नवरात्र का आज आठवां दिन है लेकिन तिथि सप्तमी है इसलिए आज मां कालरात्रि की पूजा होगी लेकिन रात में अष्टमी तिथि होने से आज ही निशा पूजा भी है. इसलिए आज की रात तांत्रिक, मांत्रिक शक्तियों की साधना करने वाले अपनी शक्तियों को जगाएंगे. इसलिए आज की रात नवरात्र में बेहद खास है. इसलिए…
नवरात्र का आज आठवां दिन है लेकिन तिथि सप्तमी है इसलिए आज मां कालरात्रि की पूजा होगी लेकिन रात में अष्टमी तिथि होने से आज ही निशा पूजा भी है. इसलिए आज की रात तांत्रिक, मांत्रिक शक्तियों की साधना करने वाले अपनी शक्तियों को जगाएंगे. इसलिए आज की रात नवरात्र में बेहद खास है. इसलिए कहा जाता है कि नवरात्र में सप्तमी अष्टमी की रात महिलाओं को अपने बालों को खुला नहीं रखना चाहिए.बच्चों को भी आज की रात नजर दोष से बचाने वाले टोटके कर लेना चाहिए. वैसे यह सारी बातें मान्यताओं की है. अब आइये जानें आज की पूजा की खास बातें.
आज मां कालरात्रि की पूजा है. कालरात्रि दुष्टों का विनाश करने वाली देवी हैं. दानव, दैत्य, राक्षस, भूत, प्रेत आदि इनके स्मरण मात्र से ही भयभीत हो जाते हैं. इनका रंग काला एवं बाल बिखरे हुए हैं. इनके तीन नेत्र एवं चार भुजाएं हैं. गर्दभ इनका वाहन है और ये दाहिने हाथों में तलवार तथा नरमुद्रा एवं बाएं हाथ में ज्वाला तथा अभयमुद्रा धारण करती हैं. ऊपर से भयानक, परंतु अन्तराल में स्नेह का भंडार हैं. घने अंधेरे की तरह एकदम गहरे काले रंग वाली, तीन नेत्र वाली, सिर के बाल बिखरे रखने वाली और अपनी नाक से आगे की लपटों के रूप में सांसें निकालने वाली कालरात्रि, मां दुर्गा का सातवां विग्रह स्वरूप हैं. इनके तीनों नेत्र ब्रह्माण्ड के गोले की तरह गोल हैं
इनके गले में विद्युत जैसी छटा देने वाली सफेद माला सुशोभित रहती है. मां कालरात्रि का स्वरूप भयानक है, लेकिन वह भक्तों को शुभ फल ही देती हैं. भयानक स्वरूप होने के बावजूद शुभ फल देने वाली मां कालरात्रि को इसी गुण के कारण ‘शुंभकरी’भी कहा जाता है. ये देवी हमारे जीवन में आने वाली सभी ग्रह-बाधाओं को भी दूर करती हैं. सृष्टि संचालन और सृष्टि संयोजन इन्हीं काली जी की कृपा का फल है. जिन वस्तुओं और प्राणियों से जीव दूर भागता है, वह काली जी को प्रिय हैं. असुरों का नाश करने वाली काली जी की आराधना जितनी सरल है, उतनी ही कठिन भी. वह महामाया के साथ पूजी जाएं, तो उसका फल दोगुना हो जाता है
दुर्गा पूजा में सप्तमी तिथि का विशेष महत्व बताया गया है. इस दिन से भक्तजनों के लिए देवी मां का दरवाजा खुल जाता है. इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करके सच्चे मन से मां कालरात्रि का ध्यान करें. नवग्रह, दशदिक्पाल, अन्य देवी-देवता की पूजा करते हुए मां कालरात्रि की पूजा करें. पूजा की विधि शुरू करने पर हाथों में फूल लेकर देवी को प्रणाम कर देवी के मंत्र का ध्यान किया जाता है. गुलाब, गुड़हल आदि फूलों से मां का श्रृंगार करें. गंधाक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, इन पांच प्रकार की सामग्री द्वारा पंचोपचार पूजन करें, ‘ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै’ मंत्र का 108 के क्रम में जाप करें.
मां कालरात्रि नकारात्मक, तामसी और राक्षसी प्रवृत्तियों का विनाश करके भक्तों को भूत-प्रेत आदि से अभय प्रदान करती हैं. इनकी उपासना से प्रतिकूल ग्रहों द्वारा उत्पन्न बाधाएं समाप्त होती हैं और भक्त अग्नि, जल, जन्तु, शत्रु आदि के भय से मुक्त हो जाता है. योगी साधकों द्वारा कालरात्रि का स्मरण ‘ सहस्रार ‘ चक्र में ध्यान केंद्रित करके किया जाता है. माता उनके लिए ब्रह्माण्ड की समस्त सिद्धियों की प्राप्ति के लिए राह खोल देती हैं. साधक के समस्त पाप धुल जाते हैं और उसे अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है.
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