हमारे हिन्दू धर्म के चार अत्यंत पवित्र एवम उच्चतम धामो में सम्मलित जगन्नाथ पूरी का मंदिर अपने आप में अनेक रहस्य समेटे हुए है. भगवान श्री कृष्ण को समर्पित इस मंदिर से जुडी गाथा वास्तव में हैरान एवम चौका देने वाली है.Jagannath Puri Temple History in Hindi :- आज हम आपको बताने जा रहे है…
यह आलेख निम्नलिखित के बारे में जानकारी प्रदान करता है : bhagwan jagannath story in hindi and Hindu mythology and Jagannath Dham and jagannath ki katha in hindi and Lord Jagannath and Lord Krishna and जगन्नाथ and जगन्नाथ की कथा and जगन्नाथपुरी and भगवान जगन्नाथ की अधूरी मूर्ति का राज and विश्व में अनोखी हैं ये तीन अधूरी मूर्ति
हमारे हिन्दू धर्म के चार अत्यंत पवित्र एवम उच्चतम धामो में सम्मलित जगन्नाथ पूरी का मंदिर अपने आप में अनेक रहस्य समेटे हुए है. भगवान श्री कृष्ण को समर्पित इस मंदिर से जुडी गाथा वास्तव में हैरान एवम चौका देने वाली है.
आज हम आपको बताने जा रहे है की आखिर इस मंदिर में स्थापित भगवान जगन्नाथ की मूर्ति क्यों अधूरी है तथा इसके पीछे का क्या रहस्य है.
जगन्नाथ मन्दिर के रहस्य से जुडी प्रचलित कथा के अनुसार एक बार बाल गोपाल श्री कृष्ण की माता यशोदा, देवकी जी और उनकी बहन सुभद्रा वृंदावन से द्वारिका आये हुए थे. भगवान श्री कृष्ण की सभी पत्नियों ने एक साथ उनसे श्री कृष्ण की लीलाओ को सुनाने का निवेदन किया.
उनकी बाते कही कोई सुन न ले अतः सुभद्रा दरवाजे के पास जाकर पहरा देने लगी, ताकि श्री कृष्ण और बलराम आये तो वे सभी को आगाह कर दे.
इसके बाद यशोदा माता ने भगवान श्री कृष्णा की लीलाओ का वर्णन करना आरम्भ कर दिया, भगवान श्री कृष्ण की लीलाओ को सुन कर वहां उपस्थित सभी रानियाँ मन्त्र-मुग्ध हो गयी. वह बेसुध होकर भगवान कृष्ण की कथाओ का आनन्द लेने लगी.
वे सभी कृष्ण लीलाओ में इतना खो गए की उन्हें ये पता ही नहीं चल पाया की कब श्री कृष्ण और बलराम वहां आ गए और खुद भी कथा सुनने लगे.ऐसा माना जाता है की अपनी लीलाओ के आनंद में भगवान श्री कृष्ण और बलराम इतना खो गए की उनके शरीर के बाल सीधे खड़े हो गए और उनकी आँखे विशाल व बड़ी हो गयी.
उनके होठो पर सिमित छा गया तथा उनका शरीर उस प्रेम तथा भक्ति से भरे वातावरण में पीघलने लगा. स्वयं सुभद्रा का शरीर भी उस भक्तिमय वातावरण में पीघलने लगा तथा इसलिए जगन्नाथ मंदिर में उनका शरीर सबसे छोटा हो गया.
उसी समय वहां नारद मुनि का आगमन हुआ तथा उनके वहां पधारने पर सभी लोगो का ध्यान भंग हुआ और सभी उस भक्तिमय वातावरण से वापस होश में आये.
भगवान श्री के उस रूप को देख नारद मुनि मन्त्र मुग्ध हो गए तथा उनसे कहने लगे प्रभु आप इस रूप में बहुत सुन्दर लग रहे है, आप इस रूप में धरती पर कब पधारेंगे. तब भगवान श्री कृष्ण ने कहा की कलयुग में वे ऐसा अवतार लेंगे.
नारद मुनि को दिए वरदान के अनुसार भगवान श्री कृष्ण एक राजा इन्द्रद्युम्न के सपने में अवतरित हुए. स्वप्न में भगवान श्री कृष्ण ने कहा हे राजन! पुरी के दरिया किनारे एक पेड़ के तने में तुम मेरा विग्रह बनवाओ.
और बाद में उसे मंदिर में स्थापित कराओ.श्रीकृष्ण के आदेशानुसार राजा ने इस कार्य के लिए काबिल बढ़ई की तलाश शुरू की. कुछ दिनो बाद एक रहस्यमय बूढ़ा ब्राह्मण आया और उसने कहा कि प्रभु का विग्रह बनाने की जिम्मेदारी वो लेना चाहता है, लेकिन वो इस विग्रह को बन्द कमरे में ही बनाएगा और उसके काम करते समय कोई भी कमरे का दरवाज़ा नहीं खोलेगा नहीं तो वो काम अधूरा छोड़ कर चला जाएगा.
जैसे उसने दरवाजा खोला वहां भगवान जगन्नाथ के अधूरे विग्रह के आलावा कुछ और नहीं था.
तब राजा को समझ में आया की वह साधारण सा दिखने वाला ब्राह्मण विश्वकर्मा का अवतार था. राजा को अपनी गलती पर पछतावा हुआ. शर्त से विरुद्ध जाकर द्वार खोलने के अपने इस कार्य से राजा बेहद हताश हो गए लेकिन तभी वहां ब्राह्मण रूपी नारद मुनि पधारे और उन्होंने राजा को आश्वासन देते हुए कहा कि यह तो भगवान कृष्ण की ही इच्छा थी. शायद वह खुद चाहते हैं कि यह विग्रह अधूरा ही रहे, तभी उन्होंने तुम्हारे जरिए इस द्वार को खुलवाया.
यही कारण है की जगननाथ के मंदिर में कोई धातु की मूर्ति नहीं बल्कि लकड़ी की अधूरी मूर्ति स्थापित है. जिसमे भगवान श्री कृष्ण, सुभद्रा एवम बलराम जी स्थापित है.