‘Swaha’ का अर्थ है – श्री मद्भागवत तथा शिव पुराण में स्वाहा का वर्णन दिया हुआ है। स्वाहा का निर्धारित नैरुक्तिक अर्थ है – सही रीति से आवश्यक भौगिक पदार्थ को उसके प्रिय देवता तक पहुंचाना है। ऋग्वेद, यजुर्वेद आदि वैदिक ग्रंथों में अग्नि की महत्ता पर कई सूक्तों की रचनाएं हुई हैं।Swaha Pronunciation in Hindi…
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श्री मद्भागवत तथा शिव पुराण में स्वाहा का वर्णन दिया हुआ है। स्वाहा का निर्धारित नैरुक्तिक अर्थ है – सही रीति से आवश्यक भौगिक पदार्थ को उसके प्रिय देवता तक पहुंचाना है। ऋग्वेद, यजुर्वेद आदि वैदिक ग्रंथों में अग्नि की महत्ता पर कई सूक्तों की रचनाएं हुई हैं।
दरअसल, ऋगवेदिक काल में देवताओं ओर इंसानो के बीच जब कोई मध्यस्थ नहीं मिला तब अग्नि को मध्यस्थ बनाया गया। उनके तेज में सभी वस्तु पवित्र हो जाती है। अग्नि में जो वस्तु डाली जाती है वो सीधे देवताओ को पहुचती है परंतु इसके साथ स्वाहा का उच्चारण आवश्यक है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, स्वाहा दक्ष प्रजापति की पुत्री थीं। उनका विवाह अग्निदेव के साथ हुआ था। अग्निदेव को हविष्यवाहक भी कहा जाता है और वे अपनी पत्नी ‘स्वाहा’ के माध्यम से ही ग्रहण करते हैं और उनके माध्यम यही हविष्य आह्वान किए गए देवता को प्राप्त होता है।
एक अन्य मान्यता के अनुसार, स्वाहा प्रकृति की ही एक कला थी, जिसका विवाह अग्नि के साथ देवताओं के आग्रह पर सम्पन्न हुआ था। भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं स्वाहा को ये वरदान दिया था कि केवल उसी के माध्यम से देवता हविष्य को ग्रहण कर पाएंगे।
ऋग्वैदिक काल में इंसानों और देवताओं के मध्य मध्यस्थ के रूप में अग्नि को चुना गया। अग्नि के तेज से सभी कुछ पवित्र होता है। देवताओं को समर्पित वस्तुएं अग्नि में डालने से उन तक पहुंच जाती है।
ये देवताओं तक तभी पहुंचती है जब आहुति देते समय स्वाहा कहा जाए। देवताओं को भोग लगाने के पश्चात ही यज्ञ को पूर्ण माना जाता है। भोग में मीठा होना जरुरी होता है तभी देवता संतुष्ट होते हैं।