Lingai Mata Temple History in Hindi : हमारे देश भारत के हर हिस्से में प्राचीन मंदिरो की भरमार है। इनमे से कई मंदिर तो बहुत प्रसिद्ध है जिनके बारे में सब लोग जानते है जबकि कई मंदिर अभी भी अधिकाँश लोगो की पहुँच से दूर है। ऐसे अधिकतर अनजाने मंदिर झारखंड और छत्तीसगढ़ के दुर्गम…
यह आलेख निम्नलिखित के बारे में जानकारी प्रदान करता है : Alor village and Frsganv and Lingai Mata Temple and Progeny and shivling and आलोर गाँव and फरसगांव and लिंगाई माता मंदिर and शिवलिंग and संतान प्राप्ति
Lingai Mata Temple History in Hindi : हमारे देश भारत के हर हिस्से में प्राचीन मंदिरो की भरमार है। इनमे से कई मंदिर तो बहुत प्रसिद्ध है जिनके बारे में सब लोग जानते है जबकि कई मंदिर अभी भी अधिकाँश लोगो की पहुँच से दूर है। ऐसे अधिकतर अनजाने मंदिर झारखंड और छत्तीसगढ़ के दुर्गम इलाको में स्तिथ है तथा साथ ही यह क्षेत्र नक्सल प्रभावित भी है। इसलिए यहाँ केवल स्थनीय लोग ही पहुँच पाते है। ऐसा ही एक अनजान मंदिर है लिंगाई माता मंदिर जो की आलोर गाँव की गुफा में स्तिथ है। वास्तव में इस मंदिर में एक शिवलिंग है मान्यता है की यहाँ माता लिंग रूप में विराजित है। शिव व शक्ति के समन्वित स्वरूप को लिंगाई माता के नाम से जाना जाता है।
आलोर गाँव में स्तिथ है मंदिर :
फरसगांव से लगभग 8 किमी दूर पश्चिम से बड़ेडोंगर मार्ग पर ग्राम आलोर स्थित है। ग्राम से लगभग 2 किमी दूर उत्तर पश्चिम में एक पहाड़ी है जिसे लिंगई गट्टा लिंगई माता के नाम से जाना जाता है। इस छोटी से पहाड़ी के ऊपर विस्तृत फैला हुआ चट्टान के उपर एक विशाल पत्थर है। बाहर से अन्य पत्थर की तरह सामान्य दिखने वाला यह पत्थर स्तूप-नुमा है इस पत्थर की संरचना को भीतर से देखने पर ऐसा लगता है कि मानो कोई विशाल पत्थर को कटोरानुमा तराश कर चट्टान के ऊपर उलट दिया गया है। इस मंदिर के दक्षिण दिशा में एक सुरंग है जो इस गुफा का प्रवेश द्वार है। द्वार इनता छोटा है कि बैठकर या लेटकर ही यहां प्रवेश किया जा सकता है। गुफा के अंदर 25 से 30 आदमी बैठ सकते हैं। गुफा के अंदर चट्टान के बीचों-बीच निकला शिवलिंग है जिसकी ऊंचाई लगभग दो फुट होगी, श्रद्धालुओं का मानना है कि इसकी ऊंचाई पहले बहुत कम थी समय के साथ यह बढ़ गई।
वर्ष में एक दिन खुलता है मंदिर :
परम्परा और लोकमान्यता के कारण इस प्राकृतिक मंदिर में प्रति दिन पूजा अर्चना नहीं होती है। वर्ष में एक दिन मंदिर का द्वार खुलता है और इसी दिन यहां मेला भरता है। संतान प्राप्ति की मन्नत लिये यहां हर वर्ष हजारों की संख्या में श्रद्धालु जुटते हैं। प्रतिवर्ष भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष नवमीं तिथि के पश्चात आने वाले बुधवार को इस प्राकृतिक देवालय को खोल दिया जाता है, तथा दिनभर श्रद्धालुओं द्वारा पूजा अर्चना एवं दर्शन की जाती है। इस साल यह मंदिर 10 सितम्बर को खुल रहा है।
मंदिर से जुडी मान्यताएं :
इस मंदिर से जुडी दो विशेष मान्यताएं है। पहली मान्यता संतान प्राप्ति को लेकर है। इस मंदिर में आने वाले अधिकांश श्रद्धालु संतान प्राप्ति की मन्नत मांगने आते है। यहां मनौती मांगने का तरीका भी निराला है। संतान प्राप्ति की इच्छा रखने वाले दंपति को खीरा चढ़ाना आवश्यक है प्रसाद के रूप में चढ़े खीरे को पुजारी, पूजा पश्चात दंपति को वापस करता है। दम्पति को शिवलिंग के सामने ही इस ककड़ी को अपने नाखून से चीरा लगाकर दो टुकड़ों में तोडना होता है और फिर सामने ही इस प्रसाद को दोनों को ग्रहण करना होता है। मन्नत पूरी होने पर अगले साल श्रद्धा अनुसार चढ़ावा चढ़ाना होता है। माता को पशुबलि और शराब चढ़ाना वर्जित है।
दूसरी मान्यता भविष्य के अनुमान को लेकर है। एक दिन की पूजा के बाद जान मंदिर बंद कर दिया जाता है तो मंदिर के बाहर सतह पर बिछा दी जाती है। इसके अगले साल इस रेत पर जो चन्ह मिलते हैं, उससे पुजारी अगले साल के भविष्य का अनुमान लगाते हैं। यदि कमल का निशान हो तो धन संपदा में बढ़ोत्तरी, हाथी के पांव के निशान हो तो उन्नति, घोड़ों के खुर के निशान हों तो युद्घ, बाघ के पैर के निशान हो तो आतंक, बिल्ली के पैर के निशान हो तो भय तथा मुर्गियों के पैर के निशान होने पर अकाल होने का संकेत माना जाता है।