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कैसे जानूं कि मुझमें भक्ति है या नहीं?

कैसे जानूं कि मुझमें भक्ति है या नहीं?
In आध्यात्मिकता
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सद्‌गुरु भक्ति को आध्यात्मिक विकास का एक महत्वपूर्ण तत्व बताते हैं। एक साधक ने उनसे जानना चाहा कि उसे कैसे पता चल सकता है, कि उसमें भक्ति है। इसके उत्तर में सद्‌गुरु हमें भक्ति की प्रकृति के बारे में समझा रहे हैं।How To Know In Me Devotion Or No 2 in Hindi :- असीम :…

यह आलेख निम्नलिखित के बारे में जानकारी प्रदान करता है : देवता and  भक्ति and  भगवान and  भावना  

सद्‌गुरु भक्ति को आध्यात्मिक विकास का एक महत्वपूर्ण तत्व बताते हैं। एक साधक ने उनसे जानना चाहा कि उसे कैसे पता चल सकता है, कि उसमें भक्ति है। इसके उत्तर में सद्‌गुरु हमें भक्ति की प्रकृति के बारे में समझा रहे हैं।

How To Know In Me Devotion Or No 2 in Hindi :-

असीम : सद्‌गुरु, मेरा सवाल एक वीडियो से जुड़ा है जिसमें आपने भक्ति को एक आवश्यक तत्व बताया है। मैं यह कैसे जान सकता हूं कि मेरे भीतर यह है या नहीं? क्या मेरे भीतर कोई बीज है, जिसे मैं विकसित करके मैं एक भक्ति का वृक्ष खड़ा कर सकूं?

प्रेम खो सकता है, भक्ति नहीं खो सकती

{ पढ़ें :- मन की ज़्यादा न सुनें, अन्तरात्मा की आवाज़ सुनना है हितकर }

सद्‌गुरु : तो आप यह जानना चाहते हैं कि आपके भीतर भक्ति है या नहीं? आपको समझना होगा कि कोई भी इंसान गुस्सैल नहीं होता, कोई भी इंसान कष्ट में या आनंद में नहीं होता, कोई इंसान प्रेम में या भक्ति में नहीं होता, लेकिन वह खुद को इनमें से किसी में भी विकसित कर सकता है।

अगर आप चाहें तो आप गुस्सैल हो सकते हैं, प्रेमपूर्ण हो सकते हैं, शांत हो सकते हैं या भक्त हो सकते हैं। भक्ति की अवस्था में आने का मतलब है कि आप अपने भावों को एक ऐसी स्थिति तक ले आए, जहां उनकी मिठास बाहरी परिस्थितियों की वजह से खो नहीं सकती। जब आप किसी को प्रेम करते हैं तो आपके भाव मीठे हो जाते हैं।

लेकिन कल वही शख्स आपके साथ कुछ बुरा कर दे तो आपके भाव कड़वे, बेहद कड़वे हो जाएंगे। भक्ति का मतलब होता है कि आपने अपने भावों को ऐसा बना लिया है कि कोई भी चीज उन्हें बिगाड़ नहीं सकती। भक्ति है तो कोई और आपके भावों में उथलपुथल नहीं मचा सकता। अपने भावों में आपने मिठास का एक खास पहलू घोल दिया है, जिसे बाहरी स्थितियां चुरा नहीं सकतीं।

चाहें तो भक्ति को पा सकते हैं

तो भक्ति का संबंध किसी देवता या भगवान से ही हो, ऐसा बिल्कुल जरूरी नहीं है।अपने भीतर भक्ति भाव जगाने के लिए आप किसी इंसान, किसी वस्तु, किसी आकार या किसी देवता का इस्तेमाल कर सकते हैं, लेकिन भक्ति आपकी ही है। यह आपके भावों की मिठास है। अब सवाल है कि क्या यह मेरे भीतर है? यह किसी के भीतर नहीं है, लेकिन हर कोई इसे पा सकता है। जैसे अभी आप गुस्से में नहीं हैं, लेकिन अगर आप चाहें तो गुस्से में आ सकते हैं।

हो सकता है, अभी आप प्रेममय न हों, लेकिन चाहें तो हो सकते हैं। इसी तरह अभी आप भक्तिमय नहीं हैं, लेकिन चाहें तो हो सकते हैं। यह आपकी भावनाओं की मिठास है। भावना अधिकतर लोगों का सबसे तीव्र हिस्सा होता है। शरीर, विचार, भाव और ऊर्जा में से भावना एक ऐसी चीज है, जिसे लोग बिना किसी विशेष कोशिश के तीव्रता के ऊंचे स्तर तक ले जा सकते हैं। यहां तक कि छोटा सा बच्चा भी बहुत गुस्सा, बहुत चिड़चिड़ा या बहुत प्रेममय हो सकता है और अपनी इन भावनाओं को बहुत तीव्र बना सकता है।

भक्ति को विकास का महत्वपूर्ण पहलू मानने का कारण

शरीर को तीव्र बनाने के लिए आपको बहुत मेहनत करनी होगी। मन को तीव्र बनाने के लिए भी आपको जबरदस्त काम करना होगा।
ऊर्जा को भी तीव्रता की ऊंचाई तक ले जाने के लिए आपको काफी कोशिशें करनी होंगी, लेकिन भावना ऐसी चीज है जिसे तीव्रता की उच्चतम अवस्था में पहुंचाने के लिए अधिकतर लोगों को बहुत ज्यादा कोशिश करने की आवश्यकता नहीं होती। हो सकता है कि बहुत सारे लोगों के भीतर भावों की तीव्रता नकारात्मक रूप में मौजूद हो।

इससे कोई फर्क नही पड़ता कि यह सकारात्मक है या नकारात्मक – मैं बस इतना बता रहा हूं कि भावना बाकी तीन पहलुओं के मुकाबले कहीं ज्यादा आसानी से तीव्र हो सकती है। यही वजह है कि भक्ति को आध्यात्मिक विकास का सबसे महत्वपूर्ण पहलू माना गया है क्योंकि यह ऐसा पहलू है जो स्वाभाविक तौर पर तीव्र है। अगर आप मिठास की तीव्र अवस्था में पहुंच जाएं तो आप भक्ति की अवस्था में हैं। और भक्ति का संबंध किसी व्यक्ति या किसी चीज से नहीं है, इसका संबंध अपनी खुद की प्रकृति के रूपांतरण से है।


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2013-01-21T18:28:17+05:30
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Tags: #देवता,  #भक्ति,  #भगवान,  #भावना  
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