्द से पांडवो की जान बच गयी. लौटते वक़्त श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को बताया की यदि तुम सब लोग अहंकार में अंधे न होकर भीष्म, द्रोणाचार्य, धृतराष्ट्र आदि को नित्य प्रणाम करते तो शायद इस युद्ध की नौबत ही नहीं आती.