हिंदू धर्म में गुरु को भगवान से भी महान माना गया है क्योंकि वही सही व गलत के बारे में अपने छात्रों को बताता है। शिष्यों के श्रेष्ठ कर्मों का श्रेय गुरु को ही जाता है। मनु स्मृति के अनुसार सिर्फ वेदों की शिक्षा देने वाला ही गुरु नहीं होता। हर वो व्यक्ति जो हमारा…
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हिंदू धर्म में गुरु को भगवान से भी महान माना गया है क्योंकि वही सही व गलत के बारे में अपने छात्रों को बताता है। शिष्यों के श्रेष्ठ कर्मों का श्रेय गुरु को ही जाता है। मनु स्मृति के अनुसार सिर्फ वेदों की शिक्षा देने वाला ही गुरु नहीं होता। हर वो व्यक्ति जो हमारा सही मार्गदर्शन करे, उसे भी गुरु के समान ही समझना चाहिए। मनु स्मृति में 10 गुरु बताए गए हैं, जिनका वर्णन इस प्रकार है-
श्लोक
आचार्यपुत्रः शुश्रूषुर्ज्ञानदो धार्मिकः शुचिः।
आप्तःशक्तोर्थदः साधुः स्वाध्याप्योदश धर्मतः।।
इस श्लोक में गुरु की श्रेणियों के बारे में बताया गया है कि दस श्रेणी के व्यक्ति धर्म-शिक्षा देने योग्य होते हैं-
1. आचार्य पुत्र यानी गुरु का बेटा
2. सेवा करने वाला अर्थात् पुराना सेवक
3. ज्ञान देने वाला अध्यापक
4. धर्मात्मा यानी वो व्यक्ति जो धर्म के कार्य करता हो।
5. पवित्र आचरण करने वाला यानी अच्छे काम करने वाला
6. सच बोलने वाला
7. समर्थ पुरुष यानी जिस व्यक्ति के पास ताकत, पैसा आदि हो।
8. नौकरी देने वाला
9. परोपकार करने वाला यानी दूसरों की मदद करने वाला
10. भलाई चाहने वाले सगे-संबंधी
1. सेवा करने वाला अर्थात् पुराना सेवक
पुराना सेवक कभी अपने मालिक का बुरा नहीं चाहता। उसकी ईमानदारी पर विश्वास किया जा सकता है। अगर पुराना सेवक हमें कोई काम करने से रोके या हमारी भलाई के लिए कुछ कहे तो उसकी बातों को गंभीरता से लेना चाहिए न कि हवा में उड़ा देना चाहिए। हो सकता है कि उसकी सलाह हमारे काम आ जाए। ऐसी स्थिति में पुराने नौकर को भी गुरु के समान भी समझना चाहिए।
2. आचार्य पुत्र
आचार्य उस ब्राह्मण को कहते हैं, जो शिष्य का उपनयन (मुंडन) संस्कार कर उसे अपने पास रखकर वेद का ज्ञान तथा यज्ञ आदि की विधि सिखाता है। आचार्य का पुत्र भी सम्माननीय होता है। यदि आचार्य पुत्र भी हमें शिक्षा दे तो उसे भी गुरु मानकर शिक्षा ले लेनी चाहिए। इसलिए आचार्य पुत्र को भी गुरु के ही समान कहा गया है।
3. ज्ञान देने वाला अध्यापक
अध्यापक वो होता है जो हमें वेद-विद्या आदि की शिक्षा देता है। अध्यापक के बारे में मनु स्मृति में लिखा है-
य आवृणोत्यवितथं ब्रह्णा श्रवणावुभौ।
स माता स पिता ज्ञेयस्तं न द्रुह्योत्कदाचन।।
अर्थात- वह ब्राह्मण माता-पिता के समान सम्माननीय होता है, जो वेद-विद्या पढ़ाकर अपने शिष्य के दोनों कानों को पवित्र करता है।
इस प्रकार ज्ञान देने वाला अध्यापक भी सम्मान करने योग्य होता है।
4. धर्मात्मा यानी वो व्यक्ति जो धर्म के कार्य करता हो
धर्मात्मा वो व्यक्ति होता है जो हमेशा धर्म के कामों में लगा रहता है। भूल से भी किसी का दिल नहीं दुखाता और दूसरों की मदद करता है। ऐसे व्यक्ति को भी गुरु के समान भी समझना चाहिए क्योंकि धर्मात्मा कभी किसी को गलत सलाह नहीं देगा। अगर धर्मात्मा व्यक्ति कभी कोई सलाह दे तो उसे भी गुरु के समान समझकर उसका पालन करना चाहिए।
5. पवित्र आचरण करने वाला यानी अच्छे काम करने वाला
यदि कोई व्यक्ति पवित्र आचरण यानी हमेशा अच्छे काम करने वाला है तो उससे भी शिक्षा ले लेनी चाहिए। अच्छे काम करने वाला व्यक्ति कभी किसी के बारे में बुरा नहीं सोचेगा। अगर ऐसा व्यक्ति कोई सलाह दे तो उसे भी गुरु समझकर उसका आदर करना चाहिए।
6. सच बोलने वाला
हमेशा सच बोलने वाले व्यक्ति से भी शिक्षा लेनी चाहिए। सच बोलने वाला व्यक्ति यदि हमारा मार्गदर्शन करे या कोई उचित सलाह दे तो उसे भी गुरु मानकर उसकी बातों को गंभीरता से लेना चाहिए।
7. समर्थ पुरुष यानी यानी वो व्यक्ति जो सभी तरह से सक्षम हो।
मनु स्मृति के अनुसार समर्थ पुरुष से भी ज्ञान ले लेना चाहिए क्योंकि समर्थ पुरुष अपने निजी हितों के लिए कभी आपको गलत सलाह नहीं देगा। ऐसा व्यक्ति अगर कोई बात कहे तो उसे गुरु मान कर उस पर भी गंभीरता से विचार करना चाहिए।
8. नौकरी देने वाला
जो व्यक्ति नौकरी दे उससे भी शिक्षा लेने में कोई हिचक नहीं होनी चाहिए। संकट की स्थिति में नौकरी देने वाले व्यक्ति से भी राय ले लेना चाहिए। ऐसा व्यक्ति सदैव आपको सही रास्ता दिखाएगा। इसलिए इसे भी गुरु ही मानना चाहिए।
9. परोपकार करने वाला यानी दूसरों की मदद करने वाला
जो व्यक्ति सदैव दूसरों की मदद करने के लिए तैयार रहता हो उसे भी गुरु मानकर शिक्षा ली जा सकता है। ऐसा मनु स्मृति में लिखा है। परोपकार करने वाला व्यक्ति हमेशा सही रास्ता ही दिखाएगा।
10. भलाई चाहने वाले सगे-संबंधी
जिनसे हमारे घनिष्ठ संबंध हों और जो सदैव हमारा भला चाहते हों, ऐसे रिश्तेदारों को भी गुरु मानना चाहिए। ऐसे रिश्तेदार यदि कोई काम करने से मना करे अथवा कोई सलाह दे तो उसे गुरु की आज्ञा मानकर उसका पालन करना चाहिए