हरितालिका तीज को मनाने वालों को ये अच्छी तरह पता है कि इस शुभ दिन में भोलेनाथ और मां पार्वती का पूजन करके अपने सौभाग्य का प्रसाद मांगा जाता है. कहते हैं कि मां पार्वती का आशीष कभी ख़त्म नहीं होता और भोलेनाथ के साथ उनका विवाह अजर-अमर है. इसलिए स्त्रियां ऐसे ही सौभाग्य की…
हरितालिका तीज को मनाने वालों को ये अच्छी तरह पता है कि इस शुभ दिन में भोलेनाथ और मां पार्वती का पूजन करके अपने सौभाग्य का प्रसाद मांगा जाता है. कहते हैं कि मां पार्वती का आशीष कभी ख़त्म नहीं होता और भोलेनाथ के साथ उनका विवाह अजर-अमर है. इसलिए स्त्रियां ऐसे ही सौभाग्य की कामना के साथ उनका पूजन करती हैं.ऐसी मान्यता है कि मां पार्वती ने 107 जन्म लिए थे.
कल्याणकारी भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए. अंतत: मां पार्वती के कठोर तप के कारण उनके 108वें जन्म में भोले बाबा ने उनको अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार किया था. हरितालिका तीज मनाने के पीछे देवाधिदेव शिव और मां पार्वती के मिलन की कथा है.
एक बार भगवान शिव ने पार्वतीजी को उनके पूर्व जन्म का स्मरण कराने के उद्देश्य से हरितालिका तीज के व्रत की महिमा बताई थी. भोलेशंकर बोले- हे गौरी! पर्वतराज हिमालय पर स्थित गंगा के तट पर तुमने बाल्यावस्था में 12 वर्षों तक अधोमुखी होकर घोर तप किया था. एक दिन नारदजी तुम्हारे घर पधारे और तुम्हारे पिता से बोले- गिरिराज! मैं भगवान विष्णु के भेजने पर यहां उपस्थित हुआ हूं. आपकी कन्या ने कठोर तप किया है.
इससे प्रसन्न होकर वे उनसे विवाह करना चाहते हैं. यह सुनकर गिरिराज गदगद हो उठे, मगर तुम्हारे दुख का ठिकाना न रहा. तुमने अपनी सखी से बताया- मैंने सच्चे हृदय से भगवान शिव का वरण किया है, किंतु मेरे पिता ने मेरा विवाह विष्णुजी से निश्चित कर दिया है. प्राण छोड़ देने के अतिरिक्त कोई उपाय शेष नहीं बचा है. उसने कहा- सखी! मैं तुम्हें घनघोर जंगल में ले चलती हूं, जहां तुम्हारे पिता तुम्हें खोज न पाएं, वहां तुम साधना में लीन हो जाना.
तुम सखी के साथ नदी तट पर गुफा में मेरी आराधना में लीन थी. भाद्रपद शुक्ल तृतीया का हस्त नक्षत्र था, उस दिन तुमने रेत के शिवलिंग का निर्माण करके व्रत किया और रात भर मेरी स्तुति करती रही. तुम्हारी तपस्या के प्रभाव से मेरी समाधि टूट गई. मैं तुरंत तुम्हारे समक्ष जा पहुंचा और वर मांगने के लिए कहा. तुमने कहा- मैं हृदय से आपको पति के रूप में वरण कर चुकी हूं.
यदि आप मेरी तपस्या से प्रसन्न हैं, तो मुझे अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार कर लीजिए. मैं तथास्तु कह कर कैलाश पर्वत पर लौट आया. प्रातः होते ही तुमने व्रत का पारणा किया, उसी समय गिरिराज तुम्हें खोजते हुए वहां आए और तुम्हारी कष्ट साध्य तपस्या का उद्देश्य पूछा. तुम्हारी दशा को देखकर गिरिराज की आंखों में आंसू उमड़ आए थे.
तुमने कहा- पिताजी! मेरी इस तपस्या का उद्देश्य केवल यही था कि मैं महादेव को पति के रूप में पाना चाहती थी. अब मैं आपके साथ इसी शर्त पर घर जाऊंगी कि आप मेरा विवाह महादेवजी से करेंगे. गिरिराज मान गए और कुछ समय बाद उन्होंने हम दोनों को विवाह सूत्र में बांध दिया.
हे पार्वती! भाद्रपद की शुक्ल तृतीया को तुमने मेरी आराधना करके जो व्रत किया था, उसी के फलस्वरूप मेरा तुमसे विवाह हो सका. मैं इस व्रत को करने वाली कुंआरियों को मनोवांछित फल देता हूं. इसलिए सौभाग्य की इच्छा करने वाली प्रत्येक युवती को यह व्रत पूरी एकनिष्ठा से करना चाहिए.
देवाधिदेव महादेव को मनाना जितना आसान है, उतना ही मुश्किल. वे भोले भंडारी तो हैं, लेकिन वो भस्म रमाते हैं, धतूरा खाते हैं. यानि उन्हें मनाना इतना आसान भी नहीं है. पर एक बार जिसने उनका सान्निध्य और कृपा पा ली, उसका जीवन धन्य हो गया. जब कृपा करने वाले महादेव ने अपनी शरण में ले लिया, तो सारे कष्ट स्वतः दूर हो जाएंगे.
108वें जन्म में शिव ने मां पार्वती को बनाया अर्द्धांगिनी.हरितालिका तीज अपने सौभाग्य का प्रसाद मांगा जाता है.
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