ताली बजाना स्वास्थ्य की दृष्टि से अच्छा माना गया है और अध्यात्म में भी इसे मन की शांति से जोड़ा गया है। एक्यूपंक्चर (चिकित्सा की एक पद्धति) में ताली बजाने को शरीर के कई अंगों का अच्छा व्यायाम और कोशिकाओं को एक्टिव करने वाला माना गया है। इसके अनुसार हथेली से मनुष्य के पूरे शरीर…
यह आलेख निम्नलिखित के बारे में जानकारी प्रदान करता है : भगवान शिव and शिव मंदिर
ताली बजाना स्वास्थ्य की दृष्टि से अच्छा माना गया है और अध्यात्म में भी इसे मन की शांति से जोड़ा गया है। एक्यूपंक्चर (चिकित्सा की एक पद्धति) में ताली बजाने को शरीर के कई अंगों का अच्छा व्यायाम और कोशिकाओं को एक्टिव करने वाला माना गया है। इसके अनुसार हथेली से मनुष्य के पूरे शरीर की नसें जुड़ी होती हैं और ताली बजाने से नसों में खून का प्रवाह सही प्रकार से होता है। इससे शरीर को ऑक्सीजन की कमी नहीं होती और स्फूर्ति आती है।
इसके अलावा धार्मिक दृष्टि से पूजा विधियों में, खासकर आरती के दौरान भी इसके विशेष मायने हैं। ऐसी मान्यता है कि आरती के दौरान ताली बजाने से व्यक्ति के हाथों से बुरी रेखाएं मिटने लगती हैं और अच्छी रेखाओं का निर्माण होता है।
जो पूरे विधि-विधान और नियम से पूजा करने में यकीन रखते हैं, उन्हें शायद पता होगा कि पूजा के दौरान भगवान से प्रार्थना करते हुए मनोकामना पूर्ति के लिए ताली बजाने का खास महत्व माना जाता है।
विशेषकर भगवान शिव की पूजा में शिवलिंग पर जल अर्पण और पूजा समाप्ति के बाद ताली बजायी जाती है।
मान्यता अनुसार ऐसा करने से भगवान शिव उन भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि दिन के कुछ विशेष समय शिव मंदिर में पूजा करते हुए कभी भी ताली नहीं बजानी चाहिए, वरना मनोकामना पूर्ण होने की बजाय आपको भगवान के कोप का भाजन होना पड़ सकता है। हो सकता है कि आपपर अचानक मुसीबतों की बाढ़ आ जाए।
शास्त्रों क अनुसार शिव मंदिर में हर बार पूजा के बाद ताली बजाना नुकसानदेह हो सकता है। इसका कारण यह माना गया है कि भगवान शिव ध्यान में लीन होते हैं। ताली बजाने से उनके ध्यान की अवस्था में विघ्न पैदा होता है, इसलिए उनके गण इससे रुष्ट हो जाते हैं और व्यक्ति को उनके कोप स्वरूप मुसीबतों का सामना करना पड़ता है। इसलिए शिव मंदिर में केवल संध्याकाल की आरती के दौरान ही ताली बजानी चाहिए।