शिव लिंग यह दर्शाता है कि पूरा ब्रहामंड पुरुष और महिला की ऊर्जा से बना है। आज शिवरात्रि के दिन हम यह जानने की कोशिश करेंगे कि इसकी उत्पति कैसे हुई, इसका महत्व क्या है और इससे जुड़ी कुछ कहानियां भी जानThe Story Behind The Shiva Lingaslider in Hindi :- शिवलिंग भगवान शंकर का प्रतीक…
शिव लिंग यह दर्शाता है कि पूरा ब्रहामंड पुरुष और महिला की ऊर्जा से बना है। आज शिवरात्रि के दिन हम यह जानने की कोशिश करेंगे कि इसकी उत्पति कैसे हुई, इसका महत्व क्या है और इससे जुड़ी कुछ कहानियां भी जान
शिवलिंग भगवान शंकर का प्रतीक है। शिव का अर्थ है – ‘कल्याणकारी’। लिंग का अर्थ है – ‘सृजन’। सर्जनहार के रूप में उत्पादक शक्ति के चिन्ह के रूप में लिंग की पूजा होती है। अकेले लिंग की पूजा से सभी की पूजा हो जाती है। अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियों की पूजा की जाती है वही शिव जी की पूजा सिर्फ लिंग के रूप में की जाती है। आज हम यही जाने की कोशिश करेंगे कि क्यों शिवलिंग की पूजा की जाती है? और लिंग का क्या महत्व है?
भगवान शिव की पूजा हम लिंग के रूप में ही क्यों करते हैं, यहाँ तक कि मंदिरों में भी लिंग की ही पूजा होती है। और अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियों की पूजा होती है। तो ऐसा क्यों है कि शिव की पूजा शिलिंग के रूप में होती है ? क्या महत्त्व है इसका ? दरअसल शिव लिंग को शक्ति और शाक्यता के रूप में पूजा जाता है। शिवलिंग में योनि को मां शक्ति का प्रतीक माना जाता है। शिव लिंग यह दर्शाता है कि पूरा ब्रह्माण्ड पुरुष और महिला की ऊर्जा से बना है। आज शिवरात्रि के दिन हम यह जानने की कोशिश करेंगे कि इसकी उत्पति कैसे हुई, इसका महत्व क्या है और इससे जुड़ी कुछ कहानियां भी जानेगें।
संस्कृत भाषा के अनुसार, “लिंग” का मतलब है चिह्न या प्रतीक, जैसा की हम जानते हैं कि भगवान शिव को देवआदिदेव भी कहा जाता है। जिसका मतलब है कोई रूप ना होना। भगवान शिव अनंत काल और सर्जन के प्रतीक हैं। भगवान शिव प्रतीक है आत्मा के जिसके विलय के बाद इंसान पाराब्रह्मा को पा लेता है।
मान्यताओं के अनुसार, लिंग एक विशाल लौकिक अंडाशय है जिसका अर्थ है ब्रह्माण्ड , इसे पूरे ब्रह्मांड का प्रतीक माना जाता है। जहां ‘पुरुष’ और ‘प्रकृति’ का जन्म हुआ है।
त्रिमूर्ति का मतलब है ब्रह्मा, विष्णु और महेश। इसे और गहराई से जाने तो यह तीन सत्य, ज्ञान और अनंत को दर्शाता है। जब मनुष्य इन तीनो को पा लेता है तो यह कहा जाता है कि उसने ब्रह्मा’ को प्राप्त कर लिया है। जब यह तीनो एक में समा जाते हैं तो उससे शिवलिंग की उत्पत्ति होती है।
एक बार ब्रह्माजी व विष्णुजी में विवाद छिड़ गया कि दोनों में श्रेष्ठ कौन है। ब्रह्माजी सृष्टि के रचयिता होने के कारण श्रेष्ठ होने का दावा कर रहे थे और भगवान विष्णु पूरी सृष्टि के पालनकर्ता के रूप में स्वयं को श्रेष्ठ कह रहे थे। तभी वहां एक विराट लिंग प्रकट हुआ। दोनों देवताओं ने सहमति से यह निश्चय किया गया कि जो इस लिंग के छोर का पहले पता लगाएगा उसे ही श्रेष्ठ माना जाएगा। अत: दोनों विपरीत दिशा में शिवलिंग की छोर ढूढंने निकले। लेकिन उन्हें कोई छोर नहीं मिला। इससे उन्हें ये ज्ञात हो जाता है कि शिवलिंग ही अनंतकाल है जिसकी कोई शुरुवात नहीं है और ना कोई अंत है।
की उत्पत्ति इसका कोई रंग नहीं होता है। यह जिस रंग के संपर्क में आती है उसी रंग की हो जाती है। इस शिवलिंग की पूजा ध्यान साधना के लिए होती है और इसे निर्गुण ब्रह्मा भी कहा जाता है।
यह सच है कि शिवलिंग की ना कोई शुरुआत है और ना कोई अंत, लेकिन विद्येश्वर संहिता के पहले खंड शिव पुराण में यह दिया हुआ कि यह एक अंतहीन ब्रह्मांडीय स्तंभ जो सभी घटनाओं का कारण है। एक तरफ, यह श्रेष्ठता का प्रतीक है; वहीं दूसरी ओर, यह अनंत काल के बारे बताता है।