गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित श्रीरामचरित मानस में प्रभु श्रीराम और माता सीता का एक ऐसा प्रसंग बताया गया है, जो प्रत्येक दम्पति के लिए जानना आवश्यक है।Ramacharitamanasa Boatman Themes Happy Family Life To Take Care Of These Things For in Hindi :- प्रसंग इस प्रकार है- श्रीराम, लक्ष्मण और सीता, चौदह वर्ष के वनवास के…
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गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित श्रीरामचरित मानस में प्रभु श्रीराम और माता सीता का एक ऐसा प्रसंग बताया गया है, जो प्रत्येक दम्पति के लिए जानना आवश्यक है।
प्रसंग इस प्रकार है-
श्रीराम, लक्ष्मण और सीता, चौदह वर्ष के वनवास के लिए अयोध्या से निकलकर निषादराज के साथ गंगा नदी के किनारे पहुंचते हैं, जहां उन्हें केवट मिलता है। श्रीरामचरित मानस में लिखा है कि-
मागी नाव न केवटु आना। कहइ तुम्हार मरमु मैं जाना।।
चरन कमल रज कहुं सबु कहई। मानुष करनि मूरि कछु अहई।।
छुअत सिला भइ नारि सुहाई। पाहन तें न काठ कठिनाई।।
तरनिउ मुनि घरिनी होइ जाई। बाट परई मोरि नाव उड़ाई।
श्रीराम गंगा पार करने के लिए केवट से नाव मांगते हैं, लेकिन केवट नाव लेकर नहीं आता है। केवट श्रीराम से कहता है कि मैंने तुम्हारा भेद जान लिया है, सभी लोग कहते हैं कि तुम्हारे पैरों की धूल से एक पत्थर सुंदर स्त्री बन गई थी। मेरी नाव तो लकड़ी की है, कहीं इस नाव पर तुम्हारे पैर पड़ते ही ये भी स्त्री बन गई तो, मैं लुट जाऊंगा। यही नाव मेरे परिवार का भरण-पोषण करती है।
केवट श्रीराम से कहता है, पहले मुझे तुम्हारे पैर पखारने दो यानी पैर धोने दो, उसके बाद मैं नाव से तुम्हें गंगा पार करवा दूंगा।
जब केवट ने श्रीराम के पैर पखारने की बाद कही तो श्रीराम भी इस बात के राजी हो गए। केवट ने श्रीराम के पैर धोए। इसके बाद केवट ने श्रीराम, लक्ष्मण, सीता और निषादराज को अपनी नाव में बैठाकर गंगा नदी पार करवा दी। गंगा नदी के दूसरे किनारे पर पहुंचकर श्रीराम और सभी नाव से उतर गए, तब श्रीराम के मन में कुछ संकोच हुआ।
पिय हिय की सिय जाननिहारी। मनि मुदरी मन मुदित उतारी।।
कहेउ कृपाल लेहि उतराई। केवट चरन गहे अकुलाई।।
इस दोहे का अर्थ यह है कि जब सीता ने श्रीराम के चेहरे पर संकोच के भाव देखे तो सीता ने तुरंत ही अपनी अंगूठी उतारकर उस केवट को भेंट स्वरूप देनी चाही, लेकिन केवट ने अंगूठी नहीं ली। केवट ने कहा कि वनवास पूर्ण करने के बाद लौटते समय आप मुझे जो भी देंगे मैं उसे प्रसाद स्वरूप स्वीकार कर लूंगा।
इस प्रसंग में पति और पत्नी के लिए एक गहरा संदेश छिपा हुआ है। इस संदेश को समझ लेने पर वैवाहिक जीवन में किसी भी प्रकार परेशानियां नहीं आती हैं और आपसी तालमेल बना रहता है।
प्रसंग का संदेश
सीता ने श्रीराम के चेहरे पर संकोच के भाव देखते ही समझ लिया कि वे केवट को कुछ भेंट देना चाहते हैं, लेकिन उनके पास देने के लिए कुछ नहीं था। यह बात समझते ही सीता ने अपनी अंगूठी उतारकर केवट को देने के लिए आगे कर दी। यह प्रसंग बताता है कि पति और पत्नी के बीच ठीक इसी प्रकार की समझ होनी चाहिए। वैवाहिक जीवन में दोनों की आपसी समझ जितनी मजबूत होगी, वैवाहिक जीवन उतना ही ताजगीभरा और आनंददायक बना रहेगा।
वैवाहिक जीवन में कई बार ऐसी परिस्थितियां निर्मित होती हैं, जब पति और पत्नी एक-दूसरे से बात नहीं कर पाते हैं, उन परिस्थितियों में एक-दूसरे के हाव-भाव को देखकर भी मन की बात और इच्छाओं को समझ लेना चाहिए।