डोल ग्यारस पर भगवान विष्णु और कृष्ण के बाल रूप का पूजन विशेष फलदायी है। इसी दिन विष्णु जी क्षीरसागर में शयन करते हुए करवट बदलते हैं।Importance And Worship Of Dol Gyars in Hindi :- डोल ग्यारस की पूजा एवं व्रत का पुण्य वाजपेय यज्ञ के तुल्य माना जाता है। इस व्रत को करने से…
डोल ग्यारस पर भगवान विष्णु और कृष्ण के बाल रूप का पूजन विशेष फलदायी है। इसी दिन विष्णु जी क्षीरसागर में शयन करते हुए करवट बदलते हैं।
डोल ग्यारस की पूजा एवं व्रत का पुण्य वाजपेय यज्ञ के तुल्य माना जाता है। इस व्रत को करने से व्यक्ति के सुख, सौभाग्य में बढ़ोतरी होती है।
मान्यता है कि इस दिन माता यशोदा ने भगवान श्रीकृष्ण के वस्त्र धोए थे। इसी कारण से इस एकादशी को ‘जलझूलनी एकादशी’ भी कहा जाता है। एक और कथा इस तरह है कि इस दिन भगवान कृष्ण के बाल रूप का पूजन किया गया था यानी उनकी सूरज पूजा हुई थी।
माता यशोदा ने डोल ग्यारस के दिन अपने कृष्ण को सूरज देवता के दर्शन करवाकर उन्हें नए कपड़े पहनाए थे एवं उन्हें शुद्ध कर धार्मिक कार्यों में सम्मिलित करने की योग्यता दी थी। इसी दिन भगवान कृष्ण के आगमन के कारण गोकुल में जश्न हुआ था। इस दिन उत्सव मनाने की परंपरा तभी से चली आ रही है। आज भी माता यशोदा की गोद भरी जाती है।
भगवान कृष्ण को डोले में बैठाकर झांकियां सजाई जाती हैं। मंदिरों में भगवान विष्णु को पालकी में बिठाकर शोभायात्रा निकाली जाती है। भगवान विष्णु की प्रतिमा को स्नान कराया जाता है। इस अवसर पर भगवान के दर्शन करने के लिए श्रद्धालु उमड़ते हैं।
राजस्थान में ‘डोल ग्यारस’ को ‘जलझूलनी एकादशी’ कहा जाता है। इस अवसर पर यहां गणपति पूजा, गौरी स्थापना की जाती है। इस शुभ तिथि पर यहां पर कई मेलों का आयोजन भी किया जाता है। इस अवसर पर देवी-देवताओं को नदी-तालाब के किनारे ले जाकर इनकी पूजा की जाती है।
शाम में इन मूर्तियों को वापस ले आया जाता है। अलग-अलग शोभायात्राएं निकाली जाती हैं, जिसमें भक्तजन भजन, कीर्तन के साथ प्रसन्नता व्यक्त करते हैं।
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