शनि देव को ज्योतिष की भाषा में न्याय का देवता माना गया है। वह मनुष्य को उसके पाप-पुण्य के अनुसार दंड देते हैं। यही वजह है कि हर कोई शनि देव के नाम से भी कांपता है। ऐसा बिल्कुल नहीं है कि शनि देव सिर्फ दंड ही देते हैं, वे जातक को उसके द्वारा किए…
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शनि देव को ज्योतिष की भाषा में न्याय का देवता माना गया है। वह मनुष्य को उसके पाप-पुण्य के अनुसार दंड देते हैं। यही वजह है कि हर कोई शनि देव के नाम से भी कांपता है। ऐसा बिल्कुल नहीं है कि शनि देव सिर्फ दंड ही देते हैं, वे जातक को उसके द्वारा किए गए पुण्य का भी फल देते हैं। भगवान शिव की दृष्टि को क्रूर माना गया है। ऐसा कहा गया है कि जिस किसी भी पर वे अपनी दृष्टि टेढ़ी कर देते हैं, उसके जीवन में उथल-पुथल मच जाती है।
लेकिन ऐसा क्यों? किसने दी शनिदेव को ये क्रूर दृष्टि? इस सवाल का जवाब भी एक पौराणिक कथा के जरिए मिलता है। कथा के अनुसार बचपन से ही शनि देव, श्रीकृष्ण के भक्त थे। उनका विवाह चित्ररथ की पुत्री के साथ संपन्न हुआ था। एक दिन उनकी पत्नी, पुत्र की कामना हेतु उनके पास आई और संसर्ग की इच्छा जाहिर की। परंतु शनि देव ने उनकी इच्छा को अनसुना कर दिया, क्योंकि वे अपने अराध्य की स्तुति कर रहे थे।
उनकी पत्नी बहुत देर तक प्रतीक्षा करती रही लेकिन शनि देव का ध्यान भंग नहीं हुआ। इसपर वे अत्याधिक क्रोधित हुई और क्रोध में आकर शनि देव को ये श्राप दे दिया कि जिस किसी पर भी वे अपनी दृष्टि डालेंगे, वे जलकर नष्ट हो जाएगा। जब शनिदेव का ध्यान टूटा तो उन्हें बहुत पछतावा हुआ, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
लेकिन एक बार दिया गया श्राप भी तो वापिस नहीं हो सकता था। तब से शनि देव अपनी नजर नीची रखकर रहने लगे, लेकिन जिस किसी को भी वे दंड देना चाहते हैं या जिसे पापी समझते हैं उसपर उनकी दृष्टि अवश्य पड़ती है।
इस कहानी की सत्यता का कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं है, हो सकता है यह भी चर्चित लोक कथा ही हो।