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होम | व्रत त्योहार | पितृ पक्ष | आइये जानते हैं कैसे श्राद्ध करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है?

आइये जानते हैं कैसे श्राद्ध करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है?

आइये जानते हैं कैसे श्राद्ध करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है?
In पितृ पक्ष, व्रत त्योहार
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श्राद्ध एक ऐसा कर्म है जिसमें परिवार के दिवंगत व्यक्तियों (मातृकुल और पितृकुल), अपने ईष्ट देवताओं, गुरूओं आदि के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के लिये किया जाता है। मान्यता है कि हमारी देह में मातृ और पितृ दोनों ही कुलों के गुणसूत्र विद्यमान होते हैं।Shradh Vidhi in Hindi :- इसलिये अपने दिवंगत जनों के प्रति…

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श्राद्ध एक ऐसा कर्म है जिसमें परिवार के दिवंगत व्यक्तियों (मातृकुल और पितृकुल), अपने ईष्ट देवताओं, गुरूओं आदि के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के लिये किया जाता है। मान्यता है कि हमारी देह में मातृ और पितृ दोनों ही कुलों के गुणसूत्र विद्यमान होते हैं।

Shradh Vidhi in Hindi :-

इसलिये अपने दिवंगत जनों के प्रति श्रद्धा प्रकट करना हमारा कर्तव्य बन जाता है। उनकी आत्मा की शांति के लिये प्रत्येक वर्ष भाद्रपद माह की पूर्णिमा से लेकर आश्विन माह की अमावस्या जिसे सर्वपितृ अमावस्या कहते हैं तक किया जाता है। ब्रह्म पुराण के अनुसार पितरों को लक्ष्य कर शास्त्रसम्मत विधि-विधान से श्रद्धापूर्वक जो भी ब्राह्मणों को दिया जाता है वह श्राद्ध कहलाता है।

श्राद्ध करने की विधि :

हिंदूओं में पितरों की आत्मा की शांति व उन्हें मोक्ष प्राप्ति की कामना के लिये उनके लिये श्राद्ध करना बहुत ही आवश्यक माना जाता है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार श्राद्ध करने की भी विधि होती है। यदि पूरे विधि विधान से श्राद्ध कर्म न किया जाये तो मान्यता है कि वह श्राद्ध कर्म निष्फल होता है और पूर्वज़ों की आत्मा अतृप्त ही रहती है।

{ पढ़ें :- Pitru Paksha 2020 Date: जानिये कौन सा श्राद्ध किस दिन है? }

शास्त्रसम्मत मान्यता यही है कि किसी सुयोग्य विद्वान ब्राह्मण द्वारा ही श्राद्ध कर्म (पिंड दान, तर्पण) करवाना चाहिये। श्राद्ध कर्म में पूरी श्रद्धा से ब्राह्मणों को तो दान दिया ही जाता है साथ ही यदि किसी गरीब, जरूरतमंद की सहायता भी आप कर सकें तो बहुत पुण्य मिलता है। इसके साथ-साथ गाय, कुत्ते, कौवे आदि पशु-पक्षियों के लिये भी भोजन का एक अंश जरुर डालना चाहिये।

श्राद्ध करने के लिये सबसे जिसके लिये श्राद्ध करना है उसकी तिथि का ज्ञान होना आवश्यक है। जिस तिथि को मृत्यु हुई हो उसी तिथि को श्राद्ध करना चाहिये। लेकिन कभी-कभी ऐसी स्थिति होती है कि हमें तिथि ज्ञात नहीं होती तो ऐसे में आश्विन अमावस्या का दिन श्राद्ध कर्म के लिये श्रेष्ठ होता है क्योंकि इसदिन सर्वपितृ श्राद्ध योग माना जाता है। दूसरी बात यह भी महत्वपूर्ण है कि श्राद्ध करवाया कहां पर जा रहा है यदि संभव हो तो गंगा नदी के किनारे पर श्राद्ध कर्म करवाना चाहिये। यदि यह संभव न हो तो घर पर भी इसे किया जा सकता है। जिस दिन श्राद्ध कर्म करवाना हो उस दिन व्रत भी रखना चाहिये। खीर आदि कई पकवानों से ब्राह्मणों को भोज करवाना चाहिये।

श्राद्ध पूजा दोपहर के समय आरंभ करनी चाहिये। इसके लिये हवन करना चाहिये। योग्य ब्राह्मण की सहायता से मंत्रोच्चारण करें व पूजा के पश्चात जल से तर्पण करें। इसके बाद जो भोग लगाया जा रहा है उसमें से गाय, काले कुत्ते, कौवे आदि का हिस्सा अलग कर देना चाहिये व इन्हें भोजन डालते समय अपने पितरों का स्मरण करना चाहिये। मन ही मन उनसे श्राद्ध ग्रहण करने का निवेदन करना चाहिये। इसके पश्चात तिल, जौ, कुशा, तुलसी के पत्ते, मिठाई व अन्य पकवानों से ब्राह्मण देवता को भोजन करवाना चाहिये। भोजन के पश्चात दान दक्षिणा देकर भी उन्हें संतुष्ट करें।

मान्यता है कि इस प्रकार विधि विधान से श्राद्ध पूजा कर जातक पितृ ऋण से मुक्ति पा लेता है व श्राद्ध पक्ष में किये गये उनके श्राद्ध से पितर प्रसन्न होते हैं व आपके घर परिवार व जीवन में सुख, समृद्धि होने का आशीर्वाद देते हैं।

{ पढ़ें :- श्राद्ध की वस्तुएं पितरों को कैसे मिलती हैं?  }

आपकी कुंडली में पितृदोष है या नहीं? यदि है तो क्या करना चाहिये इस बारे में विस्तार से जानकारी के लिये आप ज्योतिषाचार्यों से परामर्श कर सकते हैं।


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2013-08-30T09:57:50+05:30
Indian Spiritual Team
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