कार्तिक कैलेंडर में आठवां चंद्र महीना है। कार्तिक महीने के दौरान पूर्णिमा को कार्तिक पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। धर्म और लोगों के आधार पर, हिंदू धर्म में जिस दिन पूरा चंद्रमा निकलता है, उसे पूर्णिमा के नाम से जानते हैं कई लोग पूनम पूरनमासी या पूरनामी भी कहते हैं। वैष्णव परंपरा में…
यह आलेख निम्नलिखित के बारे में जानकारी प्रदान करता है : कार्तिक पूर्णिमा
कार्तिक कैलेंडर में आठवां चंद्र महीना है। कार्तिक महीने के दौरान पूर्णिमा को कार्तिक पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। धर्म और लोगों के आधार पर, हिंदू धर्म में जिस दिन पूरा चंद्रमा निकलता है, उसे पूर्णिमा के नाम से जानते हैं कई लोग पूनम पूरनमासी या पूरनामी भी कहते हैं। वैष्णव परंपरा में कार्तिक माह को दामोदर के नाम से जाना जाता है। दामोदार भगवान कृष्ण के नामों में से एक नाम है।
हिंदू कैलेंडर में सभी चंद्र महीनों में से कार्तिक को सबसे पवित्र महीना माना जाता है। इस महीने में कई लोग सूर्योदय में हर दिन गंगा या अन्य नदियों में स्नान करते हैं। कार्तिक मास में स्नान की प्रक्रिया शरद पूर्णिमा के दिन से शुरू होती है और कार्तिक पूर्णिमा के दिन तक चलती है।
कार्तिक पूर्णिमा काफी पवित्र दिन होता है, इस दिन की शुरूआत, प्रबोधिनी एकादशी से शुरू हो जाती है। एकादशी 11वां दिन होता है और पूर्णिमा शुक्ल पक्ष का 15वां दिन होता है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन से हिंदू धर्म में शादी करना पवित्र मानते हैं। पूर्णिमा को 5 दिन तक मनाया जाता है।
प्रबोधिनी एकादशी को तुलसी विवाह किया जाता है। मानते हैं कि इस दिन के बाद से शादियों का लग्न शुरू हो जाता है। वैसे तुलसी विवाह, इन 5 दिनों में कभी भी हो सकता है। तुलसी जी का विवाह, शालिग्राम से किया जाता है जिन्हें भगवान विष्णु का रूप माना जाता है।
एकादशी के दिन से शुरू हुआ भीष्म पंचका व्रत, कार्तिक पूर्णिमा के दिन समाप्त हो जाता है। वैष्णव परंपरा में, पांच दिन रखे जाने वाले इस व्रत का विशेष महत्व होता है। कई लोग, इस व्रत को विष्णु पंचका के नाम से भी जानते हैं।
कार्तिक पूर्णिमा से ठीक एक दिन पहले बैकुंठ चतुर्दशी उपवास और पूजा की जाती है। ऐसा माना जाता है कि भगवान विष्णु ने इस दिन भगवान शिव की आराधना की थी। इस दिन भगवान शिव व भगवान विष्णु पर कमल के फूल चढ़ाएं जाते हैं। इस दिन गंगा में पवित्र स्नान किया जाता है।
इसके बाद, देव दीवाली मनाई जाती है, कहा जाता है कि सभी भगवान इस दिन को मनाते हैं। इस दिन के बारे में दंतकथा है कि भगवान शिव ने इसी दिन असुर त्रिपुरासुरा का वध किया था। जिसके बाद, सभी देवताओं ने इस दिन उत्सव मनाया था और हजारों दिए जलाएं थे। इसी कारण, कई स्थानों पर इस दिन को त्रिपुरी और त्रिपुरारी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है।