जाती प्रथा की सच्चाई : कर्म से वर्ण या जाति व्यवस्था ! जन्म से वर्ण नहीं, प्राचीन काल में जब बालक समिधा हाथ में लेकर पहली बार गुरुकुल जाता था तो कर्म से वर्ण का निर्धारण होता था, यानि के बालक के कर्म गुण स्वभाव को परख कर गुरुकुल में गुरु बालक का वर्ण निर्धारण…
यह आलेख निम्नलिखित के बारे में जानकारी प्रदान करता है : truth about caste system and जाति व्यवस्था का हैरान कर देने वाला सच and ब्राह्मण
जाती प्रथा की सच्चाई : कर्म से वर्ण या जाति व्यवस्था ! जन्म से वर्ण नहीं, प्राचीन काल में जब बालक समिधा हाथ में लेकर पहली बार गुरुकुल जाता था तो कर्म से वर्ण का निर्धारण होता था, यानि के बालक के कर्म गुण स्वभाव को परख कर गुरुकुल में गुरु बालक का वर्ण निर्धारण करते थे ! यदि ज्ञानी बुद्धिमान है तो ब्राह्मण, यदि निडर बलशाली है तो क्षत्रिय, आदि ! यानि के एक ब्राह्मण के घर शूद्र और एक शूद्र के यहाँ ब्राह्मण का जन्म हो सकता था ! लेकिन धीरे-धीरे यह व्यवस्था लोप हो गयी और जन्म से वर्ण व्यवस्था आ गयी, और हिन्दू धर्म का पतन प्रारम्भ हो गया !
इतिहास में ऐसे कई जाति बदलने उद्धरण है, यह एक विज्ञान है, ऋतु दर्शन के सोलहवीं अट्ठारहवीं और बीसवी रात्रि में मिलने से सजातीय संतान और अन्य दिनों में विजातीय संतान उत्पन्न होते है .
पहले एक ही वर्ण था पीछे गुण, कर्म भेद से चार बने ।। सभी लोग एक ही प्रकार से पैदा होते हैं ।। सभी की एक सी इन्द्रियाँ हैं ।। इसलिए जन्म से जाति मानना उचित नहीं हैं ।। यदि शूद्र अच्छे कर्म करता है तो उसे ब्राह्मण ही कहना चाहिए और कर्तव्यच्युत ब्राह्मण को शूद्र से भी नीचा मानना चाहिए ।।
अर्तार्थ ब्राह्मण, क्षत्रिया , शुद्र वैश्य का विभाजन व्यक्ति के कर्म और गुणों के हिसाब से होता है, न की जन्म के. गीता में भगवन श्री कृष्ण ने और अधिक स्पस्ट करते हुए लिखा है की की वर्णों की व्यवस्था जन्म के आधार पर नहीं कर्म के आधार पर होती है.आचारण बदलने से शूद्र ब्राह्मण हो सकता है और ब्राह्मण शूद्र ।। यही बात क्षत्रिय तथा वैश्य पर भी लागू होती है
ब्राह्मण की भाँति क्षत्रिय और वैश्च भी वेदों का अध्ययन करके ब्राह्मणत्व को प्राप्त कर लेता है रावण आदि राक्षस, श्वाद, चाण्डाल, दास, लुब्धक, आभीर, धीवर आदि के समान वृषल (वर्णसंकर) जाति वाले भी वेदों का अध्ययन कर लेते हैं शूद्र लोग दूसरे देशों में जाकर और ब्राह्मण, क्षत्रिय आदि का आश्रय प्राप्त करके ब्राह्मणों के व्यापार, आकार और भाषा आदि का अभ्यास करके ब्राह्मण ही कहलाने लगते हैं ।।
जाति चमड़े की नहीं होती, रक्त, माँस की नहीं होती, हड्डियों की नहीं होती, आत्मा की नहीं होती वह तो मात्र लोक- व्यवस्था के लिये कल्पित कर ली गई वेदों का अभ्यास न करने से, आचार छोड़ देने से, कुधान्य खाने से ब्राह्मण की मृत्यु हो जाती है ।।
स्वाध्याय न करने से, आलस्य से ओर कुधान्य खाने से ब्राह्मण का पतन हो जाता है ।