शिन्कान ने कामाकुरा युग में छह साल के लिए तेंदाई (बुद्ध्त्तव) का अध्ययन किया। वहां उन्होंने सात साल के लिए जैन धर्म का अध्ययन किया, इसके बाद वे चीन चले गए, वहां पर तेरह साल तक जैन धर्म पर शोध किया। जब वे जापान लौटे तो, कई लोग उनसे साक्षात्कार करना चाहते और अपने अस्पष्ट…
शिन्कान ने कामाकुरा युग में छह साल के लिए तेंदाई (बुद्ध्त्तव) का अध्ययन किया। वहां उन्होंने सात साल के लिए जैन धर्म का अध्ययन किया, इसके बाद वे चीन चले गए, वहां पर तेरह साल तक जैन धर्म पर शोध किया। जब वे जापान लौटे तो, कई लोग उनसे साक्षात्कार करना चाहते और अपने अस्पष्ट और अनसुलझे सवालों को पूछना चाहते थे। जब ऐसे आगंतुक उनके पास आते तो वे उनके प्रश्नों के उत्तर देते।
एक दिन ज्ञान पाने के इच्छुक पचास साल के व्यक्ति ने शिन्कान से पूछा, “जब में छोटा था तो मैंने तेंदाई का अध्ययन किया, तेंदाई का दावा है कि घास और पेड़ों में भी ज्ञान का उदय होता है, लेकिन मैं यह अवधारणा समझने में विफल रहा, यह सुनने में और सोचने में अजीब लग रहा है कि घास और पेड़ों में भी ज्ञान का उदय होता है ”
शिन्कान ने कहा, “घास और पेड़ों में भी ज्ञान का उदय होगा या नहीं यह विचार करने से क्या मतलब है? प्रश्न तो यह है कि आपमें ज्ञान का उदय कैसे हो? क्या अपने कभी इस बारें में विचार किया?” बूढ़े आदमी ने जवाब दिया, “मैंने ऐसा तो कभी नहीं सोचा!” शिन्कान ने कहा, “तो फिर घर जाओ और यह सोच विचार करो!”
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