विष्णु पुराण के अनुसार शंख लक्ष्मी जी का सहोदर भ्राता है। यह समुद्र मंथन के समय प्राप्त चौदह रत्नों में से एक है। शंख को विजय, समृध्दि, यश और शुभता का प्रतीक माना गया है। शंख ध्वनि की परंपरा आज भी समाज में पूजा-पाठ, हवन, यज्ञ और आरती के अवसरों पर महत्वपूर्ण मानी जाती है।…
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विष्णु पुराण के अनुसार शंख लक्ष्मी जी का सहोदर भ्राता है। यह समुद्र मंथन के समय प्राप्त चौदह रत्नों में से एक है। शंख को विजय, समृध्दि, यश और शुभता का प्रतीक माना गया है। शंख ध्वनि की परंपरा आज भी समाज में पूजा-पाठ, हवन, यज्ञ और आरती के अवसरों पर महत्वपूर्ण मानी जाती है। शंख की घर में स्थापना करने से लक्ष्मी वास होता है और यह भगवान विष्णु का प्रिय है। शंख निधि का प्रतीक है, ऐसा माना जाता है कि शंख को पूजा स्थल में रखने से अरिष्टों एवः अनिष्ठो का नाश होता है और सौभाग्य में विर्धि होती है।
शंख की उत्पत्ति: शंख समुद्र मंथन के समय प्राप्त चौदह रत्नों में से एक है। शंख की उत्पत्ति जल से ही होती है। जल ही जीवन का आधार है। सृष्टि की उत्पत्ति भी जल से हुई, इसलिये शंख हर तरह से पवित्र है। शंख दो प्रकार के होते है, वामावर्त और दक्षिणावर्त। शंख का उदर दक्षिण दिशा की ओर हो तो दक्षिणावृत्त होता है और जिसका उदर बायीं ओर खुलता हो तो वह वामावृत्त शंख कहलता है।
शंख का किस देवता से संबंध है : विष्णु जी को शंख सबसे प्रिय माना जाता है, शंख भगवन विष्णु का पांचवा शस्त्र है। इसे पांचजन्य शंख कहा जाता है , यह कृष्ण भगवान का आयुध है। इसे विजय व यश का प्रतीक माना जाता है। इसमें पांच उंगलियों की आकृति होती है। घर को वास्तु दोषों से मुक्त रखने के लिए स्थापित किया जाता है। यह राहु और केतु के दुष्प्रभावों को भी कम करता है।
शंख का महत्व : शंख को पवित्रता का प्रतीक माना गया है, यह हर एक हिन्दु के घर में पूजा के स्थान पर रखा जाता है। इसे साफ लाल रंग के कपड़े में लपेट कर मिट्टी के बर्तन पे रखते हैं। आमतौर पर पूजा अनुष्ठान के वक़्त शंख में पानी रखतें हैं, जो पूजा के बाद पूरे घर में छिड़का जाता है।
चलिये पौराणिक कथाओं से हट कर शंख के बारे में आपको कुछ बताते है, शंख को कभी आपने कान के पास लेके जाएं आपको समुद्र कि ध्वनि सुनाई पड़ेंगी। यह वास्तव में सुनाई देने वाली कंपन है जो शंख में हवा के दवारा उत्पन होती है।