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कब, क्यों, कैसे और कहां करें पितरों का तर्पण

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In पितृ पक्ष, व्रत त्योहार
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श्राद्ध पक्ष शुक्रवार से शुरू हो चुके हैं। इन दिनों में लोग तर्पण, ब्राह्णण भोज और दान-धर्म से अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के अनुष्ठान करते हैं। भारत ही नहीं, दुनिया की अलग-अलग संस्कृतियों में मृतात्माओं को खुश करने की कोशिश की जाती है। इन 16 दिनों में हम आपको दुनिया के ऐसे ही…

श्राद्ध पक्ष शुक्रवार से शुरू हो चुके हैं। इन दिनों में लोग तर्पण, ब्राह्णण भोज और दान-धर्म से अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के अनुष्ठान करते हैं। भारत ही नहीं, दुनिया की अलग-अलग संस्कृतियों में मृतात्माओं को खुश करने की कोशिश की जाती है। इन 16 दिनों में हम आपको दुनिया के ऐसे ही रोचक रिति-रिवाजों से रूबरू कराएंगे।

When Why How And Where Ancestors Of Tarpan in Hindi :-

कब: भाद्रपद की पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण अमावस्या तक 16 दिनों तक श्राद्ध करना चाहिए। श्राद्ध से केवल पितृ ही नहीं बल्कि सभी देवों, वनस्पतियां तक तृप्त होती हैं। पितृपक्ष में सभी पित्र पृथ्वीलोक में रहने वाले अपने-अपने सगे-संबंधियों के यहां बिना आह्वान किए भी पहुंचते हैं तथा अपने सगे-संबंधियों द्वारा प्रदान किए प्रसाद से तृप्त होकर सुख, समृद्धि और वैभव का आशीर्वाद देते हैं।

क्यों: शास्त्रों के मुताबिक, दोपहर 12 बजे से पहले श्राद्ध करना उत्तम रहता है। इस समय में किया गया श्राद्ध पितरों तक पहुंचता है। वहीं, शुक्ल यजुर्वेद एवं वराह पुराण आदि में विधान बताया है कि दिवंगत पिता, पितामह, प्रपितामाह इन तीन पीढ़ियों को वेद मंत्रों से आह्वान कर जल से तर्पण एवं अन्न के पिण्ड से तृप्त करना चाहिए।

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कैसे: श्राद्ध कर्म नदी तट, तीर्थ क्षेत्र, वट-वृक्ष के नीचे या अपने घर में किया जा सकता है। पितरों का तर्पण काले तिल मिश्रित जल से होता है और पिण्ड आटे या पके चावल के बनाए जाते हैं। जितने दिवंगतों को शामिल किया जाता है, उतने ही पिण्ड बनाए जाते हैं।इसके अलावा चांदी, कुश, तिल, गौ, दौहित्र यानी कन्या का पुत्र, खड्गपात्र, कंबल- इन्हें भी कुतुप के समान फलदायी बताया गया है।

कहां: श्राद्ध के लिए उपयुक्त स्थान के विषय में उल्लेख है कि समुद्र तथा समुद्र में गिरने वाली नदियों के तट पर, गौशाला में जहां बैल न हों, नदी संगम पर, पर्वत शिखर पर, वनों में, स्वच्छ और मनोहर भूमि पर, गोबर से लीपे हुए घर में विधिपूर्वक श्राद्ध करने से मनोरथ पूर्ण होते हैं और अंत: करण की शुद्धि होती है। श्राद्ध कभी भी दूसरे की भूमि पर नहीं करना चाहिए, जो भूमि सार्वजनिक हो वहां श्राद्ध कर्म किया जा सकता है। अगर दूसरे के गृह या भूमि पर श्राद्ध करना पड़े तो किराया भूस्वामी को दे देना चाहिए।

ये है निषिद्ध : महाभारत के शांति पर्व और श्राद्ध कल्प के अनुसार श्राद्धकर्ता को जिन चीजों से परहेज करना चाहिए उनमें अंगुली से दंत धावन, पान का सेवन, तेल मर्दन, उपवास, रति क्रिया व औषधि शामिल है। साथ ही दूसरे के यहां भोजन भी उसके लिए निषेध है।  

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2013-08-17T20:32:15+05:30
Indian Spiritual Team
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