अघोर पंथ हिंदू धर्म का एक संप्रदाय है। इसका पालन करने वालों को अघोरी कहते हैं। अघोरियों को इस पृथ्वी पर भगवान शिव का जीवित रूप भी माना जाता है। शिवजी के पांच रूपों में से एक रूप अघोर रूप है। हमने अपने पिछले एक लेख में आप सब को अघोर पंथ से जुडी महत्त्वपूर्ण…
अघोर पंथ हिंदू धर्म का एक संप्रदाय है। इसका पालन करने वालों को अघोरी कहते हैं। अघोरियों को इस पृथ्वी पर भगवान शिव का जीवित रूप भी माना जाता है। शिवजी के पांच रूपों में से एक रूप अघोर रूप है। हमने अपने पिछले एक लेख में आप सब को अघोर पंथ से जुडी महत्त्वपूर्ण बातें बताई थी आज हम आपको कुछ प्रमुख अघोर पीठ व उनसे जुड़े गुरुओं के बारे मे बता रहे है:-
रामकृष्ण परमहंस की आराध्या देवी मां कालिका का कोलकाता में विश्वप्रसिद्ध मंदिर है। कोलकाता के उत्तर में विवेकानंद पुल के पास स्थित इस मंदिर को दक्षिणेश्वर काली मंदिर कहते हैं। इस पूरे क्षेत्र को कालीघाट कहते हैं। इस स्थान पर सती देह के दाहिने पैर की 4 उंगलियां गिरी थीं। यह सती के 52 शक्तिपीठों में शामिल है। इसलिए ये अघोरियों के लिए भी अास्था का केंद्र है।
तारापीठ को तंत्र में बहुत पूजनीय माना गया है। यहां सती के रूप में तारा मां का मंदिर है और इसके पीछे श्मशान है। सबसे पहले इस मंदिर की स्थापना महर्षि वशिष्ठ ने की थी। पुरातन काल में उन्होंने यहां कठोर साधना की। मान्यता है कि वशिष्ठजी मां तारा को प्रसन्न नहीं कर पाए थे, क्योंकि वामाचार को छोड़कर अन्य किसी साधना विधि से भगवती तारा प्रसन्न नहीं होतीं। है। इस पीठ के प्रमुख अघोराचार्य में बामा चट्टोपाध्याय का नाम लिया जाता है। इन्हें बामाखेपा कहा जाता था।
हिंगलाज धाम अघोर पंथ के प्रमुख स्थलों में शामिल है। यह हिंगोल नदी के किनारे स्थित है। माता के 52 शक्तिपीठों में इस पीठ को भी गिना जाता है। अचल मरुस्थल में होने के कारण इस स्थल को मरुतीर्थ भी कहा जाता है। इसे भावसार क्षत्रियों की कुलदेवी माना जाता है। यह हिस्सा पाकिस्तान में चले जाने के बाद वाराणसी की एक गुफा क्रीं कुंड में बाबा कीनाराम हिंगलाज माता की प्रतिमूर्ति स्थापित की थी। कीनाराम जी प्रमुख अघोर गुरुओं में से एक माने गए हैं।
नेपाल में तराई के इलाके में कई गुप्त औघड़ स्थान पुराने काल से ही स्थित हैं। अघोरेश्वर भगवान राम के शिष्य बाबा सिंह शावक रामजी ने काठमांडू में अघोर कुटी स्थापित की है। उन्होंने और उनके बाद बाबा मंगलधन रामजी ने समाजसेवा को नया आयाम दिया है। कीनारामी परंपरा के इस आश्रम को नेपाल में बड़ी ही श्रद्धा से देखा जाता है।
अफगानिस्तान के पूर्व शासक शाह जहीर शाह के पूर्वजों ने काबुल शहर के मध्य भाग में कई एकड़ में फैला जमीन का एक टुकड़ा कीनारामी परंपरा के संतों को दान में दिया था। इसी जमीन पर आश्रम, बाग आदि निर्मित हैं। औघड़ रतनलालजी यहां पीर के रूप में आदर पाते हैं। उनकी समाधि और अन्य औघड़ों की समाधियां इस स्थल पर मौजूद हैं।
विंध्याचल की पर्वत श्रृंखला जगप्रसिद्ध है। यहां पर विंध्यवासिनी माता का एक प्रसिद्ध मंदिर है।कहा जाता है कि महिषासुर वध के पश्चात माता दुर्गा इसी स्थान पर निवास करने लगी थीं। भगवान राम ने यहां तप किया था और वे अपनी पत्नी सीता के साथ यहां आए थे। इस पर्वत में अनेक गुफाएं हैं जिनमें रहकर साधक साधना करते हैं। आज भी अनेक साधक, सिद्ध, महात्मा, अवधूत, कापालिक आदि से यहां भेंट हो सकती है।
अघोर पथ के आचार्य दत्तात्रेय की जन्मस्थली चित्रकूट सभी के लिए तीर्थस्थल है। औघड़ों की कीनारामी परंपरा की उत्पत्ति यहीं से मानी गई है। यहीं पर मां अनुसूया का आश्रम और सिद्ध अघोराचार्य शरभंग का आश्रम भी है। यहां का स्फटिक शिला नामक श्मशान अघोरपंथियों का प्रमुख स्थल है। इसके पीछे स्थित घोरा देवी का मंदिर अघोर पंथियों का साधना स्थल है।
हिमालय की तराइयों में नैनीताल से आगे गुप्तकाशी से भी ऊपर कालीमठ नामक एक अघोर स्थल है। यहां अनेक साधक रहते हैं। यहां से 5,000 हजार फीट ऊपर एक पहाड़ी पर काल शिला नामक स्थल है, जहां पहुंचना बहुत ही मुश्किल है। कालशिला में भी अघोरियों का वास है। इस मंदिर की स्थापना जगद्गुरु शंकराचार्य ने की थी। जिन्हें एक महान देवी साधक भी माना गया है।
जगतप्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर और विमला देवी मंदिर, जहां सती के पैर का हिस्सा गिरा था, के बीच में एक चक्र साधना वेदी स्थित है जिसे वशिष्ठ कहते हैं। इसके अलावा पुरी का स्वर्गद्वार श्मशान एक पावन अघोर स्थल है। इस श्मशान के पीछे मां तारा मंदिर के खंडहर में ऋषि वशिष्ठ के साथ अनेक साधकों की चक्रार्चन करती हुई प्रतिमाएं स्थापित हैं।
दक्षिण भारत के चेन्नई नगर में औघड़ों का कपालेश्वर मंदिर है। आश्रम के प्रांगण में एक अघोराचार्य की मुख्य समाधि है और भी समाधियां हैं। मंदिर में कपालेश्वर की पूजा औघड़ विधि-विधान से की जाती है।
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