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भारत में दो जगह है हनुमान पुत्र मकरध्वज के मंदिर

भारत में दो जगह है हनुमान पुत्र मकरध्वज के मंदिर
In धार्मिक स्थान
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हिंदू धर्म को मानने वाले यह बात बहुत अच्छी तरह से जानते हैं कि भगवान श्रीराम के परमभक्त व भगवान शंकर के ग्यारवें रुद्र अवतार श्रीहनुमानजी बालब्रह्मचारी थे, लेकिन बहुत ही कम लोग ये बात जानते हैं कि शास्त्रों में हनुमानजी के एक पुत्र का वर्णन भी मिलता है। शास्त्रों में हनुमानजी के इस पुत्र…

यह आलेख निम्नलिखित के बारे में जानकारी प्रदान करता है : Beawar and  Hanuman Makardhwaj Temple and  Hanuman Makardhwaj Temple Bet Dwarka Gujarat and  Makardhwaj and  Rajasthan and  गुजरात and  ब्यावर and  भेंटद्वारिका and  मकरध्वज and  राजस्थान and  हनुमान मकरध्वज मंदिर  

हिंदू धर्म को मानने वाले यह बात बहुत अच्छी तरह से जानते हैं कि भगवान श्रीराम के परमभक्त व भगवान शंकर के ग्यारवें रुद्र अवतार श्रीहनुमानजी बालब्रह्मचारी थे, लेकिन बहुत ही कम लोग ये बात जानते हैं कि शास्त्रों में हनुमानजी के एक पुत्र का वर्णन भी मिलता है। शास्त्रों में हनुमानजी के इस पुत्र का नाम मकरध्वज बताया गया है। भारत में दो ऐसे मंदिर हैं जहां हनुमानजी की पूजा उनके पुत्र मकरध्वज के साथ की जाती है।

Two Temple Of Hanuman Makardhwaj in Hindi :-

1. हनुमान मकरध्वज मंदिर, भेंटद्वारिका, गुजरात (Hanuman Makardhwaj Temple Bet Dwarka Gujarat)

हनुमानजी व उनके पुत्र मकरध्वज का पहला मंदिर गुजरात के भेंटद्वारिका में स्थित है। यह स्थान मुख्य द्वारिका से दो किलोमीटर अंदर की ओर है। इस मंदिर को दांडी हनुमान मंदिर के नाम से जाना जाता है। ऐसी मान्यता है कि यह वही स्थान है, जहां पहली बार हनुमानजी अपने पुत्र मकरध्वज से मिले थे। मंदिर के अंदर प्रवेश करते ही सामने हनुमान पुत्र मकरध्वज की प्रतिमा है। वहीं पास में हनुमानजी की प्रतिमा भी स्थापित है। इन दोनों प्रतिमाओं की विशेषता यह है कि इन दोनों के हाथों कोई भी शस्त्र नहीं है और ये आनंदित मुद्रा में हैं।

2. हनुमान मकरध्वज मंदिर, ब्यावर,  राजस्थान  (Hanuman Makardhwaj Temple, Beawar, Rajasthan)

राजस्थान के अजमेर से 50 किलोमीटर दूर जोधपुर मार्ग पर स्थित ब्यावर में हनुमानजी के पुत्र मकरध्वज का मंदिर स्थित है। यहां मकरध्वज के साथ हनुमानजी की भी पूजा की जाती है। प्रत्येक मंगलवार व शनिवार को देश के अनेक भागों से श्रद्धालु यहां दर्शन करने के लिए आते हैं। ब्यावर के विजयनगर-बलाड़ मार्ग के मध्य स्थित यह प्रख्यात मंदिर त्रेतायुगीन संदर्भों से जुड़ा हुआ है। यहां शारीरिक, मानसिक रोगों के अलावा ऊपरी बाधाओं से भी मुक्ति मिलती है। साथ ही मनोकामनाएं भी पूर्ण होती हैं। संभवत: संपूर्ण भारत में ब्यावर का यह दूसरा अनूठा मंदिर है, जहां एक ही स्थान पर हनुमान और उनके पुत्र मकरध्वज अर्थात दोनों पिता-पुत्र की पूजा-अर्चना की जाती है।

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जनश्रुति है कि हनुमान के पुत्र होने के कारण भगवान श्रीराम ने मकरध्वज को पाताल से बुलाकर तीर्थराज पुष्कर के निकट नरवर से दिवेर तक के प्रदेश का अधिपति बना दिया। श्रीराम ने मकरध्वज को यह वरदान दिया कि कलियुग में ये जाग्रत देव के रूप में भक्तों के संकटों का निवारण करेंगे और उनकी मनोकामनाएं पूरी करेंगे। उसी के अनुसार जहां पूर्व में मकरध्वज का सिंहासन था, उस पावन स्थल पर मकरध्वज बालाजी के विग्रह का प्राकट्य हुआ। उसी समय मेंहदीपुर से हनुमान बालाजी भी सविग्रह यहां पुत्र के साथ विराजमान हो गए।

यहां शारीरिक, मानसिक रोगों के अलावा ऊपरी बाधाओं से भी मुक्ति मिलती है, साथ में मनोकामनाएं भी पूर्ण होती हैं। यहां इतने साक्षात चमत्कार देखने को मिलते हैं, कि नास्तिक भी आस्तिक बन जाते हैं। यह स्थल हनुमान, मकरध्वज गोरखनाथ, महाकाल भैरव, घंटाकर्ण संबंधी समस्त उपासना एवं तंत्र-मंत्र साधना के लिए उपासकों, भक्तों, साधकों, तांत्रिकों का सर्वसिद्धि प्रदायक जाग्रत तीर्थ है। यही कारण है कि अनेकानेक साधक अपनी साधना में लीन होकर भांति-भांति के तांत्रिक प्रयोग करते रहते हैं।

3. मकरध्वज के जन्म की कहानी (Makardhwaj’s birth story)

कहते हैं जिस समय हनुमानजी सीता की खोज में लंका पहुंचे। उस समय मेघनाद ने उन्हें पकड़ा और रावण के दरबार में प्रस्तुत किया। तब रावण ने उनकी पूंछ में आग लगवा दी और हनुमान ने जलती हुई पूंछ से पूरी लंका जला दी। जलती हुई पूंछ की वजह से हनुमानजी को तीव्र वेदना हो रही थी। इसे शांत करने के लिए वे समुद्र के जल से अपनी पूंछ की अग्नि को शांत करने पहुंचे।

उस समय उनके पसीने की एक बूंद पानी में टपकी, जिसे एक मछली ने पी लिया था। उसी पसीने की बूंद से वह मछली गर्भवती हो गई और उसे एक पुत्र उत्पन्न हुआ। उसका नाम पड़ा मकरध्वज। मकरध्वज भी हनुमानजी के समान ही महान पराक्रमी और तेजस्वी था। उसे अहिरावण द्वारा पाताल लोक का द्वारपाल नियुक्त किया गया था।

{ पढ़ें :- हर इन्सान को अपने जीवन में एक बार इन चार धामों के दर्शन जरूर करने चाहिए ! }

जब अहिरावण श्रीराम और लक्ष्मण को देवी के समक्ष बलि चढ़ाने के लिए अपनी माया के बल पर पाताल ले आया था। तब श्रीराम और लक्ष्मण को मुक्त कराने के लिए हनुमान पाताल लोक पहुंचे और वहां उनकी भेंट मकरध्वज से हुई। उसके बाद मकरध्वज ने अपनी उत्पत्ति की कथा हनुमान को सुनाई। हनुमानजी ने अहिरावण का वध कर प्रभु श्रीराम और लक्ष्मण को मुक्त कराया और श्रीराम ने मकरध्वज को पाताल लोक का अधिपति नियुक्त करते हुए उसे धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी।


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2012-02-18T17:13:00+05:30
Indian Spiritual Team
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