कार्तिक पूर्णिमा भारत का एक सबसे प्रमुख त्योहार माना जाता है जो कि भारत में तीन प्रमुख समुदायों के लिये सबसे अहम स्थान रखता है। इस त्योहार को हिंदू, जैन और सिख समुदायों के लोग अपने अपने प्रकार से मनाते हैं। कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा या गंगा स्नान के नाम से भी जाना जाता…
कार्तिक पूर्णिमा भारत का एक सबसे प्रमुख त्योहार माना जाता है जो कि भारत में तीन प्रमुख समुदायों के लिये सबसे अहम स्थान रखता है। इस त्योहार को हिंदू, जैन और सिख समुदायों के लोग अपने अपने प्रकार से मनाते हैं। कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा या गंगा स्नान के नाम से भी जाना जाता है। इस पुर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा की संज्ञा इसलिए दी गई है क्योंकि आज के दिन ही भगवान भोलेनाथ ने त्रिपुरासुर नामक महाभयानक असुर का अंत किया था और वे त्रिपुरारी के रूप में पूजित हुए थे।
कार्तिक पूर्णिमा इस लिये भी खास है क्योंकि इस दिन भगवान विष्णु ने अपना पहला अवतार लिया था। उनका प्रथम अवतार मछली का था। इस दिन सिख समुदाय अपने पहले गुरु गुरु नानक देव का जन्मदिन मनाते हैं। सिख समुदाय के लोग सुबह नहा-धो कर गुरुदृवारे जा कर गुरुवाणी सुनते हैं। इसे त्योहार को गुरु पर्व भी कहा जाता है।
इस तरह यह दिन एक नहीं बल्कि कई वजहों से खास है। महाभारत काल में हुए १८ दिनों के विनाशकारी युद्ध में योद्धाओं और सगे संबंधियों को देखकर जब युधिष्ठिर कुछ विचलित हुए तो भगवान श्री कृष्ण पांडवों के साथ गढ़ खादर के विशाल रेतीले मैदान पर आए। कार्तिक शुक्ल अष्टमी को पांडवों ने स्नान किया और कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी तक गंगा किनारे यज्ञ किया। इसके बाद रात में दिवंगत आत्माओं की शांति के लिए दीपदान करते हुए श्रद्धांजलि अर्पित की। इसलिए इस दिन गंगा स्नान का और विशेष रूप से गढ़मुक्तेश्वर तीर्थ नगरी में आकर स्नान करने का विशेष महत्व है।
कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान, दीप दान, हवन, यज्ञ आदि करने से सांसारिक पाप और ताप का शमन होता है। इस दिन किये जाने वाले अन्न, धन एव वस्त्र दान का भी बहुत महत्व बताया गया है। इस दिन जो भी दान किया जाता हैं उसका कई गुणा लाभ मिलता है। मान्यता यह भी है कि इस दिन व्यक्ति जो कुछ दान करता है वह उसके लिए स्वर्ग में संरक्षित रहता है जो मृत्यु लोक त्यागने के बाद स्वर्ग में उसे पुनःप्राप्त होता है।
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