महाभारत साजिशों से भरी एक पुरानी कहानी है जिसमे हम जितना गहराई में जाते हैं उतना ही आश्चर्यचकित होते जाते हैं। एक ऐसा ही रहस्य है जो हर बार आपको सोचने पर मजबूर कर देता है। इस ग्रंथ को पढ़ने के बाद सबसे पहला सवाल जो मन में उठता है वह है कि क्या वाकई…
यह आलेख निम्नलिखित के बारे में जानकारी प्रदान करता है : Gandhari and गांधारी
महाभारत साजिशों से भरी एक पुरानी कहानी है जिसमे हम जितना गहराई में जाते हैं उतना ही आश्चर्यचकित होते जाते हैं। एक ऐसा ही रहस्य है जो हर बार आपको सोचने पर मजबूर कर देता है। इस ग्रंथ को पढ़ने के बाद सबसे पहला सवाल जो मन में उठता है वह है कि क्या वाकई में गांधारी के 101 सन्तानें थी।
महाभारत में कहा गया है कि पांडव पाँच भाई थे जिनमें से तीन कुंती पुत्र थे जब कि अन्य दो राजा पांडु की दूसरी पत्नी मादरी के पुत्र थे। लेकिन जहां तक कौरवों का सवाल है, ये 100 भाई थे और इनकी एक बहिन थी। यह बात पचाने में मुश्किल है।
प्रकृति के नियमानुसार एक बच्चे के जन्म में 9 माह का समय लग जाता है। यदि उसने इसी तरह बच्चों को जन्म दिया है तो उसके 100वे बच्चे के जन्म के समय सबसे बड़ा लड़का 75 साल का होना चाहिए। यह हमें सोचने पर मजबूर कर देता है कि 101वे बच्चे के जन्म के समय गांधारी की उम्र क्या होगी? यदि उसके दो या तीन बच्चे एक साथ भी हुये तो भी महाभारत काल की समाप्ती तक यह संभव नहीं था।
पहले तो 100 बच्चों को जन्म देना मुश्किल है और यदि ऐसा हो भी गया तो सभी बच्चों का जीवित रहना मुश्किल है। यह कैसे मुमकिन हुआ? क्या यह सिर्फ एक बनावटी बात है या कोई तकनीकी चमत्कार है जिससे हम अंजान हैं। यह पेचीदा प्रश्न है। आइये देखते हैं कि महाभारत में गांधारी की 101 संतानों के बारे में क्या कहा गया है।
चमत्कार या विज्ञान : एक मान्यता के अनुसार उनके दो ही पुत्र थे – एक दुर्योधन और दूसरा दुःशासन, क्यों कि इस पूरे ग्रंथ में 100 में से केवल इन 2 पुत्रों का ही जिक्र किया गया है। हालांकि इसमें विकर्ण और युयुत्सु का भी जिक्र है लेकिन उनकी सोच कौरवों की बजाय पांडवों जैसी थी। इसलिए यह मान्यता भी निराधार है।
व्यास का वरदान : इस ग्रंथ के लेखक महर्षि व्यास गांधारी की सेवा से बहुत प्रसन्न हुये और उन्होने उसे वरदान दिया कि उसके 100 पुत्र होंगे। और उस समय पर ऐसे वरदान देने और उसका फल प्राप्त होने की बात कही जाती है तो हो सकता है इस वरदान के फलस्वरूप गांधारी को 100 पुत्रों की प्राप्ति हुई हो।
गांधारी की निराशा : गांधारी का विवाह दृतराष्ट्र से हुआ था जो कि कुरु राजवंश के सबसे बड़े लड़के थे। लेकिन बचपन से ही अंधे होने के कारण राजगद्दी उनके छोटे भाई पांडु को मिल सकती थी। दृतराष्ट्र और गांधारी को हमेशा ही यह डर सता रहा था इसलिए वो चाह रहे थे कि उन्हे पहली संतान पांडु और कुंती से पहले हो।
जिससे कि उनका पुत्र राजगद्दी संभाल सके। कुंती से पहले संतान पाकर गांधारी बहुत खुश थी। लेकिन दुर्भाग्य ने इसके इरादों पर पानी फेर दिया। गांधारी 2 साल तक बच्चा पैदा नहीं कर सकती थी। दूसरी तरफ राजा पांडु के साथ वन जाने के दौरान कुंती ने पुत्र को जन्म दे दिया था। इससे गांधारी बेहद निराश हो गई और उसने अपने गर्भ को पीटना शुरू कर दिया।
मांस की देह : पागलपन में इस तरह पीटने के कारण गांधारी ने मांस की देह को जन्म दिया। उस समय महर्षि व्यास को बुलाया गया। उन्होने तुरंत घी के 100 डिब्बे मँगवाए। उस समय गांधारी ने एक पुत्री की भी इच्छा जताई। जार आते ही व्यास ने इस मांस की देह को 101 टुकड़ों में बाँट दिया और हर जार में एक टुकड़ा रख दिया। उन्होने इन्हें ढकने के लिए कहा और जल्दी ही गांधारी 100 पुत्रों और एक पुत्री दुसशाला की माँ बन गई।
चमत्कार या आधुनिक विज्ञान?
इस चमत्कारिक जन्म के बारे में अनेक अवधारणाएँ हैं लेकिन कुछ ही सही बैठती हैं। बहुत से लोग इसे इन-वेटरो-फेर्टिलाइजेशन (आईवीएफ़) का चमत्कार मानते हैं जो कि आजकल सामान्य है। इससे पता चलता है कि महर्षि व्यास को आधुनिक तकनीक का ज्ञान था जिससे उन्होने कृत्रिम रूप से भ्रूण को जार में डाला और उन्हें सही पोषण दिया, जिससे यह संभव हो पाया। लेकिन इस मान्यता को बहुत से लोग नकारते हैं।