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मृत्यु क्या है ? क्या आप भी मृत्यु से डरते है ?

मृत्यु क्या है ? क्या आप भी मृत्यु से डरते है ?
In आध्यात्मिकता
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मृत्यु और उसका भय, हमेशा से चेतनामय जीव को सताता आ रहा है । आज हम उसपे प्रकाश डालेंगे।Mrityu Kya Hai Aap Bhi Mrityu Se Darte Hai in Hindi :- आखिर मृत्यु है क्या ? मृत्यु तो सिर्फ आत्मा के शरीर बदलने की प्रक्रिया है ,जो मनुष्यो को उसका भय लगा रहता है, दरसल इस…

यह आलेख निम्नलिखित के बारे में जानकारी प्रदान करता है : marne ke baad ki zindagi and  marne ke baad kya hoga and  marne ke baad kya hoga in hindi and  marne ke baad kya hoga in islam and  Marne ke baad kya hota hai and  marne ke baad kya hota hai in islam and  maut ke baad ka manzar in hindi and  maut ke baad ki zindagi and  mrityu kaise hoti hai and  मरने के बाद आदमी कहाँ जाता है and  मरने के बाद की ज़िन्दगी and  मरने के बाद क्या होता है and  मरने के बाद क्या होता है इंसान का and  मृत्यु and  मृत्यु के बाद कब मिलता है नया शरीर and  मृत्यु के बाद का अनुभव and  मृत्यु के बाद का सच and  मृत्यु के बाद का सत्य and  मृत्यु के बाद जीवन and  मृत्यु रहस्य मरने के बाद आत्मा कहाँ जाती है and  मौत के बाद का रहस्य and  मौत के बाद क्या होता है  

मृत्यु और उसका भय, हमेशा से चेतनामय जीव को सताता आ रहा है । आज हम उसपे प्रकाश डालेंगे।

Mrityu Kya Hai Aap Bhi Mrityu Se Darte Hai in Hindi :-

आखिर मृत्यु है क्या ?

मृत्यु तो सिर्फ आत्मा के शरीर बदलने की प्रक्रिया है ,जो मनुष्यो को उसका भय लगा रहता है, दरसल इस मोह- माया भरे संसार में मृत्यु ही ऐसी वस्तु है,जो कोई ग्रहण नहीं करना चाहता, फिर भी

{ पढ़ें :- प्रभु यीशु के जीवन से जुडी 4 प्रमुख घटनाएं }

मृत्यु अटल है वो मनुष्य को अपना ग्रास बना ही लेती है।

दरसल हम मृत्यु से डरते इसलिए है क्योंकी- इस धरती पे,या कहे हमारे समाज में लोग इसपे चर्चा नहीं करते इस् पे चर्चा करते है सिर्फ संत ,महत्मा,तत्वदर्शी ,वैरागी,और बुद्धिजीवी लोग।

हम मृत्यु से इसलिए ही डरते है क्यों की हम इस संसार के  भौतिक सुखो स्वार्थ , ईर्ष्या  और  लालच  में डूबे हुए है।

आप ही विवेक द्वारा सोचिये अगर आप में ये 4 चीज़े ना हो तो
आप के मन में क्या मृत्यु का डर सतएगा?

{ पढ़ें :- क्‍या मूर्ती के माध्‍यम से पूजा करना सही है? }

मृत्यु कोई शोक मानाने या डरने की वस्तु है ही नहीं!मृत्यु से भय उसे ही लगता है जो इस भौतिकसंसार को ही सब कुछ समझता है,और भोग विलाशता को छोड़ना नहीं चाहता,और इस भौतिक जगत

के सिवाय और कुछ समझता न हो और नाही जानने की कोशिश करता हो।

जो मृत्यु हमेशा से ही अटल है, सत्य है उससे डरने की जरुरत नहीं,उसे समझने की जरुरत है।

मृत्यु को समझे डरे नहीं!

मृत्यु जीव या आत्मा के इस पंचतत्व से बने भौतिक शरीर को छोड़ देने को कहते है ,मरता तो ये शरीर है,हम कहा मरते है?

{ पढ़ें :- कैसे जानूं कि मुझमें भक्ति है या नहीं? }

और जब हम मरते ही नहीं, ये आत्मा जो   हम है, मरती ही नहीं, तो डर कैसा।

मृत्यु डर का नहीं उत्त्सव की विषय-वस्तु है ।

आप आनंद मनाइये की आप को नया जीवन मिलने वाला है, या कर्मो के अनुसार मोक्ष या अतिसुन्दर जीवन मिलने वाला है ,इस जर्जर हो चुकी बीमार शरीर,दुखो में बिता जीवन अब जाने वाला है,नया सवेरा आने वाला है  हां डर वो करे मृत्यु का जिन्होंने जीवनभर बुरे कर्म किये है ,क्यों की हो सकता है उनका आगला जीवन, कर्मफलो के अनुसार बुरा गुजरे।

कई सनातनीसमुदाय- मृत्यु के स्वागत के लिए अन्न- जल का त्यागकर देते है ,कई जातिया प्रजातियां तो मृत्यु को उत्सव के तौर पे मानती भी है ।

भगवन कृष्णकहते है-

जातस्य ही ध्रुवो मृत्यु, ध्रुवम् जन्म मृतस्य च,

{ पढ़ें :- चेतना और चिंतन }

तस्माद् अपरिहार्येर्थे, न त्वम् शोचितुमर्हसि      गीता 2-27 

जो जन्म लेता है, उसकी मृत्यु अवश्य होती है । और मृत्यु के बाद जन्म अवश्य होता है । जिसमें कोई परिवर्तन न हो सके ऐसी यह कुदरती व्यवस्था है । इसके लिए शोक करना तेरे लिए उचित नहीं है ।

आत्मा और शरीर का संबंध खत्म हो जाय, माने कि वे अलग हो जाय, तब शरीर की मृत्यु होती है । आत्मा अमर है, अर्थात् ईसकी मृत्यु तो होती ही नहीं, तो उसका शोक करना व्यर्थ है । शरीर की मृत्यु होती है,

लेकिन वह तो नाशवन है ही । उसका नाश कभी भी हो सकता है, वह निश्चित है, तो उसका शोक करना भी व्यर्थ है ।

परमपूज्य परमहंस श्रीरामकृष्णजी को जीवन के अंतिम काल में केन्सर की बीमारी थी । बहुत वेदना होती थी । स्वामी विवेकानंद को तो शक भी हुआ कि गुरु अपने को परमात्मा का स्वरुप कहेते हैं, तो ईन्हे यह वेदना क्यों ? शंका होने पर भी वे कुछ नहीं बोले । गुरु ने शिष्य को अपने पास बुला कर पूछा – बेटा ! अभी भी तुझे शक है ? जो राम थे, जो कृष्ण थे, वही मैं रामकृष्ण हूं । मैं शरीर नहीं हूं । वेदना तो शरीर को है, मुझे नहीं । मैं तो आत्मा हूं । आत्मा परमात्मा का ही अंश है । वेदना इसेछू नहीं शकती ।

ऐसी ही स्थिति रमण महर्षिजी की थी । मृत्यु के पहेले किसी असाधारण रोग से उनके पूरे शरीरमें भयंकर वेदना होती थी । किसी भी अंग को छूने से सहन न हो पाए ऐसी वेदना होती थी । किसी अनुयायी ने उन्हें कहा –  आप तो परम योगी हैं । योग से शरीर की वेदना मिट जाए, ऐसा कुछ करें, ऐसी हमारी बिनती है ।  उत्तर मिला –  योग आत्मा की उन्नति के लिए है । शरीर की वेदना मिटाने के लिए नहीं । मैं तो आत्मा हूं, मुझे वेदना है ही नहीं ।

और इसी सत्य को जान लेने और आत्मा के और शरीर के इस भेद को जान लेने से मृत्यु का भय जाता रहता है ।

{ पढ़ें :- मन की ज़्यादा न सुनें, अन्तरात्मा की आवाज़ सुनना है हितकर }


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2013-01-20T22:20:07+05:30
Indian Spiritual Team
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