‘हनु पुस्तिका’ में सब कुछ लिखा है :
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अध्ययनकर्ताओं अनुसार मातंगों के हनुमानजी के साथ विचित्र संबंध हैं जिसके बारे में पिछले साल ही पता चला। फिर इनकी विचित्र गतिविधियों पर गौर किया गया, तो पता चला कि यह सिलसिला रामायण काल से ही चल रहा है।
इन मातंगों की यह गतिविधियां प्रत्येक 41 साल बाद ही सक्रिय होती है। मातंगों अनुसार हनुमानजी ने उनको वचन दिया था कि मैं प्रत्येक 41 वर्ष में तुमसे मिलने आऊंगा और आत्मज्ञान दूंगा। अपने वचन के अनुसार उन्हें हर 41 साल बाद आत्मज्ञान देकर आत्म शुद्धि करने हनुमानजी आते हैं।
सेतु अनुसार जब हनुमानजी उनके पास 41 साल बाद रहने आते हैं, तो उनके द्वारा उस प्रवास के दौरान किए गए हर कार्य और उनके द्वारा बोले गए प्रत्येक शब्द का एक-एक मिनट का विवरण इन आदिवासियों के मुखिया बाबा मातंग अपनी ‘हनु पुस्तिका’ में नोट करते हैं। 2014 के प्रवास के दौरान हनुमानजी द्वारा जंगल वासियों के साथ की गई सभी लीलाओं का विवरण भी इसी पुस्तिका में नोट किया गया है।
कहां है यह पर्वत :
सेतु ने दावा किया है कि हमारे संत पिदुरु पर्वत की तलहटी में स्थित अपने आश्रम में इस पुस्तिका तो समझकर इसका आधुनिक भाषाओँ में अनुवाद करने में जुटे हुए हैं ताकि हनुमानजी के चिरंजीवी होने के रहस्य जाना जा सके, लेकिन इन आदिवासियों की भाषा पेचीदा और हनुमानजी की लीलाएं उससे भी पेचीदा होने के कारण इस पुस्तिका को समझने में काफी समय लग रहा है।
यह पर्वत श्रीलंका के बीचोबीच स्थित है जो श्रीलंका के नुवारा एलिया शहर में स्थित है। पर्वतों की इस श्रृंखला के आसपास घंने जंगल है। इन जंगलों में आदिवासियों के कई समूह रहते हैं।
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‘नुवारा एलिया’ पर्वत श्रृंखला :
वाल्मीकिय-रामायण अनुसार श्रीलंका के मध्य में रावण का महल था। ‘नुवारा एलिया’ पहाड़ियों से लगभग 90 किलोमीटर दूर बांद्रवेला की तरफ मध्य लंका की ऊंची पहाड़ियों के बीचोबीच सुरंगों तथा गुफाओं के भंवरजाल मिलते हैं। यहां ऐसे कई पुरातात्विक अवशेष मिलते हैं जिनकी कार्बन डेटिंग से इनका काल निकाला गया है।
श्रीलंका में नुआरा एलिया पहाड़ियों के आसपास स्थित रावण फॉल, रावण गुफाएं, अशोक वाटिका, खंडहर हो चुके विभीषण के महल आदि की पुरातात्विक जांच से इनके रामायण काल के होने की पुष्टि होती है।
मातंगों ने की थी हनुमानज की सेवा :
कहते हैं कि जब प्रभु श्रीरामजी ने अपना मानव जीवन पूरा करके जल समाधि ले ली थी, तब हनुमानजी पुनः अयोध्या छोड़कर जंगलों में रहने चले गए थे। किष्किंधा आदि जगह होते हुए वे लंका के जंगलों में भ्रमण हेतु गए। उस वक्त वहां विभीषण का राज था। विभीषण को भी चिरंजीवी होने का वरदान प्राप्त था।
हनुमानजी ने कुछ दिन श्रीलंका के जंगलों में गुजारे जहां वे प्रभु श्रीराम का ध्यान किया करते थे। उस दौरान पिदुरु पर्वत में रहने वाले कुछ मातंग आदिवासियों ने उनकी खूब सेवा की। उनकी सेवा से प्रसंन्न होकर हनुमानजी ने उनको वचन दिया कि प्रत्येक 41 साल बाद में तुमसे मिलने आऊंगा। यही कारण है कि हनुमानजी आज भी इस वचन का पालन करते हैं।
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रहस्यमय मंत्र :
सेतु वेबसाइट का दावा है कि मातंगों के पास एक ऐसा रहस्यमय मंत्र है जिसका जाप करने से हनुमानजी सूक्ष्म रूप में प्रकट हो जाते हैं। वे आज भी जीवित हैं और हिमालय के जंगलों में रहते हैं। जंगलों से निकलकर वे भक्तों की सहायता करने मानव समाज में आते हैं, लेकिन किसी को दिखाई नहीं देते।
मातंगों अनुसार हनुमानजी को देखने के लिए आत्मा का शुद्ध होना जरूरी है। निर्मल चित्त के लोग ही उनको देख सकते हैं। मंत्र जप का असर तभी होता है जबकि भक्त में हनुमानजी के प्रति दृढ़ श्रद्धा हो और उसका हनुमानजी से आत्मिक संबंध हो।
सेतु का दावा है कि जिस जगह पर यह मंत्र जपा जाता है उस जगह के 980 मीटर के दायरे में कोई भी ऐसा मनुष्य उपस्थित न हो जो आत्मिक रूप से हनुमानजी से जुड़ा न हो। अर्थात उसका हनुमानजी के साथ आत्मा का संबंध होना चाहिए।
मंत्र : कालतंतु कारेचरन्ति एनर मरिष्णु , निर्मुक्तेर कालेत्वम अमरिष्णु।
यह मंत्र स्वयं हनुमानजी ने पिदुरु पर्वत के जंगलों में रहने वाले कुछ आदिवासियों को दिया था। पिदुरु (पूरा नाम पिदुरुथालागाला Pidurutalagala) श्री लंका का सबसे ऊंचा पर्वत माना जाता है।