आज हम आपको भगवान श्री कृष्ण और उनके पुत्र सांबा से सम्बंधित एक पौराणिक प्रसंग सुनाएंगे। इस कथा का सम्बन्ध पाकिस्तान के मुल्तान शहर में स्तिथ सूर्य मंदिर से भी जुड़ा है। भविष्य पुराण, स्कंद पुराण और वराह पुराण में इस बात का उल्लेख है कि श्री कृष्ण ने स्वयं अपने पुत्र सांबा को कोढ़ी होने…
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आज हम आपको भगवान श्री कृष्ण और उनके पुत्र सांबा से सम्बंधित एक पौराणिक प्रसंग सुनाएंगे। इस कथा का सम्बन्ध पाकिस्तान के मुल्तान शहर में स्तिथ सूर्य मंदिर से भी जुड़ा है। भविष्य पुराण, स्कंद पुराण और वराह पुराण में इस बात का उल्लेख है कि श्री कृष्ण ने स्वयं अपने पुत्र सांबा को कोढ़ी होने का श्राप दिया था। इस श्राप से मुक्ति पाने के लिए सांबा ने सूर्य मंदिर का निर्माण करवाया था। जो की पाकिस्तान के मुलतान शहर में स्थित है। इस सूर्य मंदिर को आदित्य मंदिर के नाम से भी जाना जाता था। लेकिन श्री कृष्ण ने ऐसा क्यों किया, आइये जानते है इसके पीछे की कहानी।
भगवान श्री कृष्ण के आठ रानिया थी। जिनमे से एक निषादराज जामवंत की पुत्री जामवंती थी। जामवंत उन गिने चुने पौराणिक पात्रो में से एक है जो रामायण और महाभारत दोनों काल में उपस्तिथ थे। ग्रंथों के अनुसार बहुमूल्य मणि हासिल करने के लिए भगवान श्रीकृष्ण और जामवंत में 28 दिनों तक युद्ध चला था। युद्ध के दौरान जब जामवंत ने कृष्ण के स्वरूप को पहचान लिया तब उन्होंने मणि समेत अपनी पुत्री जामवंती का हाथ भी उन्हें सौंप दिया। कृष्ण और जामवंती के पुत्र का नाम ही सांबा था। देखने में वह इतना आकर्षक था कि कृष्ण की कई छोटी रानियां उसके प्रति आकृष्ट रहती थीं।
एक दिन कृष्ण की एक रानी ने सांबा की पत्नी का रूप धारण कर सांबा को आलिंगन में भर लिया। उसी समय कृष्ण ने ऐसा करते हुए देख लिया। क्रोधित होते हुए कृष्ण ने अपने ही पुत्र को कोढ़ी हो जाने और मृत्यु के पश्चात् डाकुओं द्वारा उसकी पत्नियों को अपहरण कर ले जाने का श्राप दिया।
पुराण में वर्णित है कि महर्षि कटक ने सांबा को इस कोढ़ से मुक्ति पाने हेतु सूर्य देव की अराधना करने के लिए कहा। तब सांबा ने चंद्रभागा नदी के किनारे मित्रवन में सूर्य देव का मंदिर बनवाया और 12 वर्षों तक उन्होंने सूर्य देव की कड़ी तपस्या की। उसी दिन के बाद से आजतक चंद्रभागा नदी को कोढ़ ठीक करने वाली नदी के रूप में ख्याति मिली है। मान्यता है कि इस नदी में स्नान करने वाले व्यक्ति का कोढ़ जल्दी ठीक हो जाता है।
मंदिर का इतिहास
चीन के रहने वाले प्रसिद्ध बौद्ध भिक्षु शुयांग ज़ैंग जो भारत में बौद्ध धर्मग्रंथ पढ़ने आए थे, उन्होंने भारत के अलग-अलग राज्यों का विचरण कर वहां के इतिहास को जानने का प्रयास किया। ज़ैंग ने कई ऐसे स्थानों और धार्मिक स्थलों के प्रति भी दुनिया का ध्यान आकर्षित किया।
641 ईसवीं में शुयांग ज़ैंग इस स्थान पर आए थे, उनका कहना था कि मंदिर में स्थित सूर्य देव की मूर्ति सोने की बनी हुई थी, जिनकी आंखों की जगह पर बहुमूल्य रूबी पत्थर लगाया गया था। सोने, चांदी से बने मंदिर के खंबों पर बेशकीमती पत्थर जड़े हुए थे।
रोजाना काफी संख्या में हिन्दू धर्म के अनुयायी इस मंदिर में पूजा करने आते थे। बौद्ध भिक्षु के अनुसार उन्होंने यहां देवदासियों को भी नृत्य करते देखा था। सूर्य देव के अलावा, भगवान शिव और बुद्ध की मूर्ति भी इस मंदिर में विराजित थीं।
लेकिन समय के साथ-साथ इस मंदिर का सुनहरा काल भी समाप्त होता चला गया। मुहम्मद बिन कासिम की सेना ने जब मुलतान को अपने शासन में ले लिया तब यही मंदिर उनकी सरकार की आय का एक बड़ा साधन साबित हुआ। कासिम ने इस मंदिर में लगे बेशकीमती पत्थर, सोने, चांदी, सबकुछ वे लूटकर ले गए।
मुहम्मद बिन कासिम ने इस मंदिर के साथ एक मस्जिद का निर्माण करवाया, जो आज के दौर में मुलतान का सबसे भीड़भाड़ वाला इलाका है। इसके बाद कोई हिन्दू राजा मुलतान पर आक्रमण ना कर पाए इसके सूर्य मंदिर को एक हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया गया।
दरअसल जो भी हिन्दू शासक मुलतान की ओर आक्रमण करने बढ़ता था, कासिम उसे यह धमकी देता था कि अगर वह मुलतान पर आक्रमण करते हैं तो कासिम सूर्य मंदिर को तबाह कर देगा।
दसवीं शताब्दी में जब अल बरुनी मुलतान ने दौरे पर गए थे तब उन्होंने इस मंदिर का पूरा ब्यौरा दिया। उनके अनुसार 1026 ईसवीं में मुहम्मद गजनी ने इस मंदिर को पूरी तरह तोड़ डाला था। बरुनी के अनुसार ग्यारहवीं शताबदी में कोई भी हिन्दू अनुयायी इस मंदिर के दर्शन करने नहीं आ सका क्योंकि तब तक गजनी इसे पूरी तरह तबाह कर चुका था और दोबारा कभी इस मंदिर को बनाने का प्रयास तक नहीं किया गया।