क्रिसमस का आरंभ करीबन चौथी सदी में हुआ था। इससे पहले प्रभु यीशु के अनुयायी उनके जन्म दिवस को त्योहार के रूप में नहीं मनाते थे। बाइबल में भी इसका कहीं वर्णन नहीं पाया जाता। परंतु पश्चिम योरप और रोम के मसीही प्रारंभिक सदी में ख्रीष्ट जन्मोत्सव मनाते थे। इसका संदेश क्रायसोस्टम ने अपने बड़े…
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क्रिसमस का आरंभ करीबन चौथी सदी में हुआ था। इससे पहले प्रभु यीशु के अनुयायी उनके जन्म दिवस को त्योहार के रूप में नहीं मनाते थे। बाइबल में भी इसका कहीं वर्णन नहीं पाया जाता। परंतु पश्चिम योरप और रोम के मसीही प्रारंभिक सदी में ख्रीष्ट जन्मोत्सव मनाते थे। इसका संदेश क्रायसोस्टम ने अपने बड़े दिन के संदेश में दिया था।
ऐसा माना जाता है कि ख्रीष्ट जन्मोत्सव, यीशु मसीह के अनुयायी इसलिए नहीं मानते थे, क्योंकि धर्म-ज्ञाता व शास्त्री यीशु के जन्म की निश्चित तिथि पर एकमत नहीं थे। साथ ही बाइबल में भी ख्रीष्ट जन्मोत्सव पर कोई वर्णन नहीं होने से उनके अनुयायी उनका जन्मदिन मनाते हों, ऐसा उदाहरण नहीं मिलता।
पूर्व तथा पाश्चात्य देशों के मसीही 24 दिसंबर से 6 जनवरी तक ‘एपिफनी’ मनाने पर सहमत हुए जो कि ऐसी मान्यता लिए था कि यह लगभग वह समय है जब ज्योतिषी यीशु के जन्म का अंदाज अपनी ज्योतिष विद्या के आधार पर लगाकर यीशु दर्शन को आए थे। परंतु रोम में बसे ईसाई एक ऐसी तिथि चाहते थे जो कि सूर्य के जन्मदिन से मेल खा सके।
क्रिसमस को हालांकि ईसा मसीह के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है लेकिन ईसाई विद्वान इस बात पर लगभग एकमत हैं कि ईसा के जन्म का वास्तविक दिन यह नहीं है। तो फिर 25 दिसंबर को उनका जन्मदिन मनाने की परंपरा कैसे शुरू हुई?
हुआ यूं कि जब ईसाई धर्म योरप पहुंचा तो वहां कई प्रकार के त्योहार पहले ही से प्रचलित थे।
इनमें प्रमुख था 25 दिसंबर को सूर्य के उत्तरायण होने का पर्व। इस तिथि से दिन के लंबा होना शुरू होने के कारण इसे सूर्य देवता के पुनर्जन्म का दिन भी माना जाता था।
ईसाई परंपराओं और योरप में पहले से प्रचलित परंपराओं का जो संगम हुआ, उसी का एक परिणाम यह था कि सूर्य देवता के पुनर्जन्म का पर्व ईसा के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाने लगा।
शुरू में इस बात को लेकर मतभेद भी था कि क्या ईसा का जन्मदिन मनाया जाना चाहिए। तब ईसा के बलिदान तथा पुनरुत्थान का पर्व ईस्टर ही ईसाइयों का प्रमुख त्योहार हुआ करता था।