भारतीय पारंपरिक ज्ञानतंत्र की इस खूबी को अत्यंत बारीकी से समझने की जरूरत है कि एक ओर तो वह देवताओं के सो जाने का तर्क सामने रख आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की देवशयनी एकादशी से शुरू चौमासे में विवाह लग्न आदि कई शुभकार्यो की इजाजत नहीं देता, दूसरी ओर इस पावसी चौमासे में इतने…
भारतीय पारंपरिक ज्ञानतंत्र की इस खूबी को अत्यंत बारीकी से समझने की जरूरत है कि एक ओर तो वह देवताओं के सो जाने का तर्क सामने रख आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की देवशयनी एकादशी से शुरू चौमासे में विवाह लग्न आदि कई शुभकार्यो की इजाजत नहीं देता, दूसरी ओर इस पावसी चौमासे में इतने महत्वपूर्ण मौके आते हैं कि उन्हें पूरी श्रद्धा और नियम से निभाने का प्रावधान है।
गुरु पूर्णिमा, हरियाली तीज, नागपंचमी, रक्षाबंधन, कृष्ण जन्माष्टमी, विजयदशमी, अहोई अष्टमी, करवा चौथ, दीपावली, भैया दूज, छठ पूजा और नदी स्नान के विशेष महत्व वाली कार्तिक पूर्णिमा ऐसे ही मौके हैं। चातुर्मास में ‘पितृपक्ष’ का पखवाड़ा और नवरात्र के नौ दिन ऐसे अवसर होते हैं, जब स्वास्थ्य और अध्यात्म दोनों की दृष्टि से आम गृहस्थ को विशेष निर्देश की जरूरत होती है।गुरु पूर्णिमा, हरियाली तीज, नागपंचमी, रक्षाबंधन, कृष्ण जन्माष्टमी, विजयदशमी, अहोई अष्टमी, करवा चौथ, दीपावली, भैया दूज, छठ पूजा और नदी स्नान के विशेष महत्व वाली कार्तिक पूर्णिमा ऐसे ही मौके हैं।
चातुर्मास में ‘पितृपक्ष’ का पखवाड़ा और नवरात्र के नौ दिन ऐसे अवसर होते हैं, जब स्वास्थ्य और अध्यात्म दोनों की दृष्टि से आम गृहस्थ को विशेष निर्देश की जरूरत होती है।गुरु पूर्णिमा, हरियाली तीज, नागपंचमी, रक्षाबंधन, कृष्ण जन्माष्टमी, विजयदशमी, अहोई अष्टमी, करवा चौथ, दीपावली, भैया दूज, छठ पूजा और नदी स्नान के विशेष महत्व वाली कार्तिक पूर्णिमा ऐसे ही मौके हैं। चातुर्मास में ‘पितृपक्ष’ का पखवाड़ा और नवरात्र के नौ दिन ऐसे अवसर होते हैं, जब स्वास्थ्य और अध्यात्म दोनों की दृष्टि से आम गृहस्थ को विशेष निर्देश की जरूरत होती है।
गुरु पूर्णिमा, हरियाली तीज, नागपंचमी, रक्षाबंधन, कृष्ण जन्माष्टमी, विजयदशमी, अहोई अष्टमी, करवा चौथ, दीपावली, भैया दूज, छठ पूजा और नदी स्नान के विशेष महत्व वाली कार्तिक पूर्णिमा ऐसे ही मौके हैं। चातुर्मास में ‘पितृपक्ष’ का पखवाड़ा और नवरात्र के नौ दिन ऐसे अवसर होते हैं, जब स्वास्थ्य और अध्यात्म दोनों की दृष्टि से आम गृहस्थ को विशेष निर्देश की जरूरत होती है।
रोजे का पाक महीना भी इसी चौमासे में आता है। वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो यह ऋतु बदलाव का समय होता है। इस चौमासे में वर्षा ऋतु के अवसान और हेमंत ऋतु के आगमन के बीच का समय और उधर वसंत व ग्रीष्म ऋतु के बीच का वह समय, जब रामनवमी और गुड फ्राइडे से पहले के 15 शाकाहारी प्रार्थना दिवस आता है। ये दोनों अंतराल शरीर और मन के संयम की विशेष मांग करते हैं। ऐसे विशेष समय में यदि जगत के पालनहार सो जाएं, तो फिर जीवन के निर्देश लेने आम गृहस्थ कहां जाएं?
गुरु पूर्णिमा का बड़ा महत्व : गुरु का स्थान गोविंद से आगे यूं ही नहीं माना गया। चतुर्मास में भूलोक की पालना का भार गुरुवर्ग के भरोसे छोड़कर ही भगवान श्री विष्णु शयन करने पाताल लोक जाते हैं। इसीलिए गुरु भी इस चतुर्मास में कहीं नहीं जाते। शिष्यों को पूर्व सूचना के साथ पूर्व निर्धारित एक ही स्थान पर रहते हैं। इसीलिए चतुर्मास की पहली पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहा जाता है। शिष्य गुरु को साक्षात अपने सामने बिठाकर पूजा करते हैं।
किसानों के लिये फुर्सत के पल : गौर करने की बात है कि यह वह समय होता है, जब किसान आषाढ़ की खेती बो चुके किसान के लिए फुर्सत के रात-दिन होते हैं। अगले दिन से लगने वाले सावन की झिरी घर से बाहर निकलने नहीं देती।
बेटियां सांवन मे जाती हैं घर : बेटियां चाहे साल भर मायके न जायें, लेकिन सावन में जरूर जाती हैं।
गुरु देतें हैं शिष्यों को ज्ञान : गुरु भी फुर्सत से शिष्य को जीवन-रहस्य से लेकर जीवन जीने की कला के ज्ञान का भान कराते हैं। कहा गया है, जेठ में भटा, आषाढ़ में टपा (टपका आम), सावन में तसमई (खीर), भादों में घटा। किस महीने में क्या खाना, कैसे रहना; ये गुर भी गुरु इसी चतुर्मास में ही बताया करते थे।
धरती मां भी हो जाती हैं गर्भवती : चतुर्मास के दौरान मां धरती भी गर्भवती होती है। मां धरती के भीतर पल रहे ये अनंत जीव होते हैं, नन्हे पौधे.. वनस्पति। चौमासे में वनस्पतियां विकसित होती हैं। वनस्पतियों में भी संवेदना होती है। नामी वैज्ञानिक जगदीशचंद्र बसु ने तो यह बात लंबे शोध के बाद बहुत बाद में बताई। भारत के पारंपरिक ज्ञानतंत्र के वाहकों ने वनस्पतियों के प्रति संवेदना बहुत पहले दर्शाई। नीम और तुलसी को मां मानकर पूजा की।
धरती की खुदाई-जुताई नहीं करनी चाहिये : शास्त्र ने बहुत पहले कहा कि चतुर्मास में धरती की खुदाई-जुताई नहीं करनी चाहिए। सूर्य से संपर्क कम होने के कारण चौमासे में हमारी जठराग्नि मंद पड़ जाती है, इसीलिए जठराग्नि चुस्त रखने वाले बेल को शिव पर चढ़ाकर प्रसाद के रूप में पाने का विधान है।
सावन में नहीं खाते हैं दही : सावन में दही पर रोक और खीर बेरोकटोक खाने का प्रावधान है।