व्यक्तित्व-व्यवहार को सम्मोहन का सात्विक आधार माना जाता है। दूसरा आधार अर्थात् तंत्र विद्या सर्वत्र प्रशंसनीय नहीं है। प्रयोगभेद से यह ंिनंदनीय भी होता है। तंत्र-विद्या में ऐसे कितने ही प्रयोगों का वर्णन है जो प्रबल सम्मोहन शक्ति से संपन्न माने जाते हैं। ध्यान रहे कि दुर्भावना अथवा मात्र कौतूहल के लिए कोई साधना नहीं…
व्यक्तित्व-व्यवहार को सम्मोहन का सात्विक आधार माना जाता है। दूसरा आधार अर्थात् तंत्र विद्या सर्वत्र प्रशंसनीय नहीं है। प्रयोगभेद से यह ंिनंदनीय भी होता है। तंत्र-विद्या में ऐसे कितने ही प्रयोगों का वर्णन है जो प्रबल सम्मोहन शक्ति से संपन्न माने जाते हैं। ध्यान रहे कि दुर्भावना अथवा मात्र कौतूहल के लिए कोई साधना नहीं की जानी चाहिये। तंत्र-मंत्र के प्रयोगों में निजहित की अपेक्षा लोकहित को वरीयता देना श्रेयस्कर होता है।
सम्मोहन के प्रभाव में मरीज को क्या होता है? सबसे पहले उसका सचेतन मन काम करने से हट जाता है और उसके अचेतन मन की दुनिया साकार हो उठती है। डाक्टर के पूछने पर मरीज अपने अचेतन मन में छिपी बातों को बताने लगता है। इस प्रकार डाक्टर मरीज की बीमारी के उन मनोवैज्ञानिक कारणों को जान पाता है जो उसके अचेतन मन में छिपे हुए होते हैं। मनोवैज्ञानिक डाॅक्टर बीमारियों के इलाज में सम्मोहन का प्रयोग करते हैं। आपरेशन से पहले मरीज के भयभीत होने पर सम्मोहन द्वारा उसके मन को शांति दी जाती है। प्रसूति के समय होने वाली पीड़ा को भी सम्मोहन द्वारा कम किया जा सकता है।
बिना किसी शारीरिक नुक्स के हकलाना, लगातार हिचकी आना, उल्टी होना, घबराहट के कारण भूख न लगना आदि ऐसी बीमारियां हैं, जिन्हें दूर करने में सम्मोहन ने बहुत सहायता की है। मानसिक तनाव कम करने में भी यह सहायक सिद्ध हुआ है।
अतः डाक्टर जितने अरसे के लिए चाहे, मरीज में सम्मोहन पैदा कर सकता है फिर जगाने का सुझाव देकर निद्रा तोड़ भी सकता है। एक या दो घंटे के बाद सम्मोहन का असर जाता रहता है और मरीज खुद ही जाग जाता है। मानवीय विद्युत का यही प्रवाह या प्रभाव परस्पर के आकर्षण में अपना सहयोग देता है। उभरती हुई अवस्था में यही प्रवाह व प्रभाव शरीर के आकर्षण की भूमिका बनकर सामने आता है। उस समय उसका सदुपयोग होने से मनुष्य में ओजस्विता, तेजस्विता, वर्चस्वता आदि गुणों का समुचित विकास होने लगता है। यदि वह विकास नियमित रूप से बढ़ता रहे तो मनुष्य अनेक महत्वपूर्ण कार्य कर सकता है।
परंतु उस विकास की अनियमितता उसके गुणों में वृद्धि या हानि का कारण भी बन सकती है। यदि वृद्धि होती है तो कोई न कोई असामान्यता परिलक्षित होने लगती है। भीम, अर्जुन, भीष्म, हनुमान, मां काली आदि के महाबली होने का रहस्य विद्युत ऊर्जा की वृद्धि समझनी चाहिये। इसके विपरीत इस ऊर्जा अथवा प्रवाह की हानि मनुष्य को निर्बल और हीन बनाने का कारण बनती है। इस कारण ही मनुष्य अपने अंदर हीन भावना अनुभव करने लगता है जिससे साहस और उत्साह में कमी हो जाती है।
इस प्रकार विद्युत शक्ति की न्यूनाधिकता मनुष्य को हीन और श्रेष्ठ बनाने में कारण होती है। शरीर के अंग-प्रत्यंग में विद्युत ऊर्जा की उत्पत्ति में सहायक अनेक उपकरणों के साथ ही रासायनिक पदार्थों की भी कमी नहीं है। रक्त संचार की वह क्रिया इन सभी को संचरणशील रखती है और बिजली उत्पादन का कार्य भी अनवरत चलता रहता है।