क्या आप जानते हैं कि वह कौन सा क्या था श्राप जिसकी वजह से सीता की अनुमति के बिना लंकापति रावण उनका स्पर्श नहीं कर पाया? नहीं तो आज हम आपको इसकी जानकारी देते हैं कि आखिर रावण ने क्यों नहीं छुआ था सीता को| रामायण के अनुसार काम के वश में होकर जब रावण…
क्या आप जानते हैं कि वह कौन सा क्या था श्राप जिसकी वजह से सीता की अनुमति के बिना लंकापति रावण उनका स्पर्श नहीं कर पाया? नहीं तो आज हम आपको इसकी जानकारी देते हैं कि आखिर रावण ने क्यों नहीं छुआ था सीता को| रामायण के अनुसार काम के वश में होकर जब रावण सीता को लंका ले गया।
सीता जी तप्स्विनी के वेष में वहां ही रहती और तप उपवास किया करती थी। रावण ने सीता की रक्षा के लिए राक्षसियों को नियुक्त कर दिया जो बहुत भयानक दिखाई पड़ती थी। वे बहुत ही कठोर तरीके से उन्हें धमकाती और कहती थीं। आओ हम सब मिलकर इसको काट डालें और तिल जैसे छोटे-छोटे टुकड़े करके खा जाएं।
उनकी बातें सुनकर सीता ने कहा-तुम लोग मुझे जल्दी खा जाओ। मुझे अपने जीवन का थोड़ा भी लालच नहीं है। मैं अपने प्राण दे दूंगी लेकिन पति के अलावा कोई परपुरुष मुझे छू भी नहीं सकता। अगर ऐसा हुआ तो मैं अपने प्राण त्याग दूंगी। सीता की बात सुनकर एक राक्षसी रावण को सूचना देने चली गई।
उनके चले जाने पर एक त्रिजटा नाम की राक्षसी वहां रह गई। वह धर्म को जानने वाली और प्रिय वचन बोलने वाली थी। उसने सीता को सांत्वना देते हुए कहा सखी तुम चिमा मत करो। यहां एक श्रेष्ठ राक्षस रहता है जिसका नाम अविंध्य है। उसने तुमसे कहने के लिए यह संदेश दिया है कि तुम्हारे स्वामी भगवान राम अपने भाई लक्ष्मण के साथ कुशल पूर्वक हैं।
वे इंद्र के समान तेजस्वी वनराज सुग्रीव के साथ मित्रता करके तुम्हे छुड़वाने की कोशिश कर रहे हैं। अब रावण से तुम्हें नहीं डरना चाहिए क्योंकि रावण ने नल कूबेर की पत्नी रंभा को छुआ था तो उसे शाप मिला था कि वह किसी पराई स्त्री के साथ उस इच्छा बिना संबंध नहीं बना पाएगा और अगर ऐसा किया तो वह भस्म हो जाएगा।
वहीँ, एक और मान्यता के अनुसार सिर्फ सीता के अपहरण के कारण ही राम के हाथों रावण की मृत्यु हुई थी। यह उस समय की बात है, जब भगवान शिव से वरदान और शक्तिशाली खड्ग पाने के बाद रावण और भी अधिक अहंकार से भर गया था। वह पृथ्वी से भ्रमण करता हुआ हिमालय के घने जंगलों में जा पहुंचा।
वहां उसने एक रूपवती कन्या को तपस्या में लीन देखा। कन्या के रूप-रंग के आगे रावण का राक्षसी रूप जाग उठा और उसने उस कन्या की तपस्या भंग करते हुए उसका परिचय जानना चाहा। काम-वासना से भरे रावण के अचंभित करने वाले प्रश्नों को सुनकर उस कन्या ने अपना परिचय देते हुए रावण से कहा कि ‘हे राक्षसराज, मेरा नाम वेदवती है। मैं परम तेजस्वी महर्षि कुशध्वज की पुत्री हूं।
मेरे वयस्क होने पर देवता, गंधर्व, यक्ष, राक्षस, नाग सभी मुझसे विवाह करना चाहते थे, लेकिन मेरे पिता की इच्छा थी कि समस्त देवताओं के स्वामी श्रीविष्णु ही मेरे पति बनें।’ मेरे पिता की उस इच्छा से क्रुद्ध होकर शंभू नामक दैत्य ने सोते समय मेरे पिता की हत्या कर दी और मेरी माता ने भी पिता के वियोग में उनकी जलती चिता में कूदकर अपनी जान दे दी।
इसी वजह से यहां मैं अपने पिता की इच्छा को पूरा करने के लिए इस तपस्या को कर रही हूं। इतना कहने के बाद उस सुंदरी ने रावण को यह भी कह दिया कि मैं अपने तप के बल पर आपकी गलत इच्छा को जान गई हूं। इतना सुनते ही रावण क्रोध से भर गया और अपने दोनों हाथों से उस कन्या के बाल पकड़कर उसे अपनी ओर खींचने लगा।
इससे क्रोधित होकर अपने अपमान की पीड़ा की वजह से वह कन्या दशानन को यह शाप देते हुए अग्नि में समा गई कि मैं तुम्हारे वध के लिए फिर से किसी धर्मात्मा पुरुष की पुत्री के रूप में जन्म लूंगी।
महान ग्रंथों में शामिल दुर्लभ ‘रावण संहिता’ में उल्लेख मिलता है कि दूसरे जन्म में वही तपस्वी कन्या एक सुंदर कमल से उत्पन्न हुई और जिसकी संपूर्ण काया कमल के समान थी। इस जन्म में भी रावण ने फिर से उस कन्या को अपने बल के दम पर प्राप्त करना चाहा और उस कन्या को लेकर वह अपने महल में जा पहुंचा।
जहां ज्योतिषियों ने उस कन्या को देखकर रावण को यह कहा कि यदि यह कन्या इस महल में रही तो अवश्य ही आपकी मौत का कारण बनेगी। यह सुनकर रावण ने उसे समुद्र में फिंकवा दिया। तब वह कन्या पृथ्वी पर पहुंचकर राजा जनक के हल जोते जाने पर उनकी पुत्री बनकर फिर प्रकट हुई। और वहीँ रावण के विनाश का कारण बनी|
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