सनातन धर्म के प्रसिद्ध ग्रन्थ रामायण से जुड़े कुछ ऐसे रहस्य है जो आज भी लोगो के लिए पहेली बने हुए है.रामायण के रहस्यों में से एक रहस्य रावण का भाई कुम्भकर्ण भी था. कुम्भकर्ण का जीवन बहुत ही विचित्र एवं रहस्मयी माना जाता है. आज हम आपको कुम्भकर्ण से जुड़े कुछ रहस्यों के बारे…
सनातन धर्म के प्रसिद्ध ग्रन्थ रामायण से जुड़े कुछ ऐसे रहस्य है जो आज भी लोगो के लिए पहेली बने हुए है.रामायण के रहस्यों में से एक रहस्य रावण का भाई कुम्भकर्ण भी था. कुम्भकर्ण का जीवन बहुत ही विचित्र एवं रहस्मयी माना जाता है. आज हम आपको कुम्भकर्ण से जुड़े कुछ रहस्यों के बारे में बताने जा रहे है.
जैसा की आप जानते है रामायण की कथा अनुसार रावण के कनिष्ठ भ्राता कुम्भकर्ण को ब्र्ह्मा जी का वरदान प्राप्त था की वह छः महीने सोएगा और छः महीन जगेगा. तथा जब रावण को लगा की उसकी सेना अब राम की सेना से युद्ध करने के लिए अपर्याप्त है तो उसने अपने भाई कुम्भकर्ण को उनका नेतृत्व करने के लिए जगाया जिस कार्य के लिए रावण और उसके सेवको को काफी मुश्किल का सामना करना पड़ा.
ये सभी बाते आपने रामायण की चर्चित कथाओ में सुन रखी होगी परन्तु अब हम आपको कुम्भकर्ण के जीवन से जुड़े दूसरे पहलुओं के बारे में बताने जा रहे है जो बहुत ही रोचक होने के साथ-साथ रहस्मयी भी है. रावण के संबंध में कहा जाता है की रावण अपने युग का सर्वाधिक बुद्धिमान व्यक्ति था तथा उसके परिवार में एक से बढ़कर एक धुरंधर थे जिनकी बौद्धिक क्षमता उस युग में अतुलनीय मानी जाती थी.
लेकिन रावण के परिवार में कुम्भकर्ण एक ऐसा पात्र माना गया है जिसका जीवन वास्तविकता में हैरान करने वाला रहा है. रामायण में कुम्भकर्ण के बारे में कहा जाता है की वह छः महीने सोता था परन्तु एक परम ज्ञानी ऋषि अपना समय सोने में क्यों व्यर्थ करेगा ?
कुम्भकर्ण के बारे में अनेक शोधकर्ताओं ने अपनी रिसर्च करी है तथा उनके अनुसार कुम्भकर्ण एक वैज्ञानिक था जिसे अपने अत्याधुनिक एवं अकल्पनीय अविष्कारों के विषय में शोध के लिए ऐसी गुफाओं में जाना पड़ता था जो रहस्मयी हो और जहाँ साधारण मनुष्यो की पहुंच से दूर हो. ऐसा बताया जाता है की रामायण के समय कुम्भकर्ण की प्रयोगशाला किष्किंधा के दक्षिण भाग में एक गुफा में थी. जहाँ कुम्भकर्ण द्वारा एक भारीभरकम एवं आश्चर्यचकित करने वाली प्रयोगशाला का निर्माण किया गया था.
वह इसी स्थान पर अपने मित्रो के साथ गम्भीर व उन्नत किस्म के प्रयोग करता था. इसके अलावा कुछ शोधकर्ताओं का ये दावा है की रामायण के समय में कुम्भकर्ण की वैज्ञानिक प्रयोगशाला लैटिन अमेरिकी प्रदेश में थी, जहाँ जाने के लिए कुम्भकर्ण स्वयं के निर्मित वाहन का प्रयोग करते थे.
महर्षि वाल्मीकि ने अपने ग्रंथ रामायण में कुछ ऐसे दिव्यास्त्रों का नाम लिया है, जिनकी विनाश क्षमता बहुत ज्यादा थी. शोधकर्ताओं ने दावा किया है कि ये सभी दिव्यास्त्र कुम्भकर्ण की महान बुद्धि के परिचायक थे, जिन्हें उसने अत्यल्प समय में विकसित किया और रावण ने उनकी सहायता से उस समय के लगभग सभी महान वीरों को परास्त किया.
पुष्पक विमान का वर्णन भी रामायण में आता है जिसका निर्माण कुम्भकर्ण अपने ज्येष्ठ भ्राता रावण के लिए किया था.
कुम्भकर्ण का बल :-
कुम्भकर्ण ज्ञानी होने के साथ अत्यधिक बलवान भी था उसके बल के संबंध में रामायण में लिखा गया है की
अतिबल कुंभकरन अस भ्राता. जेहि कहुँ नहिं प्रतिभट जग जाता.
करइ पान सोवइ षट मासा. जागत होइ तिहुँ पुर त्रासा.
अर्थात कुम्भकर्ण के में इतना बल था की पुरे जगत में उसका कोई सामना नहीं कर सकता था. वह मदिरा पीकर छः महीने सो जाता था परन्तु जब वह सोकर उठता था तो पुरे जगत में हाहाकर मच जाता था.
रावण दवारा सीता हरण के बाद जब राम और रावण के मध्य प्रलयंकारी युद्ध चल रहा तो उस युद्ध में रावण के अनेक योद्धा मारे गए तब रावण ने अपनी सेना के नेतृत्व के लिए कुम्भकर्ण को जगाया. क्योकि कुम्भकरण छः महीने से सोया हुआ था इस कारण वह राम-रावण युद्ध के बारे में कुछ नहीं जनता था.
जब रावण ने उसे जगा कर पूरी बात बताई तथा युद्ध स्थल में जाकर राम से युद्ध करने का आदेश दिया तो कुम्भकर्ण युद्ध में जाने से पूर्व दुखी होकर रावण से बोला.
जगदंबा हरि आनि अब सठ चाहत कल्यान.
अर्थात कुम्भकर्ण रावण से बोलता है की अरे मुर्ख तूने माँ जगदम्बा का हरण किया है और अब तू अपने कल्याण की बात कर रहा है ?
इसके बाद कुम्भकर्ण ने अपने भाई रावण को अनेक प्रकार से समझाया की वह माता सीता को राम को सोप दे और राम के शरण में चले जाए. इससे उनका वंश समाप्त होने से बच जाएगा परन्तु अपने अहंकार के कारण रावण ने कुम्भकर्ण के एक न सुनी.
नारद मुनि ने भी दिया था ज्ञान :-
रामायण के अनुसार कुम्भकर्ण केवल छः महीने के लिए सोता था और जब वह सोने के बाद छः महीने के लिये जागता था तो उसका पूरा दिन खाने पीने और परिवार के हाल समाचार पूछने में चला जाता था. इस प्रकार कुम्भकर्ण अपने भाई रावण को बहुत ही कम समय दे पाता था तथा अपने भाई के कार्यो से भी दूर रहता था. राक्षस होने के बाद भी कुम्भकर्ण ने अपने जीवन में कोई भी अधर्म नहीं किया था, इसी कारण स्वयं देवऋषि नारद ने उन्हें तत्वज्ञान दिया था.
सदैव धर्म के मार्ग चलने के बावजूद अपने भ्राता रावण का मान रखने के लिए किया था राम से युद्ध :-
रामायण में जब रावण को बार-बार कुम्भकर्ण के समझाने पर भी रावण ने राम से युद्ध करने की जिद नहीं छोड़ी तो अपने भ्राता का मान रखने के लिए कुम्भकर्ण ने राम से युद्ध किया. वह जानता था की श्री राम भगवान विष्णु के अवतार है .
कुम्भकर्ण श्री राम से युद्ध करने तो गए परन्तु उनके ह्रदय में श्री राम के प्रति भक्ति भाव था वे तो श्री राम के हाथो मुक्ति प्राप्त करने के लिए उनसे युद्ध करने जा रहे थे. भगवान श्री राम का जब एक अचूक बाण कुम्भकर्ण के शरीर में आकर लगा तो उन्होंने उसी समय अपना प्राण त्याग दिया और वैकुंठ धाम को प्राप्त हुए.
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